scriptअखिरकार लौट आया खत का वो गुजरा जमाना… | The lost art of letter writing is reviving | Patrika News

अखिरकार लौट आया खत का वो गुजरा जमाना…

locationनई दिल्लीPublished: Sep 15, 2017 06:24:14 pm

Submitted by:

Ekktta Sinha

खत खत नहीं होते, बल्कि जज्बातों के दस्तावेज होते हैं…और जज्बात अपनी ही भाषा में बयां किए जाएं, तभी असर करते हैं। 

letter photo
मेधाविनी मोहन
आप कहेंगे कि ईमेल और वॉट्सऐप के जमाने में हम कहां लेकर बैठ गए खत-वत की बातें? लेकिन अपने दिल से पूछ कर देखिए। इंटरनेट की चैट में वैसे एहसास कहां, जैसे कागज पर स्याही से उकेरे हुए शब्द जगाते हैं। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि कुछ नवयुवक खत लिखने की परंपरा को आज भी बखूबी सहेज रहे हैं।
लोगों के जज्बातों को ये शब्द देते हैं
द इंडियन हैंडरिटन लेटर कॉरपोरेशन के अंकित अनुभव हों या लेटरामेल के सुमन्यु वर्मा और संदीप, ये लोग अपने लेखन की प्रतिभा का प्रयोग दिल से दिल तक बात पहुंचाने में कर रहे हैं। हर कोई लिख नहीं सकता, इसलिए लोगों के जज्बातों को ये शब्द देते हैं। इसे इन्होंने स्टार्टअप की तरह शुरू किया है और अब तक हजारों खत लिख चुके हैं। जाहिर है कि लोग इस विचार को पसंद कर रहे हैं। वे इस भागती-दौड़ती जिंदगी में कुछ देर ठहर कर खत लिखना और पढऩा चाहते हैं। उन सच्चे एहसासों को महसूस करना चाहते हैं, जो डिजिटल अभिव्यक्ति के दौर में कहीं खो-से गए हैं।
letter photo
ankit anubhav IMAGE CREDIT: ankit anubhav
अपनापन अपनी ही भाषा में है
अंग्रेजी हम कितनी भी बोल लें, लेकिन जब अपनों से बात की बात आती है, तो मातृभाषा से बेहतर कुछ नहीं लगता। इसी तरह जब लिख कर बात करनी हो, तब भी अपनी असली काम अपनी भाषा ही करती है। यह अपनेपन का एहसास कराती है। अपनों के और करीब लाती है। इसे ध्यान में रखते हुए इन युवाओं ने खतों की यह सुविधा क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराई है। पहले अंकित को लगा था कि लोग अंग्रेजी में खत लिखवाना ही पसंद करेंगे। बाद में उन्होंने जाना कि लोग मातृभाषा में एहसास बयां करने में ज्यादा भरोसा करते हैं। खत मोहब्बत वाला हो, परिवार के किसी सदस्य का हो या किसी दोस्त का हो..अपनी भाषा में बयां किए एहसास सीधे दिल में उतरते हैं।
कुछ मिसिंग है…

नई तकनीकों और सुविधाओं के बीच हम खुद को बड़ा आधुनिक समझते हैं। पर सच कहा जाए, तो हम गुजरे जमाने को बहुत मिस करते हैं। हममें से ऐसा कौन है, जो 80-90 के दशक की बातें याद करके भावुक नहीं हो जाता? उन्हीं बातों में से एक है खतों और डाकिये का आना…। डाकिया अभी भी आता है…पर पोटली भर के जज्बात नहीं लाता। हर चीज हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन अपने हाथों से खत लिख कर रिश्तों में ऊर्जा भरते रहना हमारे हाथ में है। तो चलिए..जो अधूरा है, उसे पूरा करें। आज किसी अपने को खत लिखें। यकीनन जबाव आएगा!
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो