शांति-सौहाद्र् की महक स्कूलों तक
कश्मीर की फिजां में घुल रही शांति और सौहार्द की महक ने स्कूलों में भी दस्तक दी है। वीरान पड़े स्कूलों में चहल-पहल शुरु हो गई। पीठ पर बस्ता लटकाए बच्चे स्कूल पहुंचे तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। संगी-साथियों से मेल-मिलाप किए हुए अर्सा हो गया। अब उनके चेहरों पर रौनक लौटी है। स्कूलों की यूनीफार्म पहने बच्चे समूहों में स्कूल पहुंचे। बच्चों को लाने-ले जाने के लिए पीले रंग की बसें भी चली।
अभिभावकों में लौटा आत्मविश्वास
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पूर्व में स्कूल खोलने के कई प्रयास किए, किन्तु अभिभावकों में बच्चों की सुरक्षा को चिंता बनी रही। अनुच्छेद 370 हटने के बाद केन्द्र सरकार और स्थानीय प्रशासन के शांति-सौहार्द कायम के प्रयास सिरे चढऩा शुरु हुए। आतंकी घटनाओं पर काफी हद तक लगाम लगी। इस बीच स्थानीय निकायों के चुनाव भी सम्पन्न हो गए। इन चुनावों में भी कोई बड़ी अप्रिय वारदात नहीं हुई। इससे बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों की चिन्ता कुछ कम हुई। प्रशासन का प्रयास रहा कि स्कूल बंद होने के बावजूद बच्चों का शैक्षणिक सत्र खराब नहीं हो। सुरक्षा कारणों से ही निचली कक्षाएं स्कूलों के बजाए घरों पर ही आयोजित की गई।
स्कूलों की व्यवस्थाएं सुचारू
कश्मीर स्कूल शिक्षा निदेशक मोहम्मद यूनिस मलिक ने कहा कि श्रीनगर नगरपालिका सीमा के भीतर आने वाले स्कूलों के लिए सभी व्यवस्थाएं निर्धारित की गई हैं। स्कूलों का समय पूर्व संध्या में सुबह 10 से 3 बजे तक का समय तय किया गया है, जबकि शेष कश्मीर डिवीजन में 10.30 बजे से 3.30 बजे तक रहेगा। उन्होंने शिक्षकों से छात्रों के बेहतर भविष्य के लिए छात्रों की क्षमता निर्माण के लिए समर्पण के साथ काम करने का आग्रह किया।
कुपवाड़ा में बर्फ से नहीं खोले 50 स्कूल
निदेशक ने कहा, “यह हमारा दायित्व है कि हम उनके समर्थन को बढ़ाएं और अपने पाठ्यक्रम को समय पर पूरा करने के प्रयासों को फिर से करें।” उन्होंने फील्ड अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे शैक्षणिक योजना के अनुसार निर्धारित लक्ष्यों की समयबद्ध उपलब्धि के लिए नियमित रूप से स्कूलों का दौरा करें। इस बीच कुपारा जिले में लगभग 50 स्कूल नहीं खोले जा सके। जिले में भारी बर्फबारी के कारण बर्फ अभी तक स्कूलों में जमी हुई है। स्कूलों की छत और अहातों में बर्फ की चादर बिछी हुई है। गौरतलब है कि कुपवाड़ा में लगभग 4 फ़ीट बर्फ गिरी थी, जिसकी वजह से कुपवाड़ा के कई हिस्से दूसरे क्षेत्रों से अलग-थलग पड़ गए।