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स्टार्टअप इकोसिस्टम पर पहले की तुलना में मंदी का असर कम

locationनई दिल्लीPublished: Oct 14, 2017 03:09:45 pm

Submitted by:

Mazkoor

इस साल भले ही स्टार्टअप कम खुले, सौदे कम हुए, मगर निवेश बढ़ा है। उम्मीद है कि निवेश के लिहाज से यह साल सबसे बेहतर साबित होगा।

bussiness

2016 में अर्ली स्टेज स्टार्टअप्स बंद होने की वजह से नवाचारी माहौल खराब हुआ। इसका असर स्टार्टअप्स निवेश में दिखाई दिया था। जानकारों का मानना है कि नए सिरे से बाजार का पुनर्गठन होने के कारण बाजार में लाभ कमाने की मंशा से बड़ी संख्या में अगंभीर प्लेयर्स उतर आए थे, लेकिन प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न होते ही बाहर हो गए। 2017 में पिछले कुछ वर्षों की तुलना बहुत कम स्टार्टअप्स बंद हुए और ये संकेत भी मिलने लगे हैं कि 2018 भारतीय स्टार्टअप्स के लिहाज से और ज्यादा बेहतर साबित हो सकता है।
डेटा ट्रैक्सन के आंकड़ों पर विश्वास करें तो चालू वर्ष के पहले नौ महीनों में केवल 180 स्टार्टअप्स बंद हुए हैं, जबकि 2016 में 500 से ज्यादा स्टार्टअप्स बंद हुए थे। बंद होने वालों में अधिकतर स्टार्टअप्स अर्ली स्टेज में थे तो कुछ बड़े स्टार्टअप भी शामिल थे। 2015 में भी चालू वर्ष की तुलना में अधिक स्टार्टअप्स बंद हुए थे। यानी 2017 के शुरुआती महीनों को छोड़ दें तो नवाचार का माहौल एक बार फिर से पटरी पर आने लगा है। शेष तीन महीनों में संभावित डील्स से नवाचार का माहौल भी बेहतर होने की संभावना है।

राहत और रियायत के बाद भी क्यों हुए बंद
मंदी का असर
इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि 2016 पूरी तरह मंदी की चपेट में था। चालू वर्ष के शुरुआती महीनों में इसका असर दिखा। इस वजह से अर्ली स्टेज के स्टार्टअप्स के साथ-साथ इस दौरान कुछ बड़े स्टार्टअप्स भी बंद हुए। उसके बाद मंदी का असर छंटने लगा तो बाजार में उत्साह का माहौल पैदा हुआ और निवेश बढऩे लगा।

लेस आइडिया, मोर प्लेयर्स
सरकारी पहल को देखते हुए बिना आइडिया वाले कारोबारी भी इस होड़ में शामिल हो गए। अच्छा रिस्पांस नहीं मिलने पर वह टिक नहीं पाए। इससे नवाचार उद्यमियों को ये सबक मिला कि भेड़चाल से प्रतिस्पद्र्धा में खुद को बनाए रखना आसान नहीं है। इससे गुणवत्ता और सेवाओं की प्रतिबद्धता में सुधार हुआ। बाजार में बने रहने के लिए उन्होंने रणनीतिक रूप से भी खुद को मजबूत कर लिया। अब बाजार में वहीं प्लेयर्स बचे हैं, जिनके पास इनोवेटिव आइडिया है।प्रतिकूल माहौल पिछले 18 महीनों में बाजार का माहौल बहुत खराब रहा। इस वजह से निवेशकों में रिस्क लेने को लेने की हिम्मत नहीं हो रही थी। इस दौरान नवाचार उद्यमियों को प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरना पड़ा। ऐसे में कई स्टार्टअप्स ने अपना हाथ खींच लेना ही बेहतर समझा। जबकि शुरुआती चरण में अनुकूल माहौल होने के कारण 2015 स्टार्टअप के लिहाज से सबसे बेहतर वर्ष रहा। अभी तक सबसे ज्यादा निवेश उसी साल हुए हैं। चालू वर्ष में उससे ज्यादा निवेश की संभावनाएं दिखने लगी है।

वेट एंड वाच
इस मंदी का सबसे ताजा उदाहरण स्नैपडील है। फ्लिपकार्ट बिकने की कगार पर पहुंचकर खुद को नए सिरे से स्थापित करने में सफल रहा। अन्य उद्यमियों में इसका मैसेज अच्छा गया। इसके बाद दूसरे उद्यमियों ने भी रणनीतिक बदलाव किया। उन्हें इसका लाभ मिला है। मंदी के दौर में उन्होंने अपने खर्चों में कटौती कर वेट एंड वाच की नीति अपनाई। अब जब फिर निवेशक फिर आगे आने लगे हैं तो उन्होंने अपने कारोबार को गति दी। इसी का नतीजा है कि चालू वर्ष में 700 से भी अधिक डील हुए। फंडिंग हासिल करने में कठिन दौर से गुजरने के बाद मिल रही सफलता से उद्यमियों में विश्वास बढ़ा है। यही कारण है कि इस बार पिछले वर्ष के 6,000 के बदले 800 स्टार्टअप्स ही बाजार में उतरे, पर वे अस्तित्व में बने हुए हैं। डेटा ट्रैक्सन के अनुसार निवेश में वृद्धि इसी का सुबूत है।

कानूनी जटिलताओं से मिली छूट
स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूती देने के लिए केंद्र सरकार न केवल ईज ऑफ बिजनेस डूइंग को बढ़ावा दिया, बल्कि अनुदान देने की प्रक्रिया को भी सरल बना दिया है। डीआईपीपी को स्टार्टअप्स उद्यमियों को तेजी से ग्रांट जारी करने को कहा गया है। पैन और टैन नंबर भी कम समय में देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

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