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दल बदलू ‘सिद्धू’ जुबान से पलटने में भी हैं माहिर, ये बयान दे रहे गवाही

कांग्रेस का हाथ थामने के बाद भी सिद्धू की हालत राजनीतिक परिदृश्य पर चमकी नहीं, कमोबेश उनकी चमक में कमी महसूस हो रही है।

Mar 21, 2018 / 05:21 pm

Navyavesh Navrahi

नई दिल्ली: सत्ताधारी पार्टी बीजेपी का दामन छोड़ कांग्रेस की गोद में बैठने वाले फायरब्रांड नेता नवजोत सिंह सिद्धू की चमक कुछ कम होती नजर आ रही है। कांग्रेस का हाथ थामने के बाद भी सिद्धू की हालत राजनीतिक परिदृश्य पर चमकी नहीं, कमोबेश उनकी चमक में कमी महसूस हो रही है।
सिद्धू हमेशा से अपनी हाजिरजवाबी और चुटीले अंदाज के लिए जाने जाते रहे हैं।सिद्धू की खासियत ही यही रही है कि वो अपनी बातों से बड़े-बड़ों को बगलें झांकने पर मजबूर कर देते थे। लेकिन हाल के बयानों पर अगर गौर तो ऐसा लगता है कि ऑन द स्पॉट शायरी रचने शैरी प्राजी के शब्दकोष में भारी कमी आ चुकी है।तभी तो वो अपने ही बयानों को चाटुकारिता के अंदाज में दोहराते नजर आते हैं।मामले को गहराई से समझने के लिए आपको उनके कुछ बयानों पर गौर फरमाने की जरूरत है।
मार्च में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सिद्धू ने कहा, कि कांग्रेस के महाधिवेशन में आकर सिद्धू वैसा ही महसूस कर रहा है जैसे कोई तिनका नर्मदा में बहते-बहते शिवलिंग पर टिक जाए। कांग्रेस महाधिवेशन में आना ऐसा लग रहा है जैसे महाकुंभ।
सिद्धू ने 2013 में नरेंद्र मोदी के राज्य गुजरात में जाकर कहा था, कि नरेंद्र भाई के जन्मदिन पर यहां आना ऐसा है जैसे कोई ढेला फूलों की क्यारी में पहुंच गया हो।जैसे कोई तिनका नर्मदा में बहते-बहते शिवलिंग पर टिक जाए।
कांग्रेस महाधिवेशन में सिद्धू ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ करते हुए कहा कि मनमोहन सिंह जी जो मौन रहकर कर गए वो बीजेपी का शोर नहीं कर पाया। इतना ही नहीं उन्होने मनमोहन सिंह को असरदार सरदार भी बताया। अब अगर आपको याद हो तो ये सिद्धू ही थे जिन्होने मनमोहन सिंह को मौन मोहन बताते हुए फोन को साइलेंट मोड पर करने के बजाय मनमोहन मोड पर करने की बात कही थी।
चाटुकारिता की हद तो नवजोत सिंह सिद्धू ने तब पार कर दी जब उन्होने खुद को पैदायशी कांग्रेसी बताते हुए कहा कि हम कांग्रेसियों को ये प्रण लेना होगा कि आजादी की शाम नहीं होने देंगे। जब तक शरीर में लहू बाकी है भारत माता का आंचल नीलाम नहीं होने देंगे।और 2013 में बीजेपी की तरफ से शब्दश: यही बात कही थी।
सिद्धू जी भले ही उम्र ढलने के साथ आपकी याद्दाश्त आपका साथ छोड़ रही हो लेकिन हमें तो आपकी कही एक-एक बात याद है । खैर सिद्धू जी भले ही आपकी जुबान अपनी धार खो रही हो लेकिन आपके बयान से एक बात तो बिल्कुल साफ है कि आप एक कमेंटेटेर और क्रिकेटर होने से पहले एक नेता है। और राजनीति में तो वैसे ही कोई परमानेंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता।

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