script…पत्रकारिता अब चुभने लगी इनकी आंखों में | sPECIAL STORY ON NATION PRESS DAY | Patrika News

…पत्रकारिता अब चुभने लगी इनकी आंखों में

Published: Nov 17, 2017 04:26:48 pm

Submitted by:

ashutosh tiwari

राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर विशेष

NATION PRESS DAY, राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस
कहानी- तुम लिखते क्यों नहीं?
मिर्जा हफीज बेग
काली अंधेरी रात में छत की मुंडेर पर बैठा वह प्रेत-छाया की तरह लग रहा है। तभी बेचैनी बढऩे लगती है। वह उठकर टहलने लगता है। तभी एक साया सामने आ खड़ा होता है और पूछता है, तुम लिखते क्यों नहीं?
वह साये से पूछता है, तुम फिर आ गए? तुम जाते क्यों नहीं? बता चुका हूं कि मैं तुम्हारी कहानी नहीं लिखने वाला।
क्यों नही लिखते? यह फर्ज है तुम्हारा। तुम पत्रकार हो।
लेकिन तुम तो जानते हो कि मैं किन हालत से गुजरा हूं। मैंने गलत को गलत कहा था। लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई। मैं तो लाचार था। नौकरी जो कर रहा था।
बहुत लोग जानते हैं सच्चाई, लेकिन…
हां! बहुत लोग जानते हैं, लेकिन तुम्हारी बात और है। तुम तो पत्रकार हो। बेजुबानों की जबान…
लेकिन मुझे तो नौकरी भी करनी है। दोस्त, तुम तो दुनिया से फुर्सत पा गए, लेकिन हमारा पेट है, बाल-बच्चे और परिवार है।
लेकिन तुमने हमसे भी वादा किया था कि हमारी कहानी लिखोगे।
तुम जानते हो न कि क्या हुआ हमारे साथ! उन सिपाहियों ने हमले करके हमें जंगलों की तरफ खदेड़ दिया…और हमारी औरतों के साथ क्या हुआ…जानते हो न। क्या यह एक जनतांत्रिक देश के सिपाहियों का चरित्र है? क्या उन्हें जनोन्मुख नहीं होना चाहिए? यह कैसा जनतंत्र है, जिसकी पुलिस तक जनता का सम्मान नहीं करती?
हम हैं गरीब मजदूर और किसान। मेहनतकश अवाम। हमारे ही दम पर दुनिया का दारोमदार और हमारी ही कहीं पूछ-परख नहीं । सारे प्रशस्तिगान सिर्फ सत्ता और सत्ता को कायम रखने वालों के लिए। हमारे दर्द को कौन कहेगा? कौन लिखेगा?
वह चीख पड़ता है-चुप हो जाओ! मैं नही लिखता। मैं नही लिखना चाहता। मुझे छोड़ दो। तुम चले जाओ। मैं किसी के लिए कुछ नहीं लिखना चाहता। चले जाओ!
सन्नाटा . . .
दिल करता है दहाड़ मारकर रोएं। फिर एक दर्द सीने मे उठता है और लगता है दुनिया बेमानी है या यह जिंदगी ही बेमानी है। फिर अचानक वह खुद से कहता है- मुझे अपना फर्ज पूरा करना है। मुझे लिखना है उनके लिए जिनकी आवाज किसी के कानों तक नहीं पहुंचती। अब इरादे मजबूत हैं। वह कलम की तरफ हाथ बढ़ाता है, लेकिन कई खूंखार चेहरे उसकी नजरों के सामने से गुजर जाते हैं। ये चेहरे उसका हमेशा पीछा करते हैं। वे आपके सत्य से डरते हैं। वे मनोबल पर हमले करते हैं और कई बार तो वे वास्तविक दुनिया में भी आ धमकते हैं। जैसा गौरी लंकेश के मामले में हुआ, जैसा दभोलकर या पानसरे के साथ या जैसा…। नहीं, मैं इन शहीदों में शामिल नहीं होना चाहता। मेरे बच्चे छोटे हैं। …वह धराशायी हो जाता है!
कलम उठाओ! एक साथ कई आवाजें सुनकर वह चौंक उठता है। ओह! यहां तो पूरी फौज जमा है। वे सारे पत्रकार,लेखक-कवि, जिन्हें उसने कभी पढ़ा है।
वे सब एक स्वर मे कहते हैं- लिखो! तुम लिखते क्यों नहीं?
वह चिढ़कर कहता है- आप लोग फिर आ गए? आप लोग मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ते। मैं अब नहीं लिख सकता। मेरे हाल पर छोड़ दो।
यह नहीं हो सकता। तुमने जो हमें पढ़ा है, सीखा है, उसका कर्र्ज तो उतारना ही होगा। लिखना होगा।
नहीं। यह दौर ही और है!
तभी किसी ने बिजली का स्विच ऑन कर दिया है। बीवी जीनत उसे ढूंढ़ती चली आई थी। जीनत के पूछने पर उसने कहा- मैं तो बस कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था।
इतनी रात और अंधेरे में? समझ गई। आपके कहानियों के किरदार फिर परेशान कर रहे हैं। आप इतने मजबूत किरदार बनाते ही क्यों हैं, जो आप पर ही हुक्म चलाएं?
मैं इन्हें नहीं बनाता। ये तो समाज से आते हैं। पहले से मौजूद होते हैं। हर तरफ, हर कहीं। मैं तो सिर्फ इनकी कहानियां लिखता हूं।
अब आप चलके सो जाइए। कल ऑफिस भी जाना है। सुबह वह सारी ताकत समेट कर बिस्तर से उठता है। भागकर छत पर जाता है। खुशी हुई कि मेज पर कलम अब तक रखी है, गिरी नही। वह सुकून की सांस लेता है।
अपनी कलम को देखने लगा। मुझे भी खुशी हुई कि मेज पर कलम अब तक रखी है, गिरी नहीं। तभी साया ने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा- नहीं गिरेगी तुम्हारी कलम! लिखो! मैंने कलम उठा लिया और तेजी से लिखने लगा। मैं लिख रहा हूं सच की कहानी। लिख रहा हूं, क्योंकि जानता हूं कि मुझे लिखना ही होगा। वरना वह अभी चीखेगा कि लिखो… तुम लिखते क्यों नहीं??
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