scriptभीड़ का मन समझना आसान कहां? चुनौतियां तो अब हैं नेताजी | Not easy to understand the mind of the crowd, Challenges are now Netaj | Patrika News

भीड़ का मन समझना आसान कहां? चुनौतियां तो अब हैं नेताजी

locationजबलपुरPublished: Feb 25, 2019 08:05:19 pm

Submitted by:

shyam bihari

संवेदनशील मुद्दों पर धरना-प्रदर्शन प्रभावी बनाए रखना विपक्ष के लिए अहम

भीड़ का मन समझना आसान कहां? चुनौतियां तो अब हैं नेताजी

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जबलपुर. सत्ता की ठसक ‘बेवफा यूं ही नहीं कही जाती। यह पास होती है, तो लोग ‘बौराए-बौराए घूमते हैं। इसके छिटकतेही शरीर के सभी तंतु ‘दार्शनिक भाव वाले हो जाते हैं। विपक्ष में जाते ही हाव-भाव मौसम की तरह बदल जाते हैं। कार्यकर्ताओं को ‘सिंकारा टॉनिक की जरूरत होने लगती है। पदाधिकारियों में संन्यास भाव जागृत होने लगता है। खासकर जबलपुर में तो विपक्ष की कुछ ऐसी ही हालत दिख रही है। सतना के दो बच्चों के अपहरण और उनकी हृदयविदारक हत्या वाली वारदात ने पूरे देश को सन्न कर दिया है। पक्ष-विपक्ष, आमजनता तक की आंखों में तेजाबी गुस्सा है। लोगों का खून खौल रहा है। हालात ऐसे हैं कि आरोपी मिल जाएं तो भीड़ उन्हें जिंदा जला दे। लेकिन, निराशाजनक बात है कि विपक्ष की युवाओं की एक विंग ने शहर में विरोध प्रदर्शन किया, तो उसमें जुटे लोगों की संख्या गिनने लायक भी नहीं थी। जबकि, संगठन के प्रदेश प्रमुख शहर के ही हैं। यह बात सही है कि ऐसी घटनाओं पर विरोध प्रदर्शन सिर्फ विपक्षी राजनीतिक संगठनों का ही पेटेंट नहीं है, लेकिन ऐसे मुद्दे पर भी लोगों का आक्रोश नहीं दिखा पाना संगठन की विफलता जरूर है। उन्हें सोचना होगा कि आखिर विपक्ष में जाते ही कार्यकर्ताओं को जोश हवा क्यों हो गया है? आखिर क्यों ईंट से ईंट बजा देने वाली युवाओं की जोश-ए-जवानी नजर नहीं आ रही? यदि सत्ता के चलते युवा जोश आपके साथ था, तो यह विचार करने वाली बात है। कर्मठ कार्यकर्ताओं की दरकार सभी तरह संगठनों की जरूरत होती है। कहावत है कि जवानी की वैचारिक सोच क्रांतिकारी होती है। वह समाज, राजनीति, देश, संगठन की दिशा बदलने की ताकत रखती है। यदि जबलपुर शहर को एक बड़े संगठन के नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली है, तो साबित करने की चुनौती भी है। अभी तक सत्ता में थे, तो भीड़ जुटाने के लिए कसरत नहीं करनी पड़ती थी। बिना बुलाए भी कार्यालय पर भीड़ लगी रहती थी। अब बदलाव का दौर है। सरकार बदली है। शहर का, प्रदेश का मिजाज भी बदला है। स्वाभाविक रूप से लोगों का रवैया भी बदलेगा। इस बदलाव का विचारों पर भी असर पड़ेगा। इसलिए कठिन चुनौती है। संगठन की मौजूदगी सकारात्मक विरोध प्रदर्शनों के जरिए ही होगी। इसी से आम जनता के मुद्दे उठेंगे। उनके निराकरण के भी हालात बनेंगे।

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