अंग्रेजी हम कितनी भी बोल लें, लेकिन जब अपनों से बात की बात आती है, तो मातृभाषा से बेहतर कुछ नहीं लगता। इसी तरह जब लिख कर बात करनी हो, तब भी अपनी असली काम अपनी भाषा ही करती है। यह अपनेपन का एहसास कराती है। अपनों के और करीब लाती है। इसे ध्यान में रखते हुए इन युवाओं ने खतों की यह सुविधा क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराई है। पहले अंकित को लगा था कि लोग अंग्रेजी में खत लिखवाना ही पसंद करेंगे। बाद में उन्होंने जाना कि लोग मातृभाषा में एहसास बयां करने में ज्यादा भरोसा करते हैं। खत मोहब्बत वाला हो, परिवार के किसी सदस्य का हो या किसी दोस्त का हो..अपनी भाषा में बयां किए एहसास सीधे दिल में उतरते हैं।
कुछ मिसिंग है… नई तकनीकों और सुविधाओं के बीच हम खुद को बड़ा आधुनिक समझते हैं। पर सच कहा जाए, तो हम गुजरे जमाने को बहुत मिस करते हैं। हममें से ऐसा कौन है, जो 80-90 के दशक की बातें याद करके भावुक नहीं हो जाता? उन्हीं बातों में से एक है खतों और डाकिये का आना…। डाकिया अभी भी आता है…पर पोटली भर के जज्बात नहीं लाता। हर चीज हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन अपने हाथों से खत लिख कर रिश्तों में ऊर्जा भरते रहना हमारे हाथ में है। तो चलिए..जो अधूरा है, उसे पूरा करें। आज किसी अपने को खत लिखें। यकीनन जबाव आएगा!