जबलपुरPublished: Mar 14, 2019 07:58:51 pm
shyam bihari
जबलपुर शहर में चढ़ा सियासी पारा
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जबलपुर। लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही जबलपुर का भी सियासी पारा चढऩे लगा है। वर्तमान स्थिति में आंकड़ों के आधार पर राजनीतिक विश्लेषण विशेष तस्वीर प्रस्तुत करता है। वर्ष 2014 के बाद 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में दोनों प्रमुख दलों का आंकड़ा चार-चार पर बराबर था। लोकसभा 2014 में जिले में 17.11 लाख में 58.88 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। विधानसभा 2018 में 72.10 प्रतिशत मत पड़े। मत प्रतिशत में 13.55 का उछाल आया। कांग्रेस फायदे में आ गई। अब लोकसभा में दोनों दलों की प्रतिष्ठा रडार पर है। दोनों दलों के पास खोने और पाने की स्थिति बराबर है। ऐसे में नेताओं के बयान सरगर्म होने लगे हैं।
भाजपा के एक कद्दावर नेता ने शहर में मीटिंग की। बोलने के लिए उनके पास खूब था। उन्होंने अपने सांचे वाले राष्ट्रवाद की वकालत की। अपने विकासकार्यों की वाहवाही की। यह भी कहा कि जनता समझदार है। दावा किया कि उनकी पार्टी का राष्ट्रवाद ही असली है। उनकी सरकार का विकास ही असल विकास है। जनता से कहते नजर आए कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हनुमान की तरह हैं। ऐसे में जीत सुनिश्चित है।
कुछ ही समय बीता। दूसरे दल ने मोर्चा सम्भाल लिया। उनके नेताओं ने अपने राष्ट्रवाद की वकालत की। कहने लगे-राष्ट्रवाद तो उनके दल के नेताओं के खून में है। उनका राष्ट्रवाद देश की गलियों से बहते हुए दिल्ली तक जाता है। उनके विकास कार्य गांवों से निकलकर शहर के चौराहों तक पहुंचते हैं। इस दल के नेताओं का दावा है कि वे तो संतुलित विकास की परिभाषा में विश्वास करते हैं। जमीन से जुड़े हैं।
दोनों दलों के नेताओं को बोलना ही पड़ेगा। बोलना उनकी मजबूरी है। आदत भी। उनका दायित्व भी है। वे जनता को समझदार भी समझते हैं। ***** भी कम नहीं मानते। जनता भी जानती है कि उनसे छलावा होता है। लेकिन, वह भी मजबूर है। नेता भी समाज का ही हिस्सा होते हैं। उनका भी घर-परिवार होता है। हद तक वे भी वही सोचते हैं, जो आम जनता सोचती है। ऐसे में जनता भी आदर्श स्थिति बनाए। नेताओं की बातों में नहीं आएं। उनसे रिजल्ट मांगें। कोई भी पार्टी पूरी आबादी के हिसाब से शत-प्रतिशत खरी नहीं उतर सकती। कोई न कोई वर्ग नाराज होगा। कोई न कोई खुश भी होगा। किसी के मन की बात होगी। किसी का मन भरेगा नहीं।