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BIRTHDAY SPECIAL: हीरो बनना चाहते थे खय्याम, बन गए संगीतकार 

18 फरवरी 1927 को जन्में खय्याम का बचपन से ही संगीत से लगाव था, लेकिन वो मुंबई आए थे हीरो बनने…

Feb 18, 2016 / 10:23 am

dilip chaturvedi

khayyam

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मुंबई।अपनी मधुर धुनों से लगभग पांच दशक तक लोगों को दीवाना बनाने वाले जाने-माने संगीतकार खय्याम बॉलीवुड में संगीतकार बनने का नहीं, बल्कि अभिनेता बनने का सपना संजोए आए थे।खय्याम का असली नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी था। उनका जन्म अविभाजित पंजाब में नवांशहर जिले के राहोन गांव में 18 फरवरी 1927 को हुआ था। बचपन के दिनों से ही खय्याम का रूझान गीत-संगीत की ओर था और वह फिल्मों में काम कर शोहरत की बुलदियों तक पहुंचना चाहते थे। खय्याम अक्सर घर से भागकर फिल्म देखने शहर चले जाया करते थे। उनकी इस आदत से उनके घर वाले काफी परेशान रहा करते थे। 

खय्याम की उम्र जब महज 10 साल की थी, तब वह अभिनेता बनने का सपना संजाये घर से भागकर अपने चाचा के घर दिल्ली आ गए।खय्याम के चाचा ने उनका दाखिला स्कूल में करा दिया, लेकिन गीत-संगीत और फिल्मों के प्रति उनकाआकर्षण को देखते हुए उन्होंने खय्याम को संगीत सीखने की अनुमति दे दी।खय्याम ने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंडित अमरनाथ और पंडित हुस्नलाल-भगतराम से हासिल की। इस बीच उनकी मुलातात पाकिस्तान के मशहूर संगीतकार जी.एस. चिश्ती से हुई। चिश्ती ने खय्याम को अपनी रचित एक धुन सुनाई और खय्याम से उस धुन के मुखड़े को गाने को कहा। खय्याम की लयबद्ध आवाज को सुन चिश्ती ने खय्याम को अपने सहायक के तौर पर अनुबंधित कर लिया । 

सेना की नौकरी छोड़ मुंबई आ गए…
लगभग छह महीने तक चिश्ती के साथ काम करने के बाद खय्याम 1943 में लुधियाना वापस आ गए और उन्होंने काम की तलाश शुरू कर दी। वह दौर द्वितीय विश्व युद्ध का था और सेना में जोर-शोर से भर्तियां की जा रही थीं। खय्याम सेना मे भर्ती हो गए। सेना में वह दो साल रहे। इसके बाद खय्याम एक बार फिर चिश्ती बाबा के साथ जुड़ गए। बाबा चिश्ती से संगीत की बारीकियां सीखने के बाद खय्याम अभिनेता बनने के इरादे से मुम्बई आ गए। साल1948 में उन्हें बतौर अभिनेता एस.डी.नारंग की फिल्म ये है जिंदगी में काम करने का मौका मिला, लेकिन इसके बाद बतौर अभिनेता उन्हें किसी फिल्म में काम करने का मौका नहीं मिला। इस बीच खय्याम बुल्लो सी.रानी अजित खान के सहायक संगीतकार के तौर पर काम करने लगे। इसके बाद 1950 में खय्याम ने फिल्म बीबी को संगीतबद्ध किया। 

मोहम्मद रफी की आवाज में संगीतबद्ध उनका यह गीत अकेले में वो घबराए तो होंगे… खय्याम के सिने कॅरियर का पहला हिट गीत साबित हुआ। फिर1953 में खय्याम को जिया सरहदी की दिलीप कुमार-मीना कुमारी अभिनीत फिल्म फुटपाथ में संगीत देने का मौका मिला। यूं तो इस फिल्म के सभी गीत सुपरहिट हुए लेकिन फिल्म का यह गीत शामे गम की कसम… श्रोता आज भी शिद्दत के साथ सुनते हैं। अच्छे गीत-संगीत के बाद भी फिल्म फुटपाथ बॉक्स ऑफिस पर विफल। इस बीच खय्याम फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष1958 में प्रदर्शित फिल्म फिर सुबह होगी… खय्याम के सिने कॅरियर की पहली हिट साबित हुई, लेकिन खय्याम को इस फिल्म में संगीत देने के लिए काफी अड़चनों का सामना करना पड़ा। 

वो सुबह कभी तो आएगी…
फिल्म फिर सुबह होगी के निर्माण से पहले फिल्म अभिनेता राजकपूर यह चाहते थे कि फिल्म का संगीत उनके पसंदीदा संगीतकार शंकर जयकिशन का हो, लेकिन गीतकार साहिर लुधियानवी इस बात से खुश नहीं थे। उनका मानना था कि फिल्म के गीत के साथ केवल खय्याम ही इंसाफ कर सकते है। बाद में फिल्म निर्माता रमेश सहगल और साहिर ने राजकपूर के सामने यह प्रस्ताव रखा कि केवल एक बार वह खय्याम की बनाई धुन को सुन लें और बाद में अपना विचार रखें। खय्याम ने फिल्म के टाइटल गीत वो सुबह कभी तो आएगी… के लिए लगभग छह धुनें तैयार की और राजकपूर को सुनाया। राजकपूर को खय्याम की बनाई सारी धुनें बेहद पंसद आईं और अब उन्हें ख्य्याम के संगीतकार होने से कोई ऐतराज नहीं था। यह साहिर लुधिनायनवी के खय्याम के प्रति विश्वास का ही नतीजा था कि वो सुबह कभी तो आएगी… को आज भी क्लासिक गीत के रूप में याद किया जाता है। 

इसके बाद 1961 में प्रदर्शित फिल्म शोला और शबनम में मोहम्मद रफी की आवाज में गीतकार कैफी आजमी रचित जीत ही लेंगे बाजी हम तुम… और जाने क्या ढ़ूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें… को संगीतबद्ध कर ख्य्याम ने अपनी संगीत प्रतिभा का लोहा मनवा लिया और अपना नाम फिल्म इंडस्ट्री के महानतम संगीतकारों में दर्ज करा दिया। सत्तर के दशक में खय्याम की संगीतबद्ध फिल्में व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रहीं, लिहाजा निर्माता-निर्देशकों ने खय्याम से दूरी बना ली लेकिन 1976 में प्रदर्शित फिल्म कभी-कभी के संगीतबद्ध गीत की कामयाबी के बाद खय्याम एक बार फिर से अपनी खोई हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गए। 

कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है…
फिल्म कभी-कभी के जरिए खय्याम और साहिर की सुपरहिट जोड़ी ने कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है… मैं पल दो पल का शायर हूं… जैसे गीत-संगीत के जरिए श्रोताओं को नायाब तोहफा दिया। इन सबके साथ ही फिल्म कभी-कभी के लिए साहिर लुधियानवी सर्वश्रेष्ठ गीतकार और खय्याम सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। इसके बाद खय्याम ने त्रिशूल, नूरी, थोड़ी सी बेवऊाई जैसी फिल्मों में अपने संगीतबद्ध सुपरहिट गीतों केजरिए श्रोताओं का मन मोहे रखा। 

आशा भोसले के कॅरियर को दी नई ऊंचाई
वर्ष1981 में प्रदर्शित फिल्म उमराव जान न सिर्फ ख्य्याम के सिने कॅरियर, बल्कि पाश्र्वगायिका आशा भोसले के कॅरियर के लिए अहम मोड़ साबित हुई। पाश्चात्य धुनों पर गाने में महारत हासिल करने वाली आशा भोसले को जब संगीतकार खय्याम ने फिल्म की धुनें सुनाई, तो आशा भोंसेले को महसूस हुआ कि शायद वह इस फिल्म के गीत नहीं गा पाएंगी। फिल्म उमराव जान से आशा भोसले एक कैबरे सिंगर और पॉप सिंगर की छवि से बाहर निकलीं और इस फिल्म के लिए दिल चीज क्या है.. और इन आंखों की मस्ती के.. जैसी गजलें गाकर आशा भोसले को खुद भी आश्चर्य हुआ कि वह इस तरह के गीत भी गा सकती हैं। इस फिल्म के लिए आशा को अपने कॅरियर का पहला राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ और साथ ही खय्याम भी सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के लिए राष्ट्रीय और फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। 

नब्बे के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में गीत-संगीत के गिरते स्तर को देखते हुए खय्याम ने इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 2006 में ख्य्याम ने फिल्म यात्रा में अरसे बाद फिर से संगीत दिया, लेकिन अच्छे संगीत के बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधें मुंह गिरी। अपने जीवन के 80 बसंत देख चुके खय्याम इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय नहीं हैं। 

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