परम्पराओं और रीति रिवाजों की आड़ में
बंदिशों का जीवन जीतीं वैधव्य भोगतीं स्त्रियां
व्यस्तताओं से फुर्सत न पातीं,
पुरुषों से बराबरी का संतुलन बैठातीं
मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया सजातीं सुहागन स्त्रियां हर परिवेश में ग्रामीण हो या शहरी
हर स्थिति में संपन्न हो या विपन्न
हर अवस्था में विधवा हो या सुहागन
उम्र के हर मोड़ पर, जीवन के हर पड़ाव पर
हर स्त्री के अपने-अपने दुख हैं,
हर स्त्री के अपने-अपने सुख हैं
किसी से नहीं है मुकाबला,
खुद से है स्त्री की जंग
बंदिशों का जीवन जीतीं वैधव्य भोगतीं स्त्रियां
व्यस्तताओं से फुर्सत न पातीं,
पुरुषों से बराबरी का संतुलन बैठातीं
मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया सजातीं सुहागन स्त्रियां हर परिवेश में ग्रामीण हो या शहरी
हर स्थिति में संपन्न हो या विपन्न
हर अवस्था में विधवा हो या सुहागन
उम्र के हर मोड़ पर, जीवन के हर पड़ाव पर
हर स्त्री के अपने-अपने दुख हैं,
हर स्त्री के अपने-अपने सुख हैं
किसी से नहीं है मुकाबला,
खुद से है स्त्री की जंग