धर्मसभा में गुरु मां ने कहा कि वर्तमान में जितना भौतिकवाद बढ़ रहा है, उतने ही नैतिक एवं धार्मिक संस्कार शिथिल हो रहे हैं। भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए धार्मिक संस्कारों को जागरूक करना होगा। जिन्दगी को अच्छा-बुरा बनाने के लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार होता है। उसे सद्कर्मों पर विश्वास रखते हुए पर का कल्याण करने की भावना रख इसे जीवन का आदर्श बनाना चाहिए। स्व-पर का कल्याण करने की भावना रखने वाला व्यक्ति ही धर्मात्मा कहलाता है। उन्होंने देश में बढ़ रही रिश्वतखोरी को बुरी आदत बताते हुए इसका त्याग करने पर जोर दिया।
मुलनायक भगवान को विराजमान करने के लिए पूणर्याजक परिवार के दो सदस्यों और शेष के लिए एक सदस्य को अवसर मिला। सुहागिन महिलाओं ने भी त्रयछत्र, बाहर छत्र व बांदरवार लगाने के लिए अलग-अलग बोली लगाई। जैन समाज की कई महिलाओं ने भगवान की वेदी शुद्धिकरण की क्रियाएं सम्पन्न कराने में अष्ट कुमारियों की भूमिका निभाई। मंडल विधान पूजन से पूर्व मंडलों पर मंगल कलश एवं मंगल दीपों की विधि-विधानपूर्वक स्थापना की गई। प्रभु का द्वार है कितना प्यारा, तेरे दरश की लगन से हमें आना पड़ेगा…, तेरे पूजन से भगवान बनी ये वेदी आलीशान…, रोम-रोम से निकले प्रभु नाम तुम्हारा… आदि भजनों पर श्रद्धालुओं ने भक्ति नृत्य किए। इंद्र-इंद्राणियों ने जयकारों के बीच अर्घ्य समर्पित कर जिनेन्द्र देव को रिझाया।
जयकारों के साथ ध्वजारोहण