किसी भी सदन में लाया जा सकता है महाभियोग का प्रस्ताव
न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव किसी भी सदन में लाया जा सकता है। अगर राज्यसभा में प्रस्ताव लाया जा रहा है तो यह जरूरी है कि प्रस्ताव के पक्ष में पर कम से कम सदन के 50 सदस्यों की सहमति और उनके हस्ताक्षर हों। लोकसभा के लिए सदस्यों की संख्या कम से कम 100 होनी चाहिए। सदन के सभापति या अध्यक्ष को यह अधिकार होता है कि वह प्रस्ताव को स्वीकार करे या खारिज करे।
सदन तीन सदस्यीय समिति का गठन करता है
संविधान में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट के जज को हटाए जाने का प्रावधान है। सहमति वाले प्रस्ताव के साथ ये सदस्य संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी को जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की अपनी मांग की याचिका दे सकते हैं। प्रस्ताव पारित होने के बाद संबंधित सदन के अध्यक्ष तीन सदस्यीय एक समिति का गठन करते हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानून विशेषज्ञ को शामिल किया जाता है। ये समिति संबंधित जज पर लगे आरोपों की जांच करती है। जांच पूरी करने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को सौंपती है। इसके बाद आरोपी जज को अपनी बचाव में अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। अध्यक्ष को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में अगर आरोपी जज पर लगाए गए आरोप सही लग रहे होते हैं तो अध्यक्ष या सभापति प्रस्ताव पर बहस की मंजूरी देते हैं इसके बाद वोटिंग कराई जाती है। अगर संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई मतों से प्रस्ताव पारित हो जाए तभी आरोपी न्यायधीश को हटाया जा सकता है।
महाभियोग की बात क्यों आई चर्चा में
मंगलवार को सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा पर न्यायिक अनियमितता का आरोप लगाया था। यह मामला गंभीर है। इसलिए विपक्ष सीजेआई के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है। इस मुद्दे पर दूसरे दलों से भी चर्चा की जा रही है और वह इसे बजट सत्र में लाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे पहले कांग्रेस ने भी मांग की थी कि चार जजों ने जो मसले उठाए हैं, उनकी जांच होनी चाहिए। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सियासी दल इस मामले से दूर रहें। सुप्रीम कोर्ट के जज बेहद समझदार होते हैं। वे मिल बैठककर इस विवाद का समाधान निकाल सकते हैं।