यूनिवर्सिटियो में कट्टरता से भरी घटनाएं सिर्फ किसी खास देश में नहीं हो रही हैं। बल्कि यह वैश्विक समस्या बन गई है, जो बताती है कि अभिव्यक्ति पर पहरे जैसे हालात हैं।
दीपिका शर्मा, नई दिल्ली
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किसी भी देश की यूनिवर्सिटी या उच्चतम शिक्षा देने वाले संस्थान, उस देश की व्यवस्था के प्रति पनप रहे नए विचारों या पोषित हो रहे परंपरागत विचारों को नए ढंग से पुनव्र्याख्यायित करने की जन्मस्थली होते हैं। लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले एक साल में विचारों की ये जन्मस्थलियां, लगातार हमले और हिंसा का शिकार हुई हैं। ऐसा सिर्फ भारत में या किसी इक्के-दुक्के देश में हो रहा हो, यह भी नहीं है। यह ट्रेंड पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है।
इन हमलों ने दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज में पढऩे वाले छात्रों, स्टाफों, स्कॉलरों आदि सभी की आजादी को खतरे में डाला है। हाल ही में न्यूयॉर्क में स्कॉलरों के एक समूह स्कॉलर एट वर्क (एसएआर) ने एक रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में दुनिया के कोने-कोने की यूनिवर्सिटीज शामिल हैं, जो कई तरह के हमलों और हिंसा का दंश झेल रही हैं। इसके कारण भले ही अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन एक बड़ा कारण कट्टर विचार ही है। लेकिन नतीजा सभी जगह एक ही है। वह है इन हमलों की वजह से दुनिया भर में उच्चतम शिक्षा से जुड़े लोगों में भय व्याप्त है।
एक साल में 40 की मौत
एसएआर की इस रिपोर्ट में एक मई 2015 से 1 सितंबर, 2016 तक दुनिया के 35 देशों में सामने आए कुल 158 मामलों का अध्ययन किया गया है। इन दर्ज किए गए मामलों में 40 लोगों की मौत, हिंसा और गुमशुदगी, 33 गलत तरीके से कानूनी कार्यवाही, 39 गलत कारणों से जेल, 17 लोगों के पद से हटने या अध्ययन बीच में छोडऩे आदि के मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा 9 मामलों में यात्रा करने की मनाही भी यूनिवर्सिटी से जुड़े स्कॉलर, छात्र, प्रोफेसर आदि को झेलनी पड़ी है।
कहती है रिपोर्ट
आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया है कि इन सभी हमलों के चलते अंतत: उच्चतम शिक्षा से जुड़े लोगों की खुली सोच, सवाल पूछने के अधिकार व उनके नए विचारों के पनपने में संकुचन आया है। इस वजह से जो संस्थान नए विचारों व सवाल खड़े करने वाले युवा तैयार करते हैं, वह इन घटनाओं के चलते सिर्फ किताबी ज्ञान देने तक सीमित हो गए हैं।
बना वैश्विक संकट
हिंसा की यह घटनाएं साफ करती हैं कि उच्चतम संस्थाएं कैसे आंतक व हिंसा का शिकार हो रही हैं। यह किसी एक देश या इलाके की समस्या नहीं है बल्कि यह एक ‘वैश्विक संकट’ बनता जा रहा है। ऐसे में उच्चतम शिक्षा में छात्रों, स्कॉलरों व प्रोफेसरों को सुरक्षा देना बहुत जरूरी हो गया है।
मर रहे हैं छात्र
इस अवधि में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और यमन में कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें हिंसकों ने पीडि़तों को सामूहिक रूप से धमकाया। इसी साल जनवरी में एक फिदायिन ने पाकिस्तान की बाचा खान यूनिवर्सिटी में घुसकर हमला कर दिया, जिसमें 22 लोग मारे गए और 19 घायल हो गए थे। इसी तरह इसी साल अगस्त में काबुल की अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ अफगानिस्तान में हुए हमले में 13 लोग मरे।
अकेले लोग भी निशाने पर
रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक साल में अकेले स्कॉलर और छात्रों को भी उनके चुने गए विषयों या उनकी प्रगतिशील सोच की वजह से हिंसा का शिकार होना पड़ा है। अगस्त, 2015 में आईएसआईएस के आतंकियों ने 82 वर्षीय स्कॉलर डॉ. खालिद अल असद का सार्वजनिक रूप से सिर कलम कर दिया था। डॉ. असद सीरिया में पुरावशेषों और सीरियाई भाषा अरमाएक के अध्ययन के पुरोधा माने जाते थे।