बरसात में टप टप टपकते ओरियानी
सिर पर हिलता हुआ पलानी
टिन की टूटी छत
बिछावन पर सदर-बदर पानी
घर का हर हिस्सा भीगा हुआ
क्या कमरा क्या चुहानी तुम्हें तो सावन में कजरी
गाने हैं, सुनाने हैं,
और झाूला याद आने हैं
पर नहीं पढ़ सकते तुम
हमारे मड़ई के दर्द को
उनकी बेबसी की कजरी
हमारे घर के उस घुनाए खम्भे को
जो हमारी मुफलिसी की कहानी कहता है
सिर पर हिलता हुआ पलानी
टिन की टूटी छत
बिछावन पर सदर-बदर पानी
घर का हर हिस्सा भीगा हुआ
क्या कमरा क्या चुहानी तुम्हें तो सावन में कजरी
गाने हैं, सुनाने हैं,
और झाूला याद आने हैं
पर नहीं पढ़ सकते तुम
हमारे मड़ई के दर्द को
उनकी बेबसी की कजरी
हमारे घर के उस घुनाए खम्भे को
जो हमारी मुफलिसी की कहानी कहता है
तुम्हें इंतजार है अपने मनभावन की
हमें इंतजार है सावन की
ताकि हो सके रोपनी
और उग सके धान
जिसके बदौलत तुम्हारी थाली में
आ सके बिरयानी और पुलाव
जीरा राइस या प्लेन राइस बहुत अंतर है तुम्हारी-हमारी चिंताओं में
तुम्हारी चिंता भरे में हैं
हमारी चिंता भरने में है।
हमें इंतजार है सावन की
ताकि हो सके रोपनी
और उग सके धान
जिसके बदौलत तुम्हारी थाली में
आ सके बिरयानी और पुलाव
जीरा राइस या प्लेन राइस बहुत अंतर है तुम्हारी-हमारी चिंताओं में
तुम्हारी चिंता भरे में हैं
हमारी चिंता भरने में है।
दोहे - बादल डॉ.भगवान सहाय मीना काले बादल नभ चढ़े, घटा लगी घनघोर।
शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर। कोयल पपीहा कुंजते, दादुर करें पुकार।
काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार। काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिाम मेह।
गौरी झाूला झाूलती, साजन सावन नेह।
शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर। कोयल पपीहा कुंजते, दादुर करें पुकार।
काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार। काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिाम मेह।
गौरी झाूला झाूलती, साजन सावन नेह।
घटा गगन शोभित सदा, बादल बनकर हार।
मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार। प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर।
लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर। धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ।
यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ।
मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार। प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर।
लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर। धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ।
यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ।
बादल से वसुधा करी, स्नेह सुधा का पान।
गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान। मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त।
धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स। श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग।
खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग।
गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान। मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त।
धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स। श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग।
खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग।
दुल्हा बनकर चढ़ चला, बादल तोरण द्वार।
दुल्हन प्यारी सज गई, वसुधा पहनी हार।
दुल्हन प्यारी सज गई, वसुधा पहनी हार।