पढि़ए एक और कविता धूप का एक टुकड़ा
प्रतिभा शर्मा हमारे हृदयों में हूक के जो आक्रोश उठेंगे
वे उन पैरों की धूल के गुबार होंगे
जो इस धरती को नापते-नापते पस्त हो गए हमारे आस्तांचलों में जो दिन उगेंगे
वे उन सपनों के सूरज होंगे
जो इस वायुमंडल को तापते-तापते अस्त हो गए
हमारे आसमानों में खीझा के जो बादल घुमटेंगे
वे उन सांसों की भाप के उठाव होंगे
जो इस धरती पर दम भरते-भरते जब्त हो गए इनके दुखों को दुख की नदी में बहा दो
और सपनों की मछलियों को सुख की नदी से खींच लो
वे उन सांसों की भाप के उठाव होंगे
जो इस धरती पर दम भरते-भरते जब्त हो गए इनके दुखों को दुख की नदी में बहा दो
और सपनों की मछलियों को सुख की नदी से खींच लो
इनकी धूप को जाल में उलझने मत दो
सूरज को सिक्का बना पल्लू की कोर में गांठ लेने दो धूप का एक टुकड़ा
नदी की एक आस
काफी है इनके कलेवे में दुपारी का आटा
ये अपनी गरीबी में गीला नहीं होने देंगे
बस तुम अपनी थोथी दिलासाओं का लोटा
इनकी परात में ढुलकने मत दो
सूरज को सिक्का बना पल्लू की कोर में गांठ लेने दो धूप का एक टुकड़ा
नदी की एक आस
काफी है इनके कलेवे में दुपारी का आटा
ये अपनी गरीबी में गीला नहीं होने देंगे
बस तुम अपनी थोथी दिलासाओं का लोटा
इनकी परात में ढुलकने मत दो
इनके लगावण का सूखा कांदा
आमद की सबसे ऊपरी शाख पर टंगा है
बर्गर के एक बड़े होर्डिंग में मुझे
इनके सपनों का कचूमर और रक्त की
सांस दिखाई देती है
बस इनके हाथ की रोटी को तुम पटरी पर उछलने मत दो
आमद की सबसे ऊपरी शाख पर टंगा है
बर्गर के एक बड़े होर्डिंग में मुझे
इनके सपनों का कचूमर और रक्त की
सांस दिखाई देती है
बस इनके हाथ की रोटी को तुम पटरी पर उछलने मत दो
अभी सूखती हड्डियों का ईंधन बाकी है इनकी देहों में
बस तुम इनके अंगारों को भोभर मत होने दो
बड़ी देर से इनके चूल्हों में जोत जली है
बस तुम इनके अंगारों को भोभर मत होने दो
बड़ी देर से इनके चूल्हों में जोत जली है