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एक वक्त का खाना तक खरीदने में असमर्थ है यह पिता, लेकिन फिर भी अपनी बेटी को पढ़ाने में नहीं छोड़ी कोई कसर!

Published: Oct 06, 2017 03:23:37 pm

Submitted by:

राहुल

आज के समय में बाप-बेटी का रिश्ता गहरी दोस्ती का रूप इख्तियार करने लगा है। जहां संवेदनाएं भी हैं और परवरिश भी…

“मैं शराब का आदी हूँ लेकिन बुरा इंसान नहीं हूँ। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि मेरी बेटी स्कूल जाएँ और एक बेहतर जिंदगी जियें।”

जी हां! वो दौर कुछ और था शायद जब एक पिता को बेटी के नाम से ही खीज होती थी, लेकिन आज कारण भी बदले हैं और हालात भी। आज के इस वर्तमान दौर में बेटी पिता के लिए कोई बोझ या जिम्मेदारी बनकर नहीं रह गई हैं, बल्कि पिता की शान और पहचान का हिस्सा बन रही है। कहीं न कहीं इसका श्रेय हमारे देश की सरकार को भी जाता है, जिसने बेटी पढाओ, बेटी बचाओ जैसे भावनात्मक अभियान को नया आयाम दिया और अब आलम यह है कि बाप-बेटी का रिश्ता गहरी दोस्ती का रूप इख्तियार करने लगा है। जहां संवेदनाएं भी हैं और परवरिश भी।
आज हम आपको एक ऐसे ही बाप और उनकी बेटी की दास्तान बताने जा रहे हैं वो एक मिसाल बन चुकी है। हालांकि इस पिता को शराब की लत थी लेकिन फिर भी यह पिता सपने देखता है कि उसकी बेटी पढ़-लिख कर सफलताओं की नई ऊँचाइयों तक पहुंचे। उन्हें यह भी पता है आज के समय में एक गरीब के बच्चे के लिए सफल होना कितना कठिन है लेकिन फिर भी वो इतने लायालित हैं कि अपनी बेटियों के उज्जवल भविष्य के बारे में सोचते हैं। उन्हें यह पता है कि जहाँ चाह है वहां राह है।
कर्नाटक के सिर्गिनाहल्ली नाम के गाँव में एक भूमि-रहित किसान लिंगप्पा जिसके पास खेती करने के लिए खुद की ज़मीन नहीं है, जो दूसरों के खेतों पर आश्रित हैं, अपनी दो बच्चियों को पढ़ा-लिखा कर कामयाब बनाना चाहते हैं। खेतों में मज़दूर का काम करने वाले लिंगप्पा का लक्ष्य अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर जीवन में एक बड़े मुकाम तक पहुंचाने का है।
उनके पास एक कमरे का टूटा हुआ घर है जिसमें खिड़की दरवाजे-दरवाज़े तक नहीं हैं, लिंगप्पा और उनकी बेटियाँ खाना, सोना और लगभग सभी काम उस एक ही कमरे में करते हैं। वह बेहद ही गरीब हैं और हर दिन उन्हें एक जून की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
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उनकी सबसे बड़ी बेटी हलाम्मा को दीवार पर लिखना बहुत ही पसंद है और वह अपनी लिखी हुई बातों को यादों की तरह संजोकर रखना चाहती है। हलाम्मा नई-नई भाषा को सीख कर उससे दीवारों पर अपने पिता के लिए सन्देश लिखती है ताकि वो शराब की लत को छोड़ सके। हालांकि उसका कहना है कि ऐसा करने से उसके पिता की इस लत में काफी बदलाव आया है और अब उनकी लत काफी हद तक छूट रही है। उसका मानना है की अपने पिता को शराब की लत से दूर रखने के लिए ज़रूरी है कि उनका ध्यान किसी दूसरी ओर, कुछ अन्य चीज़ सीखने में लगाया जाए।
लेकिन शराब के आदी होने के बावजूद यह पिता अपनी बेटियों के उज्जवल भविष्य के बारे में सोचते हैं और जितना ज्यादा हो सके काम कर अपनी बेटियों को पढाना-लिखाना चाहते हैं। इस पिता का कहना है कि मैं शराब का आदी हूँ लेकिन बुरा इंसान नहीं हूँ। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि मेरी बेटी स्कूल जाएँ और एक बेहतर जिंदगी जियें।
”पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढेगा इंडिया” अब इस कथांश को हम सभी ने मिलकर ही तो पूरा करना है।

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