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अपने बच्चों को मदद करने और इस्तेमाल किये जाने के बीच फ़र्क़ समझाएं

locationजयपुरPublished: Jan 21, 2020 06:07:20 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मनोचिकित्सक हेलेन रीस कहती हैं कि कुछ बच्चे बहुत उदार होते हैं लेकिन अक्सर वे खुद को ठगा हुआ भी महसूस करते हैं। इसलिए अपने बच्चों को उदारता की सीमा भी बताएं।

अपने बच्चों को मदद करने और इस्तेमाल किये  जाने के बीच फ़र्क़ समझाएं

अपने बच्चों को मदद करने और इस्तेमाल किये जाने के बीच फ़र्क़ समझाएं

जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं वे अपनी दोस्ती को ज्यादा महत्त्व देने लगते हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (Harvard University) में मनोचिकित्सा की प्रोफेसर और ‘द इम्पैथी इफेक्ट’ (The Empathy Effect) की लेखक हेलेन रीस कहती हैं कि कुछ बच्चे केवल देने में विश्वास करते हैं लेकिन इसके भावनात्मक पहलू से वे अनभिज्ञ होते हैं। उन्हें लगता है कि यह एनका नैतिक गुण है जबकि इस प्रक्रिया में वे अक्सर खुद को ठगा हुआ भी महसूस करते हैं। वे सबसे अधिक परोपकारी बनने की कोशिश करते हैं। मनोवैज्ञानिक और Give and Take के लेखक एडम ग्रंट कहते हैं कि आज हम सहानुभूति में तेज गिरावट का सामना कर रहे हैं, दयालुता हाशिए पर खड़ी है लेकिन हम यह जोखिम नहीं उठा सकते हैं। इसलिए हमें अपने बच्चों को उदारता की सीमा के बारे में बताना चाहिए। ऐसे ही सात तरीकों से हम आपको रुबरु करवा रहे हैं।
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बच्चों की प्रशंसा करें
स्कूली बच्चे अक्सर खुद को मध्यस्थता की भूमिका में फंसा हुआ सा महसूस करते हैं। अपने दोस्तों के साथ तारतम्य बिठाने के लिए उसे अपने अंदर बहुत कुछ बदलना पड़ता है। किशोरों के पास वयस्कों की भांति दोस्ती में ज्यादा आजादी नहीं होती। यह स्वीकार करें कि संतुलन बहाल करने में समय और साहस लगता है। उनके ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों के लिए हमें उनकी प्रशंसा कर हौसला बढ़ाना चाहिए।
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भावनाओं का सम्मान करें
बच्चे मदद के लिए तैयार रहते हैं लेकिन बड़े जब उन्हें उनके व्यवहार पर सलाह देने लगें तो वे खामोश या विद्रोह भी करने लगते हैं। इसलिए हमें ऐसे माहौल बनाने की जरुरत है जहां बच्चे बिना किसी नकारात्मकता के जो महसूस करते हैं वैसा व्यवहार कर सकें। स्वायत्तता की उनकी भावनाओं का सम्मान करना भी जरूरी है। लेकिन एकतरफा दोस्ती में खुद का नुकसान न करने की सलाह भी दें।
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अंतर करना भी सिखाएं
अपने बच्चों को आत्म-त्याग और पारस्परिकता में अंतर करना सिखाएं। कहानियों, नैतिक शिक्षाओं और पौराणिक या पंचतंत्र की कथाओं के जरिए उन्हें उदाहरण देकर स्वार्थी मित्रों के लिए आत्म त्याग करने और अंत में खाली हाथ न रह जाने के अंतर को भी समझाएं। दोसती में एकतरफा लेन-देन सही नहीं, हमेशा देते रहना आपके महत्त्व को घटाता है। बच्चों को यह सोचने के लिए प्रेरित करें कि उनकी मदद के लिए कौन सही पात्र है और कहां उन्हें पीछे हट जाना चाहिए। उदार होने का यह मतलब सह नहीं कि हम अपना ही नुकसान करवाते रहें।
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वे ही क्यों करें मदद
अपने बच्चों को समझाएं कि हमेशा वे ही दूसरों की मदद क्यों करें? उन्हें बताएं कि दोस्ती में मदद करना एक साझा जिम्मेदारी होनी चाहिए। जब बच्चे यह समझने लगें कि सहानुभूमि और मदद करने का जज्बा दो-तरफा भावना होती हैं तो माता-पिता इस बात से निश्चिंत हो सकते हैं कि कोई उन्हें मूर्ख बनाकर लगातार उनका लाभ उठा सकता है।
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रुढि़वादी दायरे से बाहर सोचें
माता-पिता को इस रूढ़िवादिता को भी चुनौती देने की जरूरत है कि केवल लड़कियां ही भावनात्मक पहलू उजागर करें, मर्द अपनी भावनाओं को उजागर नहीं करते। यह दोनों के लिए हानिकारक है। अपनी भावनाओं को व्यक्त न कर पाने के कारण ही आज हमारे समाज में पुरुषों में अकेलेपन और आत्महत्या की दर तेजी से बढ़ रही है।
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बच्चों को भटकने न दें
अपने किशोर बच्चों को बताएं कि उनकी मदद की भी एक सीमा है। वे हर किसी की मदद नहीं कर सकते। हर समस्या का अलग समाधान होता है। इसलिए किसी और को वह भूमिका निभाने दें। अगर बच्चा अपने दायरे से बाहर जाकर मदद करने का प्रयास कर रहा है तो उसे भटकने न दें। यह एक प्रभावी तरीका है क्योंकि ऐसा कर के आखिर में वह नुकसान ही करेगा।
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भावनाओं को पहचानना सिखाएं
शोध कहते हैं कि हमारा मूड और भावनाएं बहुत जल्दी पहचान में आ जाती हैं। खासकर स्कूली बच्चों में यह ज्यादा उजागर होती हैं। इसलिए जैसे हमारे दासतों की भावना होती है कुछ देर बाद हम भी वैसा महसूस करने लगते हैं। इन तीव्र भावनाओं को पहचानना भी आना चाहिए। संवेदनशील लोगों को सबसे ज्यादा ठेस लगती है। इसलिए बच्चों में स्वस्थ संबंधों को विकसित करने के लिए जरूरी है कि हम उन्हें करुणा और आत्म-करुणा के बीच संतुलन बनाने में मदद करें। आत्म-उपेक्षा वास्तव में जीवन के लिए एक खतरनाक दृष्टिकोण है।
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