बेबसी,लाचारी और मजबूरी,मेरा गहना है,
दुनिया के सामने इसको मैंने, यूं पहना है।
मेहनत के सिवा मेरा कोई भी, अपना नहीं,
अपने ही जाल में फसां हुआ, हां मैं मजदूर हूं।।
हर सुख....... कोई दिन ऐसा आएगा, खुशियां द्वार चूमेगी,
मेरी नींद दिन में कोई,सुहाना सपना देखेगी।
काटता जा रहा औरो के लिए, निजी जिंदगी,
अपना कोई वजूद नही क्योंकि, हां मैं मजदूर हूं।।
हर सुख........
दुनिया के सामने इसको मैंने, यूं पहना है।
मेहनत के सिवा मेरा कोई भी, अपना नहीं,
अपने ही जाल में फसां हुआ, हां मैं मजदूर हूं।।
हर सुख....... कोई दिन ऐसा आएगा, खुशियां द्वार चूमेगी,
मेरी नींद दिन में कोई,सुहाना सपना देखेगी।
काटता जा रहा औरो के लिए, निजी जिंदगी,
अपना कोई वजूद नही क्योंकि, हां मैं मजदूर हूं।।
हर सुख........
मेरी कद्र महलों में रहने वाले, कभी ना कर पाएंगे,
शोषण हमारी पीढियों पर, ये यूं करते चले जाएंगे।
बनाया इस दुनिया को, हम जैसों ने इतना हसीन,
उनमें से निकला हुआ वो ही,हां मैं एक मजदूर हूं।।
हर सुख.......
शोषण हमारी पीढियों पर, ये यूं करते चले जाएंगे।
बनाया इस दुनिया को, हम जैसों ने इतना हसीन,
उनमें से निकला हुआ वो ही,हां मैं एक मजदूर हूं।।
हर सुख.......
मजदूर दिवस घोषित करके,कोई एहसान कर दिया,
इस दिन भी चैन नहीं,कैसा काम महान कर दिया।।
कई पीढियां हमारी खो गई,दिन अच्छे की आस में,
घाणी के बैल की तरह जीने वाला,हां मैं मजदूर हूं।।
हर सुख...... जुडि़ए पत्रिका के 'परिवार' फेसबुक ग्रुप से। यहां न केवल आपकी समस्याओं का समाधान होगा, बल्कि यहां फैमिली से जुड़ी कई गतिविधियांं भी देखने-सुनने को मिलेंगी। यहां अपनी रचनाएं (कहानी, कविता, लघुकथा, बोधकथा, प्रेरक प्रसंग, व्यंग्य, ब्लॉग आदि भी) शेयर कर सकेंगे। इनमें चयनित पठनीय सामग्री को अखबार में प्रकाशित किया जाएगा। तो अभी जॉइन करें 'परिवार' का फेसबुक ग्रुप। join और Create Post में जाकर अपनी रचनाएं और सुझाव भेजें। patrika.com
इस दिन भी चैन नहीं,कैसा काम महान कर दिया।।
कई पीढियां हमारी खो गई,दिन अच्छे की आस में,
घाणी के बैल की तरह जीने वाला,हां मैं मजदूर हूं।।
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