पॉप कल्चर (Pop Culture) के इस दौर में अब साहित्य और किताबें धूल फांक रहे हैं। लेकिन इन किताबों पर समय का प्रभाव दोगुना पड़ता है। वे किताबें जो नस्लवादी मूल्यों को पोषित करने का काम करती हैं वे भी एक दिन इतिहास बन जाती हैं। जो किताबें इस झंझावत से बच जाती हैं वे समय के साथ इतनी विवादित हो जाती हैं कि बहस का पसंदीदा विषय बन जाती हैं। जैसे अगर आज हम शेक्सपियर (William Shakespeare) के नाटक ओथैलो (Othello मुख्य ब्लैक पात्र) को ही लें तो हमें उनके नाटक में मौजूद ‘ब्लैक’ पात्रों को फिर से गढऩा होगा क्योंकि उन्हें रचने के पीछे शेक्सपियर के दिमाग में क्या चल रहा था हम नहीं जाते? क्या वे ऐसा नस्लीय भावना से प्रेरित होकर कर रहे थे या वे इस खाई को पाटना चाहते थे।
अमरीका में दासों की मुक्ति प्रस्तावना से भी 250 साल पहले इंग्लैंड में पुनर्जागरण काल (Renaissance Period) के नाटककार के रूप में शेक्सपियर ने निश्चित रूप से अपनी ‘संस्कृति’ (Culture) की श्वेत वर्चस्ववादी (White Supremacy) विचारों और मूल्यों को ही आगे बढ़ाया। लेकिन क्या ‘ओथैलो’ (Othello) नस्लवादी नाटक है या शेक्सपियर ने इसके जरिए नस्लवाद की कटु आलोचना की है। गौरतलब है कि प्ले में अश्वेत ओथैलो की दरबार के भ्रष्ट श्वेत राजनायिकों की महत्त्वकांक्षा के चलते उसकी हत्या कर दी जाती है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि क्या हम इसकी जांच करने को तैयार भी हैं कि शेक्सपियर नस्लभेदी थे या उसके आलोचक? यह कह पाना अभी मुश्किल है।
ब्लैक लाइव्ज मैटर आंदोलन के जरिए आज अमरीका सहित अन्य देशों में उन स्मारकों और प्रतिमाओं को आंदोलनकारियों द्वारा ध्वस्त किया जा रहा है जिन्हें नया इतिहास गढऩे और अश्वेत अमरीकियों या अन्य देशों के ‘ब्लैक’ नागरिकों को डराने के लिए स्थापित किया गया था। वास्तव में ये कला के प्रतीक नहीं हैं जो हमारे सम्मान या संरक्षण के लायक हों। लेकिन साहित्य के सबसे गूढ़ लेखन की प्याज की ही तरह कई परतें होती हैं। इन दिनों ट्विटर पर हैशटैग कैंसिल शेक्सपियर (#cancelshakespear) भी ट्रेंड करने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं।
नस्लवाद को दर्शाती ऐसी ही एक और किताब है ‘अंकल टॉम्स केबिन’ जिसमें वर्तमान अमरीकियों की संवेदनशीलता को बखूबी दर्शाया गया है। हैरिएट बीचर स्टोव्ज का लिखे इस दास-विरोधी (Anti-Slavery) मेलोड्रामा ने 1850 के दौर में अमरीकी अश्वेतों के बीचं चिंगारी भड़का दी थी। जहां उत्तर के अमरीकियों ने इस किताब को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया वहीं दक्षिण के लोगों ने इसके खिलाफ नए किस्से-कहानियां गढऩे शुरू कर दिए। फ्रेडरिक डगलस लिखते हैं कि स्टोव्ज के नॉवेल का गजब का असर हुआ। राष्ट्रपति लिंकन ने भी स्टोव्ज की प्रशंसा करते हुए कहा कि ”तुम्हीं वो छोटी लड़की हो जिसने इस आंदोलन को दिशा दी है?” यही साहित्य का वास्तविक स्वरूप है। पृष्ठ पर शब्द जमे हुए हो सकते हैंए लेकिन हम नहीं। उन शब्दों और एक-दूसरे के साथ जुडऩे के लिए एक बेहतर समझ विकसित करना ही साहित्यकार का असल मकसद है।