जबलपुरPublished: Feb 24, 2019 08:12:13 pm
shyam bihari
चित्रकूट जिले से अपहृत बच्चों की मौत के बाद चिघाड़ रही है पुलिस की नाकामी
27 दिसंबर को रेत का अवैध खनन रोकने गए वनकर्मियों पर सौ से ज्यादा ग्रामीणों ने किया था हमला, डिप्टी रेंजर कह रहे उन्ही में से एक था सूबेदार सिंह
जबलपुर. ‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसैं, तिलक देत रघुवीर।Ó यह पंक्तियां जाने कब से उत्तरप्रदेश के पूरे अवध क्षेत्र में कही और सुनी जाती हैं। उसी चित्रकूट में रहने और मध्यप्रदेश के हिस्से वाले स्कूल में पढऩे वाले दो बच्चों का अपहरण और फिर उनकी हत्या से किसी की भी रूह कांप सकती है। दोनों बच्चों को फिरौती के लिए अगवा करने वालों ने हफ्तेभर के करीब पुलिस और परिजन को छकाया। लेकिन, पुलिस सिर्फ सांप गुजरने की लकीर पीटती रही। जबलपुर पुलिस की भी एक जांच टीम इस मामले में जुड़ी थी। लेङ्क्षकन, कर कुछ नहीं पाई। परिजन खून के आंसू रोते रहे। पैसे का जुगाड़ भी किया। लेकिन, दरिंदों को मासूमों पर दया नहीं आई। आखिर में बेरहमी से मार ही डाला। चित्रकूट, बांदा, सतना के जिलों में वारदातों को वीभत्स रूप पहले भी समाने आता रहा है। लेकिन, ददुआ जैसों को नाम गरीबों की मदद से भी जुड़ता रहा। इस हत्याकांड ने तो पूरे सिस्टम को ही हिला दिया। बच्चों का चेहरा देखकर हर कोई कह रहा है कि यह तो हैवानियत की हद ही हो गई। अपराधी पढ़े-लिखे बताए जा रहे हैं। एक तो बच्चों का ट्यूटर कहा जा रहा है। इस हत्याकांड से मानवता तो शर्मसार हुई ही है। रिश्ते-नातों और विश्वास का ताना-बाना भी तार-तार हो गया है। मप्र सरकार की नाकामी भी चीख-चीख कर सवाल खड़े कर रही है। सरकार बदलने के बाद जिस तरह से हत्याएं हुई हैं, उससे सत्ता पक्ष वाले भी कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करने को मजबूर हो रहे हैं। हालांकि, पुलिस का सिस्टम कोई एक-दो दिन में बनता-बिगड़ता नहीं है। यह जरूर है कि तबादलों की आंधी ने बहुत कुछ कहने का मौका दिया है। अब सरकार को इस मुद्दे पर युद्धस्तर पर ऐलाने जंग करना होगा। मप्र शांति का टापू है, यह साबित करने के लिए कड़े संदेश देने होंगे। अपराधी किसी का सगा नहीं होता। चित्रकूट-सतना-जबलपुर तक अपराधियों का कनेक्शन बनने की भी आंशका जताई जा रही है। ऐसे में जबलपुर पुलिस को भी बाज की नजर रखनी होगी।