आज दुनिया में कोई रोग भले लाइलाज न रह गया हो, लेकिन बीमारी होने पर अब मर्ज से ज्यादा अस्पताल से डर लगता है। फाइव स्टार हैसियत वाले बड़े-बड़े अस्पताल हों या कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली खुले नर्सिंग होम, वसूली के तौर -तरीकों में दोनों में कोई अंतर नजर नहीं आता। गैर जरूरी जांचें, छोटी बीमारी को भी बढ़ा-चढ़ा कर बताना, गंभीर मरीज को अपनी कमाई के सबसे बड़े अवसर के रूप में तब्दील करने का हर उपाय अपनाना, परिजनों को सही स्थिति नहीं बताना, दवाओं और इलाज की अन्य सामग्री के दाम कई गुना वसूलना, इनके आम कृत्य है।
हद तो तब हो जाती है, जब मरीज की मौत के बाद भी कुछ जल्लाद, बाज नहीं आते। कुछ बड़े अस्पताल तो बरसों से कुख्यात घोषित हैं। हरियाणा, मध्य प्रदेश , राजस्थान और उत्तर प्रदेश समेत तमाम राज्यों में ऐसे निजी अस्पतालों के हाथों बर्बाद होने वालों की पीड़ा अखबारों में, सोशल मीडिया में मय सबूतों के प्रकाशित होती रही है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सरकारों के हाथ बंधे और होंठ सिले नजर आते हैं। इसकी वजहें भी हैं, रसूखदार संचालकों के ये अस्पताल अफसरों, मंत्रियों और सभी दलों के नेताओं का खास ख्याल रखते हैं। आड़े वक्त पर यही गठबंधन, नियम-कायदों को कफन ओढ़ाकर, कातिलों को आजादी और पीडि़तों को लाचारी देता है।
मैक्स अस्पताल केस: केजरीवाल सरकार ने रद्द किया लाइसेंस, लापरवाही से हुई थी बच्चे की मौत अस्पताल और डॉक्टर की लापरवाही में भी जवाबदेही की प्रक्रिया इतनी जटिल और सबूत जुटाना इतना मुश्किल होता है कि पीडि़त अपने जख्म सहलाते हुए, शिकायत को भूलना ही बेहतर समझता है। इनके हाथों लुटना लोगों ने अपनी नीयत मान ली है। केजरीवाल सरकार के सख्त फैसले ने इस घुप्प अंधेरे में रोशनी की किरण दिखाई है। हालांकि इससे पहले दिल्ली सरकार मोहल्ला क्लीनिक के अभिनव प्रयोग से, आम आदमी की निजी अस्पतालों पर निर्भरता घटाने का कदम उठा चुकी है। यह प्रयोग इतना सफल है कि भाजपा ने गुजरात के अपने संकल्प पत्र में मोहल्ला क्लीनिक शुरू करने का वादा किया है। लाखों रुपए की फीस वसूलने वाले दिल्ली के नामी निजी स्कूलों की नकेल भी जिस तरह केजरीवाल सरकार ने कसी है, ऐसी हिम्मत अन्य राज्यों में नजर नहीं आती।
देखना यह है कि क्या अन्य राज्य सरकारें, जिलों-जिलों में अस्पतालों की अंधेरगर्दी के शिकार लोगों की शिकायतों की ऐसी फाइलें फिर खोलकर इन्साफ करने की इच्छाशक्ति दिखाएंगी? न सिर्फ पीडि़तों को न्याय और दोषी को दंड के लिए, बल्कि उन कर्मठ डॉक्टरों और कम मुनाफे में भी सेवाभाव से इलाज करने वाले निजी संस्थानों के ईमान को सम्मान के लिए भी! कुछ आदमखोरों ने चिकित्सा के पेशे की शुचिता को जो चोट पहुंचाई है, उसकी मार ईमानदार की आंखों में बहुत गहरी नजर आती है।