भाजपा से निष्कासित नेत्री नूपुर शर्मा के विवादित बयान के बाद बूंदी के एक मौलाना और उसके साथियों ने राज्य में सबसे पहले क्रूर ऐलान ‘…सिर तन से जुदा’ किया। यकीन कीजिए, कत्ल का यह ऐलान खुलेआम पुलिस की मौजूदगी में जिला कलक्टर के दफ्तर के बाहर किया गया। हुआ क्या? आश्चर्य करेंगे… उसकी न गिरफ्तारी हुई और न ही सजा। बस मुकदमा भर कायम हुआ।
इसके उलट कन्हैयालाल के साथ क्या हुआ? उसने नूपुर के समर्थन के एक पोस्ट की। हुआ क्या? पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। उसे कोर्ट से जमानत मिली। ज्यों ही जेल से छूटा, उसे कत्ल करने की धमकियां मिलने लगीं। असहाय कन्हैयालाल सुरक्षा की आस लिए पुलिस की दहलीज पर पहुंचा।
कन्हैया के साथ जो और जैसी क्रूरता हुई, वह अक्षरश: उसने पहले ही अपनी शिकायत में लिखकर पुलिस को सौंप दी थी। कन्हैया को तो अपना काल नजर आ रहा था लेकिन पता नहीं किसके दबाव में पुलिस आंखें बंद करे बैठी थी। नतीजतन कातिलों को धार्मिक उन्माद फैलाने का हौसला मिला और उन्होंने बेखौफ होकर उसका ‘सिर तन से जुदा’ कर दिया। अब सोचिए, यदि राज्य सरकार और पुलिस ने बूंदी की इस क्रूर बयानबाजी का तत्काल ‘सिर कुचल’ दिया होता तो क्या कातिलों की ऐसा दुस्साहस करने की औकात होती? जवाब है नहीं… दरअसल जब राजस्थान में डॉक्टर्स के तबादलों को भी योग्यता और जरूरत की बजाय धर्म से जोड़ दिया जाए तो यह हालात कायम होना लाजिमी है।
चिकित्सा मंत्री ने पिछले दिनों कुछ डॉक्टर्स के तबादले किए। जवाब में किशनपोल से कांग्रेस विधायक अमीन कागजी यह शिकायत लेकर मंत्री के पास पहुंच गए कि तबादला सूची में उनके विधानसभा क्षेत्र से 4 अल्पसंख्यक डॉक्टर्स भी शामिल हैं। वह धार्मिक आधार पर तबादले रद्द करवाकर ही माने।
यह दुर्दांत हत्याकांड साक्ष्य है, इस बात का कि पुलिस की गैर-जिम्मेदारी और अदूरदर्शिता ने ही वैमनस्यता का बीज बो दिया है। बीते कुछ सालों से राजस्थान लगातार धार्मिक उन्माद का दंश झेल रहा है। कभी करौली में रामनवमी के जुलूस पर पथराव तो कभी भीलवाड़ा, जोधपुर, बांसवाड़ा, राजसमंद में दंगे। सिलसिलेवार धार्मिक उन्माद बढ़ रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है, किसी भी वारदात से पहले और बाद में वैमनस्यता बढ़ाने वाले नेताओं के बयान। घिनौनी सियासत का यह भद्दा रूप है।
गलती आमजन की भी है। जो सोशल मीडिया के चंगुल में ऐसी फंसी है कि उसके लिए अपने क्षेत्र, शहर, राज्य और देश की शांति से ज्यादा भड़काऊ बयान एवं वीडियो आगे से आगे ‘फॉरवर्ड’ करना ज्यादा जरूरी है। आज युवा को जाति और धर्म नहीं बल्कि अपने कॅरियर की चिंता ज्यादा है। नौकरी आसानी से मिल नहीं रही। नित नए दिन बेरोजगारी रेकॉर्ड बना नहीं है। ऐसे में बड़ी चिंता यह है कि कहीं सोशल मीडिया का यह घिनौना खेल अब उस शिक्षित बेरोजगार को इस धार्मिक उन्माद की दिशा में न धकेल दे।
अब राज्य में शांति का एकमात्र तरीका यही है कि एक-दूसरे के धर्मों और सिद्धांतों को राजनीतिक हथियार न बनने दें। इससे सांप्रदायिक वैमनस्यता बढ़ाने वालों को सख्त संदेश मिलेगा। कट्टरपंथी तत्वों, नफरत फैलाने और सांप्रदायिक हिंसा करने वालों को कदापि नहीं बख्शा जाए।
सरकार और पुलिस को भी चाहिए कि कर्रवाई की जैसी तत्परता उन्होंने कन्हैयालाल की विवादित पोस्ट पर दिखाई, वैसी ही तेजी अब वह इन दुर्दांत कातिलों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में दिखाए। कातिलों ने हत्याकांड के और हत्या के बाद इत्मीनान से जो वीडियो बनाकर वायरल किए, उन्हें देखने के बाद अब राजस्थान तो चाहता है कि अब इन दुर्दांत कातिलों को सजा-ए-मौत ही मिले।