अनावश्यक वाक्यांशों का प्रयोग
याचिका में कहा गया है कि अधिकांश वकीलों का कानूनों और सूचनाओं को लिखने का तरीका अस्पष्ट और नीरस है। जो बात दो शब्दों में कही जा सकती है उसे कहने के लिए आठ शब्दों का उपयोग किया जाता है। साधारण सी बात को कहने के लिए भी रहस्यमयी वाक्यांशों का उपयोग करते हैं। कई बार सटीक होने के प्रयास में नीरस और निरर्थक हो जाते हैं।
मौलिक अधिकार का उल्लंघन
याचिका में यह भी दलील दी गई है कि संविधान में दर्ज कानून और उससे शासित प्रणाली आम आदमी के लिए है लेकिन वही सिस्टम से सबसे अधिक अनभिज्ञ है। क्योंकि सब कुछ बेहद जटिल और भ्रमित करने वाला है। दलील में कहा गया है कि अगर जनता को न्याय तक पहुंच प्रदान नहीं की गई तो यह अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 21 और 39 (A) के अनुसार उनके मौलिक अधिकार (Constitutional Fundamental Rights) का उल्लंघन होगा।
यह मांग भी की
यह तर्क भी दिया गया है कि इन परेशानियों की रोशनी में विधानमंडल और कार्यपालिका को ‘सटीक और असंदिग्ध कानून’ बनाना चाहिए। साथ ही जहां तक हो सके उसकी भाषा को यथासंभव सरल और आसानी से समझ में आने वाली रखा जाना चाहिए। इसके अलावाए सरकार द्वारा सामान्य जनहित के कानूनों की व्याख्या करने के लिए सादे अंग्रेजी और अन्य स्थानीय भाषाओं में एक गाइड भी जारी की जानी चाहिए।
नया विषय भी बने
याचिकाकर्ताओं ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (Bar Council of India) पर एक अनिवार्य विषय शुरू करने के लिए भी मांग की है। इसमें एलएलबी पाठ्यक्रम में ही आसान अंग्रेजी भाषा में कानूनी लेखन, जहां कानून के छात्रों को सामान्य रूप से समझ आने वाली अंग्रेजी भाषा में सटीक और संक्षिप्त कानूनी दस्तावेजों का मसौदा तैयार करना सिखाया जाए।