जमीनी तस्वीर बदलें
टॉप 200में प्रदेश के सिर्फ 14 शहर स्थान ले पाए।
वर्ष 2019 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को 150 वीं जयंती पर स्वच्छ भारत का तोहफा देने के प्रधानमंत्री के सपने के प्रति भाजपा शासित राजस्थान में कितनी गंभीरता है, इसकी बानगी हाल ही जारी राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग से स्पष्ट है। एक लाख से ज्यादा आबादी वाले 4000 शहरों की जारी हुई इस रैंकिंग में सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान से टॉप 40 में एक भी शहर नहीं है, टॉप 50 में केवल राजधानी जयपुर स्थान बना पाया, उदयपुर की 85 वीं रैंक के साथ टॉप 100 में सिर्फ दो शहर शामिल हुए। कोचिंग केपिटल और शिक्षा नगरी के रूप में लघु भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला कोटा 101 वें पायदान पर है। टॉप 200में प्रदेश के सिर्फ 14 शहर स्थान ले पाए। खास बात यह कि नागौर, बारां, बूंदी, सीकर, चितौड़, गंगानगर, अलवर जैसे जिला मुख्यालय तथा भरतपुर व बीकानेर संभाग मुख्यालय टॉप 200 से वंचित शहरों में हैं। जबकि, बूंदी और भरतपुर तो पर्यटन नगरी के रूप में ख्यात हैं। प्रदेश के जिन शहरों ने उच्च स्थान हासिल किए उनके भी सिटीजन फीडबैक श्रेणी में ही सर्वाधिक अंक हैं। या यों कहें कि, नागरिकों के फीडबैक की बदौलत उन्हें वो रैंक हासिल हुई, वरना निकाय सर्विस लेवल पर वे फिसड्डी ही रहे। कोटा को तो निगम सेवाओं की श्रेणी में महज २७ फीसदी अंक मिले। स्टेट रैंक में राजस्थान को 8 वां पायदान मिला है।
कुछ शहरों को छोड़ दें तो, प्रदेश में वाकई सफाई को लेकर हालात खराब हैं। उल्टे सफाई को नगर निकायों ‘मलाई लूटने का साधन मान लिया है। पार्षद सफाई ठेकों-टिपर में हिस्सेदार बन गए हैं। धोखे के दस्तावेज तैयार कर शहर ओडीएफ दिखाए जा रहे। अरबों रुपए स्वच्छता की अंक-दौड़ में बहाए जा रहे। गत वर्ष फिसड्डी रैंकिंग के हल्ले के बाद निकायों का पूरे ब्रांडिंग व डोक्यूमेंटेशन पर ही फोकस रहा। बेहतर रहे, जमीनी सफाई पर नगरीय विकास फोकस करे। मुख्यमंत्री और मंत्रियों और आला अफसरों के औचक निरीक्षण अनियोजित मार्गों पर हों, तो हकीकत बदल सकती है। शासनिक स्तर पर पार्षदों व नेताओं के ठेकों को रद्द करने की पहल हो तो चमत्कारिक नतीजे आ सकते हैं। जमीनी तस्वीर बदलना ही बापू को असल तोहफा होगा।
धीतेन्द्र कुमार शर्मा
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