जयपुर

विश्व मृदा दिवस : रसायनों का प्रयोग से खत्म हो रही है मिट्टी की उर्वरा शक्ति

अधिक उत्पादन की लालसा में खेतों में किया जा रहा है रसायनों का अत्यधिक प्रयोग

जयपुरDec 04, 2019 / 08:33 pm

Suresh Yadav

विश्व मृदा दिवस : रसायनों का प्रयोग से खत्म हो रही है मिट्टी की उर्वरा शक्ति

जयपुर।
हमारा देश विविधताओं से भरा है। यह विविधता केवल भाषा, वेशभूषा और परिवेश में ही नहीं बल्कि मृदा में भी है। देश भर में विभिन्न प्रकार की मृदा पाई जाती है जो कि फसलों को जीवन प्रदान करती है। आज विश्व मृदा दिवस है। हमारी मिट्टी के प्रति भी हमारा कुछ दायित्व है। दायित्व, इसे संरक्षित रखने का, इसे उर्वरक बनाने का। हमने मिट्टी से सेना निकलने की कहावत तो सुनी ही है। यह कहावत भारत में दशकों से चरितार्थ भी हो रही है। देश के खाद्यान भंडार में बड़ी मात्रा में अनाज की पैदावार हुई। लेकिन इसके पीछे रसायनों का दुष्परिणाम भी सामने आने लगा है। इसका कारण यह रहा कि हमने मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाए जाने वाले प्राकृतिक उपायों को छोड़कर रसायनों पर निर्भरता बढ़ा दी है।
भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित
अगर हम बात करे भूमि की उर्वरा शक्ति की तो देश में हरित क्रांति आने की वजह से रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म हो रही है। किसानों के मित्र कहे जाने वाले कीड़े, केंचुएं भी खत्म हो रहे हैं। मिट्टी का उपजाऊपन बनाए रखने के अनुकूल खेती के जो तौर-तरीके बहुत समय से चले आ रहे थे, उन्हें छोड़कर रसायनों के भारी उपयोग की ऐसी तकनीकें अपनाईं, जो मिट्टी के उपजाऊपन के लिए और हानिकारक सिद्ध हुईं। हमारे पूर्वज किसान आधुनिक वैज्ञानिक शब्दावली के ये नाम तो नहीं जानते थे कि इतना नाइट्रोजन चाहिए, इतना फास्फोरस या इतने सूक्ष्म तत्व, पर पीढिय़ों के संचित अनुभव से उन्होंने यह सीख लिया था कि इन पोषक तत्वों को संतुलित मात्रा में उपलब्ध करवाने के लिए कौन-से उपाय जरूरी हैं। दलहनी फसलों में वायुमंडल से नाइट्रोजन निशुल्क प्राप्त करने की अद्भुत क्षमता है।
जैविक खाद को देना होगा बढ़ावा
कृषि भूमि को रसायनों के प्रभाव से मुक्त करने के लिए हमें अपने देश में उपलब्ध जैविक खाद का भरपूर उपयोग करना होगा और किसानों को इस कार्य के लिए तकनीकी और आर्थिक सहायता देनी होगी जिससे हमारे कृषिभूमि के साथ नदी, तालाब का पानी जहर होने से बच जाए इसी रासायनिक खाद की वजह से जमीन में जो जहर घुल रहा है उससे भी बचा जा सकता है। भारत जैसे गर्म जलवायु और भारी मानसूनी वर्षा के क्षेत्र में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के बह जाने और पर्यावरण को प्रदूषित करने की संभावना अधिक रहती है। मिट्टी का उपजाऊपन बनाने वाले अनेक सूक्ष्म जीवों, केंचुओं आदि के लिए तो ये रसायन कहर ढाते हैं। रासायनिक खाद का अधिक उपयोग होने पर केंचुओं को तड़पते हुए देखा जा सकता है। साथ ही किसानों के मित्र अनेक अन्य कीट-पतंगों, पक्षियों और अन्य जीवों के लिए भी ये रसायन हानिकारक हैं।
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