हिमानी बताती हैं कि मेरा 1990 में मध्यप्रदेश की पीएससी परीक्षा में चयन हुआ। मेरिट लिस्ट में मैं इकलौती लड़की थी। पूरे राज्य में 1982 के बाद अकेली महिला डीएसपी बनी तो उस दौर में खुद को साबित करना आसान नहीं रहा, लेकिन पिताजी की सीख हमेशा याद रही। उनका मानना था कि लड़कियां अपनी काबिलियत साबित करके किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं।
उनका मानना है कि पुलिस ही नहीं, वर्दी वाली किसी भी सर्विस में महिलाओं के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। अपने पद पर रहते हुए खुद को साबित करना, परिवार की जिम्मेदारियों का संभालना, दोनों ही मोर्चों पर महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में परिवार व जीवनसाथी परिस्थितियों को समझने वाले और मददगार हो तो चुनौतियां आसान हो जाती हैं। हिमानी बताती हैं कि उनके पति विनीत खन्ना डीआइजी हैं और उनका हमेशा सहयोग करते हैं। उनके पिता प्रोफेसर टी.सी. जैन ने उन्हें कभी खुद को कमजोर नहीं समझने का हौसला दिया।
वे कहती हैं कि पितृसत्तात्मक सोच को खत्म करना आसान नहीं, लेकिन उसे बदला जा सकता है। पहले भले ही लोग आपको न स्वीकारें, लेकिन अपने कार्यों से काबिलियत साबित करेंगी, तो लोगों की सोच में बदलाव आएगा। आज भी चुनौती कम नहीं है, बस उसका रूप बदल गया है। अब लोग वर्दी वाली सर्विस में बेटियों को भेजना चाहते हैं, लेकिन फील्ड पर काम करते वक्त पुरुषवादी सोच का सामना करना पड़ता है।