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कविता-क्यों हुए भयभीत?

locationजयपुरPublished: May 07, 2022 02:52:56 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

कविता

कविता-क्यों हुए भयभीत?

कविता-क्यों हुए भयभीत?

ले. कर्नल रूप चंद शर्मा

जब प्रलय होने का अंदेशा हो,
अरुणोदय की धूमिल हो आशा।
मृत्यु का तांडव नगर नगर,
मानव जीवन हो रहा विकल।
दया प्रेम और हमदर्दी,
जब बिखर जाए पतझड़ जैसे।
धर्म धीरू, भीरू बन जाए,
छिपे स्वार्थ की कंदरा में।
मातृ भूमि का गौरव गुण जब बिक जाएं
तुच्छ लालच पर,
निज धर्म तजे, मर्यादा भंग करे,
लज्जा बिक जाए पीत प्रलोभन से।
भ्रष्ट लुटेरे शासक हों, दुर्दिन और दंड सहे निरीह जन,
सरहद पर चौकन्ने सैनिक को जब ताप सताए कुशासन की,
तो भयभीत हुआ मन स्वाभाविक,
सोच रहा हल क्या इसका?
दिन दूना, रात चौगुना, पनप रहा काला बाजार,
लगा अटकलें उलट पलट कर, जो करते हैं काला सफेद।
मेहनत का पैसा धवल श्वेत, हो रहा श्याम बेबस मनुज,
मैं भय ग्रस्त हुआ, किंकर्तव्य मूढ़,
लेता हूं चिर चिंतन समाधि का विकल्प!
पढि़ए गजल भी

राम गोपाल आचार्य

जीत चाहिए हार नहीं,
छुपकर करना वार नहीं।

प्रेम से होते हैं मसले हल,
रखना जरूरी तलवार नहीं।

हानि हो तो भी सह लेना,
पर बनना तू मक्कार नहीं।
भोले भाले से मित्रता कर,
लेकिन रखना गद्दार नहीं।

कमजोरी और लाचारी को
बनाना कभी हथियार नहीं।

जीवन में लो आनंद, मस्ती,
समझाो बोझा या भार नहीं।

सीधा-साधा आदमी बनना,
रख दिल में अहंकार नहीं।
धोखा करके नहीं भागना,
छोडऩा कभी मझधार नहीं।

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