जबलपुरPublished: Mar 07, 2019 08:05:39 pm
shyam bihari
जबलपुर नगम निगम के जिम्मेदारों की कार्यशैली से बिगड़ रहे हालात
kachara
जबलपुर। स्वच्छता रैंकिंग-2019 में जबलपुर शहर का पिछडऩा चौंकाने वाला नहीं है। क्योंकि, जिस अंदाज में यहां निगम के जिम्मेदार काम करते हैं, उससे तो राष्ट्रीय स्तर पर 25वें पायदान पर भी रहना चौंकाने वाला है। इनोवेशन और बेस्ट प्रैक्टिस के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर बेस्ट सिटी का अवॉर्ड पाकर कॉलर ऊंची करके चल रहे जिम्मेदारों के पास कुछ तो कहने के लिए मिल गया। अब इस उपलब्धि का प्रचार करने में भी लाखों रुपए खर्च कर दिए जाएं, तो कोई ताज्जुब वाली बात नहीं होगी। असल में शहर के जिम्मेदारों को ‘करना कम, बताना ज्यादाÓ की अजीब किस्म की बीमारी लग गई है। इससे कभी-कभी पुरस्कार तो मिल जाते हैं, लेकिन मूल समस्याएं जस की तस रहती हैं।
अच्छी बात है कि शहर में नवाचार के रूप में कठौंदा में 50 एकड़ क्षेत्र में स्वच्छता पार्क बनाया जा रहा है। लेकिन, जमीनी स्तर की स्थिति ‘दूर के ढोल सुहावनेÓ वाली कहावत पर खरी उतर रही है। कठौंदा में कचरे से बिजली बन रही है, यह निश्चित रूप से शानदार काम है। लेकिन, यह भी देखना होगा कि आखिर वहां कचरे का पहाड़ क्यों लगा है? आसपास का भूगर्भीय पानी प्रदूषित क्यों हो रहा है? आसपास से गुजरते समय सांस लेना मुश्किल क्यों होता है? रहवासियों की शिकायतें की फाइलों के भी पहाड़ बन क्यों बनते जा रहे हैं?
आम जनता के साथ नगर सरकार में विपक्ष की भूमिका निभाने वालों ने तो जिम्मेदारों को पूरी तरह फेल बताया है। विपक्ष का कहना है कि सफाई व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए जमीनी स्तर पर ठोस प्रयास करने के बजाय नगर निगम प्रशासन का पूरा फोकस प्रचार पर है। हालत यह है कि पूरा शहर बीमारियों की चपेट में है। मच्च्छरों का झुंड दिन-रात साल के बारहों महीने गुर्राता रहता है। सीवर लाइन की बदबू से लडऩा लोगों की नियति बन गई है। हद तो ये है कि शहर को स्वच्छ बनाने के लिए ब्रांडिंग और अन्य आयोजनों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। डेढ़ करोड़ रुपए हाफ मैराथन पर खर्च हुए। 350 से ज्यादा कलाकारों के माध्यम से सिटी ब्यूटीफिकेशन कराया गया। नर्मदा आरती, इको टूरिज्म पर राष्ट्रीय और सम्भाग स्तरीय कार्यशाला हुई। निगम के सफाई अमले में 216 वाहन ठेकेदार के लगे हैं। 158 वाहन निगम के कचरा कलेक्शन के लिए दौड़ रहे हैं।