एलजीबीटीज पर आधारित 10 भारतीय फिल्में 1. रांडू पेनकुट्टीकल (दो लड़कियां) 1978
इस फिल्म के लेखक वीटी नंदकुमार हैं। यह एक मलयालम उपन्यास पर आधारित फिल्म है। इसमें दो लड़कियों के बीच के प्रेम संबंधों को दर्शाया गया है। फिल्म समाज में प्रचलित पुरुष-महिला संघों की अपरिहार्यता पर विचार करने पर जोर देती है।
इस फिल्म के लेखक वीटी नंदकुमार हैं। यह एक मलयालम उपन्यास पर आधारित फिल्म है। इसमें दो लड़कियों के बीच के प्रेम संबंधों को दर्शाया गया है। फिल्म समाज में प्रचलित पुरुष-महिला संघों की अपरिहार्यता पर विचार करने पर जोर देती है।
2. मित्राची गोस्ता (एक मित्र की कहानी) 1981
यह एक मराठी फिल्म है। इसने पहली बार भारतीय सामाजिक मानदंडो को तोडऩे की हिम्मत करीब चार दशक पूर्व दिखाई थी। उस समय इस विषय पर बातचीत करना भी निषेध माना जाता था। विवादों में घिरने की वजह से इस फिल्म को उम्मीद के अनुरूप वाहवाही नहीं मिली। लेकिन भारतीय फिल्मों में समलैंगिकों के लिए एक नया मार्ग खोलने का काम किया।
यह एक मराठी फिल्म है। इसने पहली बार भारतीय सामाजिक मानदंडो को तोडऩे की हिम्मत करीब चार दशक पूर्व दिखाई थी। उस समय इस विषय पर बातचीत करना भी निषेध माना जाता था। विवादों में घिरने की वजह से इस फिल्म को उम्मीद के अनुरूप वाहवाही नहीं मिली। लेकिन भारतीय फिल्मों में समलैंगिकों के लिए एक नया मार्ग खोलने का काम किया।
3. फायर (आग) 1990
इस फिल्म ने भारत में समलैंगिकता को मुख्यधारा में लाने में मदद की। यह एक समलैंगिक संबंधों की कहानी पर केन्द्रित है। भारतीय सिनेमा में हिंदी में पहली फिल्म थी। इसे प्रचलित पितृसत्तात्मक समाज के एक मजबूत प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया।
इस फिल्म ने भारत में समलैंगिकता को मुख्यधारा में लाने में मदद की। यह एक समलैंगिक संबंधों की कहानी पर केन्द्रित है। भारतीय सिनेमा में हिंदी में पहली फिल्म थी। इसे प्रचलित पितृसत्तात्मक समाज के एक मजबूत प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया।
4. बोमगे 1996
यह एक भारतीय लघु फिल्म है, जो छह भागों में है। इसका हर भाग आर राव की कविता पर आधारित है। यह सबसे कट्टर समलैंगिक गाथाओं में से एक है। इस फिल्म में इस बात पर जोर दिया गया है कि किसी को समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होने के नाते खुद से अलग नहीं मानना चाहिए। सभी को एक-दूसरे की यौन प्राथमिकता का सम्मान करना चाहिए।
यह एक भारतीय लघु फिल्म है, जो छह भागों में है। इसका हर भाग आर राव की कविता पर आधारित है। यह सबसे कट्टर समलैंगिक गाथाओं में से एक है। इस फिल्म में इस बात पर जोर दिया गया है कि किसी को समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होने के नाते खुद से अलग नहीं मानना चाहिए। सभी को एक-दूसरे की यौन प्राथमिकता का सम्मान करना चाहिए।
5. बॉम्बे 1998
भारतीय सिनेमा की पहली समलैंगिक फिल्मों में से एक है जो शहरी जीवन में व्याप्त समलैंगिकता पर गंभीरता से विचार करता है। यह उन तीन एनआरआई के बारे में बताता है जो विदेश से बॉम्बे समलैंगिकता की खोज में आता है। यह समलैंगिकता को लेकर रुढिवादी धारणाओं को तोडऩे पर भी जोर देता है।
भारतीय सिनेमा की पहली समलैंगिक फिल्मों में से एक है जो शहरी जीवन में व्याप्त समलैंगिकता पर गंभीरता से विचार करता है। यह उन तीन एनआरआई के बारे में बताता है जो विदेश से बॉम्बे समलैंगिकता की खोज में आता है। यह समलैंगिकता को लेकर रुढिवादी धारणाओं को तोडऩे पर भी जोर देता है।
6. संचरम (द जर्नी) 2004
यह मलयालम फिल्म है जो बचपन से ही दो लड़कियों के बीच के प्रेम कहानी पर आधारित है। यह रोमांस के बारे में बात करता है और समलैंगिकता के प्रति समाज के दृष्टिकोण को तोडऩे की कोशिश करता है।
यह मलयालम फिल्म है जो बचपन से ही दो लड़कियों के बीच के प्रेम कहानी पर आधारित है। यह रोमांस के बारे में बात करता है और समलैंगिकता के प्रति समाज के दृष्टिकोण को तोडऩे की कोशिश करता है।
7. माई ब्रदर निखिल 2005
यह ऐसी फिल्म है का एक और उदाहरण है जो समलैंगिकता को असामान्य सा मिजाक के रूप में नहीं लेता है। यह फिल्म एक समलैंगिक दंपत्ति के चारों ओर घूमती है। फिल्म में दंपत्ति समाज की रुढिवादी सोच से पिनटने की कोशिश करता है। इस फिल्म ने ऐसे समय में एड्स के बारे में बात करने की कोशिश की जब लोग इसको लेकर जागरूक नहीं थे।
यह ऐसी फिल्म है का एक और उदाहरण है जो समलैंगिकता को असामान्य सा मिजाक के रूप में नहीं लेता है। यह फिल्म एक समलैंगिक दंपत्ति के चारों ओर घूमती है। फिल्म में दंपत्ति समाज की रुढिवादी सोच से पिनटने की कोशिश करता है। इस फिल्म ने ऐसे समय में एड्स के बारे में बात करने की कोशिश की जब लोग इसको लेकर जागरूक नहीं थे।
8. अरेकती प्रीमर गोलपो (बस एक और प्रेम कहानी) 2010
यह बंगाली फिल्म अपने उभयलिंगी फिल्म है जो एक ट्रांसजेंडर फिल्म निर्माता के जुनून से जुड़ी है। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के दोषपूर्ण पहलुओं पर आधारित है। यह धारा 377 के दुरुपयोग और उससे ट्रांसजेंडर्स को होने वाली मानसिक पीड़ा पर केन्द्रित है।
यह बंगाली फिल्म अपने उभयलिंगी फिल्म है जो एक ट्रांसजेंडर फिल्म निर्माता के जुनून से जुड़ी है। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के दोषपूर्ण पहलुओं पर आधारित है। यह धारा 377 के दुरुपयोग और उससे ट्रांसजेंडर्स को होने वाली मानसिक पीड़ा पर केन्द्रित है।
9. व्हाई आई एम 2011
यह कॉलेज के चार लोगों के जीवन पर आधारित है। चार लोगों में से एक उमर मुंबई के एक समलैंगिक व्यक्ति की कहानी है। इस फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे पुलिस के अधिकारी अनुच्छेद 377 का दुरुपयोग कर समलैंगिकों का यौन उत्पीडऩ और ब्लैकमेलिंग करते हैं।
यह कॉलेज के चार लोगों के जीवन पर आधारित है। चार लोगों में से एक उमर मुंबई के एक समलैंगिक व्यक्ति की कहानी है। इस फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे पुलिस के अधिकारी अनुच्छेद 377 का दुरुपयोग कर समलैंगिकों का यौन उत्पीडऩ और ब्लैकमेलिंग करते हैं।
10. मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ २०१४
यह फिल्म विकलांग लोगों की उभयवृति और कामुकता पर आधारित है। फिल्म में विकलांगों के बीच समलैंगिक संबंधों को गहराइयों में जाकर सबके सामने लाने का प्रयास है। इसमें समलैंगिकों के प्रति भारतीयों की विकृत मानसिकता दर्शाया गया है।
यह फिल्म विकलांग लोगों की उभयवृति और कामुकता पर आधारित है। फिल्म में विकलांगों के बीच समलैंगिक संबंधों को गहराइयों में जाकर सबके सामने लाने का प्रयास है। इसमें समलैंगिकों के प्रति भारतीयों की विकृत मानसिकता दर्शाया गया है।