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रिश्तों में बराबरी के लिए कदम बढ़ाते पुरुष 

Published: Nov 18, 2016 12:48:00 pm

Submitted by:

Deepika Sharma

जैसे महिलाएं घर से बाहर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम रही हैं, वैसे ही कई पुरुष भी घर के कामों में महिलाओं की मदद कर रहे हैं। हालांकि इस प्रतिशत में अभी एक बड़ा अंतर है।

 gender equality

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दीपिका शर्मा, नई दिल्ली
oped@patrika.com

पति-पत्नी हमसफर हैं, एक गाड़ी के दो पहिए…। पति-पत्नी के लिए ऐसी कई बातें आपने सुनी होंगी। ये बातें और कहावतें यह साबित करती हैं कि यह रिश्ता बराबरी मांगता है। लेकिन जब ऐसे रिश्ते समानता पर आधारित नहीं होते तो यह दरकने लगते हैं। पहले गाड़ी के इन दोनों पहियों का काम लगभग निर्धारित था। जैसे पति के जिम्मे बाहर का काम था तो घर की जिम्मेदारी पत्नी की थी। पर समानता, सहयोग, आर्थिक संबल जैसी भावनाओं ने इस रेखा को मिटा डाला। 

दोहरी जिम्मेदारी और मानसिक दबाव

इस पूरी कवायद में रिश्तों में एक बड़ा बदलाव यह आया कि महिलाएं अब घर-बाहर दोनों जगह की दोहरी जिम्मेदारी से जूझ रही हैं। इससे वह मानसिक दबाव में हैं। बिगड़ गए इस संतुलन को दुनिया भर में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। इस संतुलन को फिर से बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 



इसे पाटने के लिए कई पुरुष आगे आए हैं, जो घर से दफ्तर और दफ्तर से घर के बीच महिलाओं की इस कदमताल में उनके सहयोगी बन रहे हैं। यानी जैसे महिलाएं घर से बाहर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम रही हैं, वैसे ही कई पुरुष भी घर के कामों में महिलाओं की मदद कर रहे हैं। हालांकि इस प्रतिशत में अभी एक बड़ा अंतर है। 

ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि दुनियाभर के हालात कुछ ऐसे ही हैं। लैंगिक समानता के नाम पर महिलाएं दफ्तरों, कारोबारों में अपना हक मांग रही हैं। इन मांगों के चलते वे दोहरी जिम्मेदारी निभाने का दबाव भी झेल रही हैं। क्योंकि घरों में उन्हें अपने साथी से ज्यादा सहयोग नहीं मिल रहा है। 
वहीं एक्सपट्र्स की मानें तो ऐसे जोड़ों के आपसी रिश्ते ज्यादा प्रगाढ़ हो रहे हैं, जिन रिश्तों में पुरुष महिलाओं के साथ घर की जिम्मेदारियां उठा रहे हैं।


परंपरागत भूमिका से पुरुष आ रहे बाहर 

ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ फैमिली स्टडीज की रिसर्च बताती हैं कि यह मांग बढऩे लगी है कि जोड़े एक-दूसरे के लिए निर्धारित की गई परंपराभग भूमिका को छोड़ कर घर-बार दोनों जगह एक-दूसरे की मदद करें। रिसर्च बताता है कि जो पति-पत्नी एक-दूसरे की मदद करते हैं, उनके रिश्ते में ज्यादा ठहराव और प्यार होता है।



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अब भी बराबरी नहीं

 हालांकि जोड़ों के मानने और उनके व्यवहार में अंतर है। इस रिपोर्ट के अनुसार, एक नौकरीपेशा महिला हफ्ते में औसतन 25 घंटे काम करती है, जबकि यही औसत पुरुषों में 15 घंटे है। महिलाएं दफ्तरों में काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें सेलरी मिलती है, लेकिन घर में किए जाने वाले काम का कोई भुगतान नहीं होता। ऐसे में महिलाओं का बड़ा प्रतिशत दिन-रात काम करने के बाद भी देश की जीडीपी में कोई सहयोग नहीं कर पाता।

दे रहे हैं समानता का अधिकार

अच्छी बात यह है कि जिस जोड़े ने इस अंतर को खत्म किया, वे दूसरे जोड़ों की अपेक्षा ज्यादा खुश भी हैं। ऐसे कई पुरुष हैं, जो घरों के काम में भागीदारी निभा कर अपने साथी को समानता का अधिकार देने की कोशिश कर रहे हैं। 


यह प्रवृतियां हमारे विकास से जुड़ी हैं, जो एक दिन में नहीं बदल सकती। पिछले 20 से 25 सालों में समानता की उठी मांग ने यह सोचने पर मजबूर किया है।
डॉ़ चेतन लोखंडे, प्रसिद्ध मनोचिकित्सक  

पुरुष हमेशा अपने द्वारा किए जाने वाले कार्य को जरूरत से ज्यादा आंकते हैं, जबकि वहीं वह महिलाओं के काम को हमेशा कम आंकते हैं। साथ ही पुरुष अक्सर काम की कठिनाई को नहीं समझ पाते, जबकि महिलाएं इस एहसास को अच्छे से कर पाती हैं। 
प्रोफसर लेयन के्रग, डायरेक्टर, सोशल पॉलिसी रिसर्च सेंटर, यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स

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