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निगहबान : सियासत का भी लोकतीर्थ है मातृकुण्डिया

locationउदयपुरPublished: Feb 27, 2021 12:53:17 am

Submitted by:

Sandeep Purohit

कांग्रेस यहां एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश कर रही है। तीन कृषि कानूनों का विरोध और तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव की तैयारी।
 

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संदीप पुरोहित

मातृकुण्डिया, एक केन्द्र धर्म, आस्था, राजनीति का। यूं तो इसे मेवाड़ का हरिद्वार कहा-माना जाता है, मगर इसे राजस्थान की सियासत का हरिद्वार भी कहें तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।

मातृकुण्डिया में डुबकी लगाकर हर कोई पावन-पवित्र होना चाहता है। पुण्य दिवसों पर यहां स्नान कर शुचिता से तर होने और पुण्य कमाने का मौका होता है, ठीक उसी तरह सियासत का पुण्य कमाने के लिए भी इसी हरिद्वार में राजनेता डुबकी लगाते रहे हैं। आजादी के पहले भी और आजादी के बाद भी। आजादी से पहले भी यहां किसान सम्मेलन हुए हैं। मेवाड और मध्यभारत के किसान आंदोलनों का यह केंद्र रहा है। बिजौलियां और बेगूं के किसान आंदोलनों की पृष्ठभूमि में मातृकुण्डिया का योगदान रहा है।
आज भी मातृकुण्डिया किसान राजनीति का केंद्र बना हुआ है। देश-प्रदेश में किसान राजनीति के बड़े क्षत्रप और जाट नेताओं को तो यह भूमि खूब रास आई है। ताऊ चौधरी देवीलाल, नाथूराम मिर्धा, बलराम जाखड़, ओमप्रकाश चौटाला सभी यहां आ चुके हैं, पर राजस्थान की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी मोहनलाल सुखाडिय़ा और माणिक्य लाल वर्मा ने सबसे पहले मातृकुण्डिया के राजनीतिक महत्व को पहचाना। उन्होंने यहां के धार्मिक और भौगोलिक स्थिति को भांप लिया था। उसके बाद से ही राजस्थान की राजनीति के मानचित्र पर मातृकुण्डिया अंकित हुआ।
मेवाड़ की इस धरती पुत्र का अनुसरण फिर राजस्थान के सभी दिग्गज नेताओं ने किया। भैरोसिंह शेखावत, अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे तक यहां चुनावी सभाएं कर चुके हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इससे पहले भी यहां किसान सभा कर चुके हैं। यह उनकी दूसरी बड़ी सभा होगी।
जहां राजनेताओं ने यहां सियासत की फसल को खूब काटा है, वहीं हमारे अन्नदाताओं के लिए भी यह धरती वरदान साबित हुई है। खेती के लिहाज से समृद्ध मातृकुण्डिया क्षेत्र में एक बड़ा बांध बना, कहते हैं कि इसके पानी से खेतों में ही हरियाली नहीं होती, बल्कि राजनीति की फसल भी खूब लहलहाती है। करीब 33 करोड़ की लागत का यह बांध 1973 में बनना शुरू हुआ था, जो 1981 में पूरा हुआ। इसके 52 गेट हैं, जिनसे छलकती जलराशि राजसमंद, चित्तौडग़ढ़, भीलवाड़ा और उदयपुर क्षेत्र की सियासत की धारा को काफी हद तक तय और प्रभावित करती है।
मातृकुण्डिया की धार्मिक मान्यता भी बड़ी है। कहते हैं कि परशुराम को यहीं के पवित्र जलाशय में स्नान करने के बाद मातृ दोष से मुक्ति मिली थी। माना जाता है कि यहां जो नहाता है, उसे सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। जिन दिवंगत लोगों की अस्थियां विसर्जित की जाती है, उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। हर साल हजारों श्रद्धालु दिवंगत परिजनों की अस्थियां विसर्जित करने यहीं आते हैं। इसी कारण इसे मेवाड़ का हरिद्वार भी कहा जाता है।
बनास नदी के किनारे बसे इस लोक तीर्थ मेें लोगों की गहरी आस्था है। यह आज भी अपनी सभ्यता और संस्कृति का वाहक बना हुआ है, पर आजकल यह मेवाड़ की तीन विधानसभा के उप चुनावों के कारण चर्चा में है। हर कोई मातृकुण्डिया में हो रहे किसान सम्मेलन को चुनाव से जोडक़र ही देख रहा है।
सहाड़ा, राजसमंद और वल्लभनगर के चुनावों की रणभेरी भले ही चुनाव आयोग ने अभी तक नहीं बजाई हो पर कांग्रेस की इस किसान पंचायत से उसका चुनावी आगाज हो गया है। कांग्रेस यहां एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश कर रही है। तीन कृषि कानूनों का विरोध और तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव की तैयारी।
हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा बजट में और उससे पहले राजसमंद शहर में हुए एक बड़े कार्यक्रम में लगाई गई घोषणाओं की झड़ी ने चुनावी माहौल को और ज्यादा गरमा दिया है। अब देखना यह है कि उपचुनाव के बहाने मातृकुण्डिया में सियासी डुबकी लगा रही कांग्रेस को ‘पवित्र स्नान का पुण्य’ मिलता है या नहीं।

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