खास खबर

कोई अकबर की प्रेम कविताएं तो कोई पढ़ रहा है रस्किन बॉन्ड…

कुछ चुनिंदा लेखकों से पत्रिका ने जानने की कोशिश की कि वे इन दिनों क्या पढ़ रहे हैं…

Oct 19, 2017 / 03:35 pm

Navyavesh Navrahi

someone is studying Akbar’s love poems & someone Raskin Bond

– एन नवराही
नए लेखकों यहां तक कि स्थापित लेखकों के बारे में भी ये बात अकसर सुनी जाती है कि वे पढ़ते नहीं हैं। कई बार आरोप यहां तक भी पहुंच जाता है कि वे अपने समकालीन लेखकों की रचनाएं तक नहीं पढ़ते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर हमने चुंनिंदा लेखकों से ये जानने की कोशिश की कि इन दिनों वे क्या पढ़ रहे हैं। प्रस्तुत हैं बातचीत…

उर्दू शायरी पढऩे का मन है…

आलोक श्रीवास्तव, जाने-माने गज़लकार। ‘आमीन’ और ‘आफरीन’ बहुचर्चित और पुरस्कृत पुस्तकें।

यह तकनीक का दौर है। दुनिया का सारा साहित्य हमसे ‘एक क्लिक’ दूर है। लेकिन मेरे नजरिए में पुस्तकें पढऩे का अपना सुख है। पन्नों की अपनी खुशबू है। पुस्तकों से अपने रिश्ते को याद करता हूं तो यूनान के एक मशहूर दार्शनिक की कथा याद आती है। एक दिन उसे किसी व्यक्ति ने भरी दोपहरी में जलती लालटेन लिए देखा। हैरत का बांध टूटा, तो सवाल बह निकला- ‘यह क्या है? दिन में लालटेन लिए किसे खोज रहे हैं?’ दार्शनिक ने गंभीरता से कहा- ‘मैं मनुष्य की खोज कर रहा हूं।’ समय बीतता गया। दार्शनिक बूढ़ा हो गया। वही व्यक्ति दार्शनिक को फिर मिला। पूछा- ‘क्या मनुष्य मिला’ दार्शनिक ने उत्तर दिया- ‘नहीं, अभी तक तो नहीं मिला।’ ‘तो क्या मनुष्य को खोजने की आशा आप में अब भी जीवित है?’ दार्शनिक ने उसी संजीदगी से जवाब दिया- ‘हां, बिलकुल! क्योंकि लालटेन अभी भी जल रही है।’ मेरी नजर में पुस्तकें उसी दार्शनिक की तरह हैं। जिनसे रोशनी है, आशा है और एक रिश्ता है जो आपाधापी में भी जिंदा है।
क्या पढ़ रहे हैं- पिछले दिनों लखनऊ जाना हुआ। एक विद्ववतजन नवीन तिवारी में फिराक गोरखपुरी साहब की पुस्तक ‘उर्दू भाषा और साहित्य’ भेंट की। लखनऊ से दिल्ली आते हुए आधी पढ़ डाली। आधी, दिल्ली में मसरूफियत की जेब काट-काटकर गुजार दी। कैफी आजमी साहब की ‘कैफियात’ भी इन्हीं दिनों पढ़ी। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा की ‘तमाशा मेरे आगे’ और ‘द्वितियोनास्ति’ भी दोबारा पढ़ीं। हेमंत जी के गद्य का मैं बरसों से कायल हूं। उसके बाद अपने लेखक मित्रों- यतीन्द्र मिश्र की ‘लता सुरगाथा’ और प्रभात रंजन की ‘कोठागोई’ पढ़ी। लता जी मेरी पसंदीदा गायिकाओं में हैं, इसलिए इन दिनों यतीन्द्र जी की पुस्तक दोबारा पढ़ रहा हूं। अमूमन में एक बार में पूरी-पुस्तक नहीं पढ़ पाता। कुछ वक्त की तंगी और कुछ अपनी-कैफियत। लेकिन एक बार ठान लूं कि फलां पुस्तक या फलां कवि-लेखक को पढऩा है, तो पढक़र ही दम लेता हूं। पाकिस्तान की उर्दू शायरी हिंदी में आ रही है। ज्ञानपीठ ने प्रकाशित की है। पाकिस्तान की उर्दू शायरी पढऩे का मन है।

अकबर की कविताएं पढऩा रोमांचक अनुभव रहा

प्रभात रंजन, पुरस्कृत ब्लॉग जानकीपुल.कॉम के मॉडरेटर। पेशे से दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज सांध्य में प्राध्यापक, हाल में ही ‘कोठागोई’ नामक पुस्तक विशेष चर्चित और पुरस्कृत।

निर्मल वर्मा ने अलग-अलग मौसम और मिजाज के अनुसार किताब पढऩे के अनुभवों के बारे में लिखा है। सर्दियों की धूप में पेड़ के नीचे लेटकर उदास प्रेम कहानियों को पढऩे का लुत्फ ही कुछ और होता है। अभी सर्दियां नहीं आई हैं लेकिन मैं नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक ओरहान पामुक का नवीनतम उपन्यास ‘द रेड हेयर्ड वुमेन’ पढ़ रहा हूं। इसमें एक कुएं की खुदाई करने वाला एक लडक़ा शहरों में घूम-घूमकर तमाशा दिखाने वाली कंपनी की नायिका के प्रति सम्मोहित हो जाता है, जिसके बाल लाल हैं और वह उम्र में उससे करीब दस साल बड़ी भी है। मुझे फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘तीसरी कसम’ की याद आ गई। अलग अलग भौगोलिक परिस्थितियों में एक-सी जीवन स्थितियां हो सकती हैं। यह जानना बहुत रोमांचक लगा। मैनेजर पांडे की संपादित पुस्तक मुगल बादशाहों की हिंदी कविता पुस्तक पढ़ रहा हूं। इसमें अकबर की प्रेम कविताओं और प्रेम के सबसे बड़े प्रतीकों में एक ताजमहल का निर्माण करवाने वाले बादशाह शाहजहां की धार्मिक कविताओं को पढऩा एक अलग तरह का रोमांचक अनुभव रहा।
मेरे लिए पढऩे के लिए अलग से कोई समय या स्पेस निर्धारित नहीं है। मैं घर में आम तौर पर कम ही पढ़ता हूं। आजकल फोन और अन्य माध्यमों में किताबें भी मेरे साथ साथ चलती रहती हैं। जब मौका मिलता है पढ़ लेता हूं। आम तौर पर घर से कॉलेज जाते हुए और कॉलेज से घर आने के दौरान किंडल ईबुक रीडर पर उपन्यास पढ़ लेता हूं। कॉलेज में दो कक्षाओं के बीच के अंतराल में शायरी-कविताएं पढ़ लेता हूं। अलबत्ता लिखने का काम मैं घर के बाहर नहीं कर पाता। इन दोनों किताबों के बाद रत्नेश्वर सिंह के उपन्यास ‘रेखना मेरी जान’ पढऩे की उत्सुकता है। इस किताब के लिए लेखक के साथ एक नए प्रकाशक ने डेढ़ करोड़ का करार किया है और एडवांस के रूप में भी अच्छी राशि दी है। जाहिर है, पढक़र देखना चाहता हूं कि ऐसा क्या है इस उपन्यास में। भारतीय मूल के अंग्रेजी लेखकों में सबसे प्रसिद्ध सलमान रुश्दी के उपन्यास ‘द गोल्डन हाउस’ के किन्डल ईबुक संस्करण के आने का इन्तजार कर रहा हूं। ईबुक में किताब सस्ती मिल जाती है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कथानक सन्दर्भ होने के कारण उपन्यास की खासी चर्चा हो रही है।

मैं आजकल रस्किन बॉन्ड पढ़ रही हूं

मनीषा कुलश्रेष्ठ, छह कहानी संग्रह और चार उपन्यास प्रकाशित। संस्कृति विभाग की ओर से मिली सीनियर फैलोशिप के तहत ‘मेघदूत की राह के पथिक’ नामक यात्रावृत्त पर काम जारी।

मैं मसूरी से लौटी हूं और आजकल रस्किन बॉन्ड को पढ़ रही हूं। रस्किन बांड के यहां, अनूठे किरदार, प्रकृति, एलीटिज्म के प्रति एक व्यंग्य, पर्यावरण की चिंता भारत और भारतीयता के प्रति प्रेम और खोजी बचपन बहुत मौलिक और बेदह रोचक ढंग से आते हैं। मसूरी एंड लैंढोर- डेज़ ऑफ वाइन एंड रोजेेज’ यह किताब गजब की किस्सागोई के साथ ब्रिटिश राज और ब्रिटिश राज के बाद के मसूरी और लैंढोर का बसना, लेखकों का यहां आना, सेवॉय होटल की मजेदार घटनाएं, कुछ छोटे तबके के बहुत दुर्लभ व्यक्तित्वों, रोचक भूतों को बयां करती है। मानवीयता और मानवीय कमजोरियों पर विडंबनात्मक ढंग से कलम चलाने में रस्किन बॉन्ड माहिर हैं।
एक और किताब है जो पढ़ रही हूं, एलिफ शफक की ‘फोर्टी रूल्स ऑफ लव’। इसमें पैंतालीस ***** एला रूबेन्सटीन जो अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट है, ऊबकर एक पब्लिकेशन में लिटरेरी एजेंट का काम करने लगती है। तभी एक किताब जो समीक्षा के लिए आई है, पढक़र उसका जीवन बदल जाता है। यह उसका पहला असाइनमेंट उसे रूमी के समकालीन शम्स तबरिज़ के जीवन से मिलवाता है जो प्रेम की मौलिक पैरवियां पेश करता है। यह किताब नहीं मनपसंद मिठाई का आखिरी टुकड़ा-सा है, जिसे मैं बहुत धीरे-धीरे कुतर रही हूं। किताब एक बहुत प्यारा तथ्य स्थापित करती है- ‘प्रेम तुमको अचानक ऐसे समय और ऐसी जगह मिलेगा, जहां उसकी संभावना की कल्पना तुमने कभी नहीं की होगी।‘ नीलिमा चौहान की किताब ‘ पतनशील पत्नी के नोट्स’ भी मुझे अभी मिली है।
हजारों ऐसी किताबें पढऩे की ख्वाहिश है। मैंने अपनी किशोरावस्था में जो शानदार किताबें लायब्रेरी से लाकर पढ़ी थीं, वे दुबारा पढऩी हैं, मगर मिल नहीं रहीं वे अब। बंगाली लेखक शंकर का उपन्यास ‘ चौरंगी’ ( हिंदी अनुवाद) मराठी लेख सुभाष भिड़े का उपन्यास ‘भिक्षुणी’ हिंदी अनुवाद) शैलेश मटियानी जी की पहाड़ पर लिखी किताब ‘ चिटि्ठरसेन’ और कृष्ण चंदर के पुंछ पर लिखे संस्मरण ‘ मिट्टी के सनम’। इन आठवीं-नवीं कक्षा में पढ़ी किताबों को दुबारा पढऩे का बहुत ज्यादा मन है। पढऩा ही तो है जिसने मुझे एक तरफ बिगाड़ा, दूसरी तरफ बनाया ।

किताब के पात्रों के नाम लिख दिया करती थी खत…

गीताश्री, कथाकार-पत्रकार

मेरे स्टडी टेबल पर इन दिनों लगभग बीस किताबें वेटिंग लिस्ट में हैं। उपन्यास पढऩे पर जोर है। नई वाली हिंदी के तेवर वाले जितने उपन्यास हैं, पढकर खत्म किए। प्रियदर्शन जी का उपन्यास ‘जिंदगी लाइव’ पढ गई और उस पर लिखा भी। अपने समकालीन कथाकारों को खोज-खोजकर पढ़ डालती हूं। अभी आलोचना की दो किताबें- एक सुधीश पचौरी जी की और एक रोहिणी अग्रवाल जी की पढऩी है। नासिरा शर्मा का नया उपन्यास शब्द पखेरू पढऩा है, कुछ व्यंग्य की किताबें हैं। मेरी आदत है, जो किताब पढ़ूं, उस पर कुछ देर ठहरकर सोचूं और फिर छोटी-सी मगर कसी हुई टिप्पणी लिखूं। इसीलिए थोड़ा समय लगता है कोई किताब खत्म करने में। पढऩा मेरे लिए एक जवाबदेही है। हर किताब से कुछ सीखती हूं। सुन सुनाई बातों पर किसी किताब या व्यक्ति के बारे में कोई राय नहीं बनाती। किसी किताब की बहुत चर्चा या प्रशंसा मुझे खींच नहीं पाती।
सफर में हूं और चर्चित लेखक रत्नेश्वर सिंह का पहला उपन्यास ‘रेखना -मेरी जान’ साथ है। दो चेप्टर पढ़ गई हूं। शुरुआत में दिलचस्प लग रहा है कथानक। उत्सुकता जगाती हुई कथा… किसी उपन्यास की यह पहली खूबी हो कि शुरु में ही आपको अपनी गिरफ्त में ले ले। यात्रा के दौरान पूरा पढ़ जाऊंगी। ग्लोबल वार्मिंग पर यह पहला उपन्यास है।
मैं खुद को पढऩे के लिए हमेशा फ्री रखना चाहती हूं। ऐसा तब भी था जब मैं नौकरी में थी और आज भी। हर समय पढ़ाई के लिए वक्त रहा। ये वो लत है गालिब कि छूटती नहीं। एक कामकाजी स्त्री का रुटीन बहुत पैक होता है। कई तरह के मोर्चों पर जूझते हुए अपने दिमागी खुराक के लिए समय निकालना पड़ता है। मैं देर रात पढऩा पसंद करती हूं। मुझे पढ़ते समय एकाग्रता चाहिए क्योंकि पढऩा मेरे लिए मनोरंजन नहीं, न ही टाइमपास है। पढऩा मेरे लिए दिमागी खुराक है। किसी छात्र की तरह पढऩे की आदत है, हाथ में कलम या पेंसिल लेकर पढ़ती हूं ताकि कोटेबल कोट्स को अंडरलाइन कर सकूं। कुछ अच्छा लगे तो उसे कहीं दर्ज कर लूं। कई बार इतना रीझ जाती हूं कि उसी पन्ने पर कमेंट लिख देती हूं। मुझे याद है, कॉलेज डेज़ में अज्ञेय का उपन्यास ‘नदी का द्वीप’ पढ़ते हुए मैं किताब के खाली पन्ने पर कभी भुवन के नाम, कभी रेखा के नाम तो कभी गौरा के नाम छोटे छोटे खत लिखा दिया करती थी। ये तीनों प्रमुख पात्र हैं इस उपन्यास के। इन तीनों से बहुत मोहाग्रस्त हो गई थी।

कई किताबें साथ-साथ पढ़ता हूं…

यतीन्द्र मिश्र, युवा कवि, संगीत एवं सिनेमा अध्येता। चार कविता-संग्रह और संगीत व सिनेमा पर कई पुस्तकेंं प्रकाशित।

मेरे लिए लिखने से अलग पढऩा अधिक पसंदीदा काम रहा है। पढ़ाई के मामले में मेरी आदत थोड़ी विचित्र है कि मैं एक साथ तीन-चार किताबें पढ़ता हूं। मसलन मेरे राइटिंग डेस्क पर अगर कोई किताब मौजूद है, तो सोने से पहले बिस्तर पर कोई दूसरी किताब होगी और यात्रा में कुछ अलग ही पढऩे की सामग्री साथ रहेगी। एक साथ कई किताबों से गुजरते हुए एक ही समय में कई स्तरों पर टहलने का सुख मुझे रोमांचित करता है। इसी तरह मैं साहित्य पढ़ते हुए इतिहास, राजनीति और संगीत की किताबों से भी एक ही समय में जुड़ा रहता हूं। यह मेरी आदत है, जिसे करते हुए मुझे पढऩे का एक अलग ही सुख मिलता है।
मैंने अपने लिखने-पढऩे की दिनचर्या में इस बात को हमेशा शामिल किया कि कम से कम पूर्वज रचनाकारों का लिखा हुआ, जो उत्कृष्ट साहित्य है उनमें से कुछ न कुछ मैं प्रतिदिन पलटकर फिर से पढ़ूं, भले ही वह कितनी ही बार क्यों न पढ़ा जा चुका हो। एक बात कुंवर नारायण जी की मुझे कभी नहीं भूलती, जो उन्होंने मुझे सलाह देते हुए कही थी- ‘कोशिश करना, अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में क्लॉसिक से नाता बना रहे। हर संभव प्रयास यह हो कि गालिब, मीर, मोमिन, दाग समेत सूर, कबीर, तुलसी और अन्यान्य बड़े रचनाकारों व विदेशी साहित्य की महानतम कृतियों को पढ़ते रहो।’ यह आदत मैंने खुद के भीतर डाली और अब तो इन सब के बगैर जीवन ही पूरा होता नहीं दिखता। मेरी दिनचर्या में इन बड़े लोगों की रचनाएं शुमार रहती हैं। आजकल इस उपक्रम में मुचकुंद दुबे का बांग्ला से हिंदी में अनूदित ‘लालन शाह फकीर के गीतों का संकलन पढ़ रहा हूं।
अभी मैंने निखिल सचान की ‘यूपी ६५’, मानव कौल की ‘प्रेम कबूतर’ और ख्$वाजा अहमद अब्बास की चुनिंदा कहानियों का संग्रह ‘मुझे कुछ कहना है’ पढक़र समाप्त किया है। मेरे मित्र अतुल के ठाकुर की सम्पादित एक बेहद सुंदर किताब ‘इंडिया नाउ एंड इन ट्रांजिशन’ पढ़ रहा हूं। इसके अलावा संगीतकार लालगुड़ी जयरामन की जीवनी ‘एन इनक्यूरेबल रोमांटिक’, मयंक ऑस्टिन सू$फी की अद्भुत किताब ‘नो बडी कैन लव यू मोर’ और सागरिका घोष की ‘इंदिरा’ भी पढऩे के क्रम में शामिल हैं। इधर, बॉब डेलन के प्रेम में डूबा हूं और उनके चुनिंदा गीतों का संग्रह ‘द लिरिक्स’, जो 1961 से 20112 तक के गीतों का एक नायाब गुलदस्ता है, पढऩे का आनंद ले रहा हूं। बॉब को पढऩा अनुभव के एक बिलकुल अनूठे संसार में उतरने जैसा है।

साहित्य के पठन-पाठन और लेखन में लगी हूं

पंखुरी सिन्हा, इतिहासकार एवं लेखिका

आजकल लोकप्रिय और गंभीर दोनों ही साहित्य एक साथ पढ़ रही हूं। ध्रुव गुप्त जी की गजलों के साथ-साथ उनका कथा संग्रह भी पढऩा आरंभ किया है-‘मुठभेड़’, जिसमें उनके पुलिस में कार्यकाल के अनुभव पर आधारित जीवंत कहानियां हैं। ‘संवेद’ का ताजा अंक पढ़ रही हूं, जिसमें मेरी भी कहानी है। इस अंक में उम्दा कहानियों के साथ-साथ बहुत अच्छे आलोचनात्मक लेख हैं। अभी जो सबसे हाल में पढ़े, वो हृषिकेश सुलभ जी के कथा साहित्य पर आशुतोष जी का लेख, और प्रियम्वद जी की रचना यात्रा पर राकेश बिहारी जी का लेख। दोनों आलेख आलोचनात्मक विश्लेषण की सक्षम दृष्टि रखते हैं, और कहानियों की जमीन से पाठकों का अच्छा परिचय करवाते हैं।
पत्रिकाओं में मुझे सबसे ज्यादा दिलचस्पी कविताओं में होती है। इला नरेन जी का कथा संग्रह पढ़ रही हूं-‘तुम इतना क्यों रोई रुपाली?’ शीर्षक कहानी पढ़ी, जो मुझे बहुत अच्छी लगी। ‘लमही’ पत्रिका के लिए प्रवासी कथा साहित्य पर एक व्यापक लेख की योजना है, जिसके लिए जाकिआ जुबैरी और अर्चना पैन्यूली जी की भी कुछ कहानियां इधर नेट पर, हिंदी समय पर, पढ़ीं।
इसी बीच, नोबेल पुरस्कारों की घोषणा हुई, और साहित्य का नोबेल विजेता जापानी मूल के ब्रिटिश लेखक इशिगुरो को घोषित किया गया। हिंदी के अखबार और वेबसाइटस इस घोषणा की विवेचना से भर गए। प्रभात रंजन जी ने फौरन इशिगुरो के उपन्यास ‘नेवर लेट मी गो’ के कुछ चुनिंदा अंश अनूदित भी कर दिए और उन्हें सर्वत्र नेट पर उपलब्ध भी करवा दिया, जिन्हें पढऩा बहुत रोचक रहा। इंटरनेट और उसके बाद, सोशल मीडिया ने साहित्य पढऩे की आदत में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। हम क्या पढ़ेंगे, यह चुनने के सारे तरीके बदल गए हैं। नोबेल तो नोबेल, अपने मित्रों और अन्य साहित्यकारों की पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं, फौरन फेसबुक पर चर्चा में आती हैं, और इस तरह उन्हें पढऩे का लिंक मिलता है। पेशे से इतिहासकार हूं, हालाकि मेरी पीएचडी अभी पूरी नहीं हुई। कुछ एक शोध पत्र लिखे हैं, जिन्हें प्रकाशन से पहले दुबारा देखना है, और इन दिनों कहीं अध्यापन भी नहीं कर रही। इन दिनों, पूर्णत- साहित्य के पठन-पाठन और लेखन में लगी हूं। आगे, और बहुत सी किताबों के साथ साथ प्रूस्त की किताब ‘ऑफ थिंग्स रिमेम्बरड’ पढऩा चाहती हूं।
 

 

 

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