स्टॉकहोम
(स्वीडन)। “
जलपुरूष” के नाम से मशहूर
भारत के राजेंद्र सिंह को 26 अगस्त को यहां
पानी का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले
स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित किया
जाएगा। स्वीडन के राजा कार्ल सोलहवें गुस्ताव स्टॉकहोम सिटी हॉल में सिंह को यह
पुरस्कार प्रदान करेंगे। पुरस्कार के तहत एक लाख 50 हजार डॉलर और एक विशेष कलाकृति
दी जाती है।
सिंह को विश्व जल सप्ताह की रजत जयंती के मौके पर यह पुरस्कार
दिया जा रहा है। उनसे पहले सुलभ इंटरनेशनल के डॉ. बिंदेश्वर पाठक (2009), सेंटर फॉर
साइंस एंड एनवॉयरमेंट (2005) और डॉ. माधव चिताले (2013) को यह पुरस्कार मिल चुका
है। सिंह ने पानी की कमी से जूझ रहे राजस्थान में जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय
काम किया है। “स्टॉकहोम वॉटर प्राइज” समिति के निर्णायकों का कहना है कि सिंह की
जल-संचय पद्धति से बाढ़ और मिट्टी के अपरदन का खतरा कम हुआ है, जिससे वन्य जीवन को
भी लाभ पहुंचा है।
उनके तौर-तरीके आसान और सस्ते हैं, जिन्हें सारी दुनिया
में अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने बारिश के पानी को धरती के भीतर पहुंचाने की
प्राचीन भारतीय पद्धति को ही आधुनिक तरीके से अपनाया है। इसमें छोटे-छोटे पोखरों का
निर्माण किया जाता है, जो बारिश के पानी से लबालब भर जाते हैं और फिर इस पानी को
धरती धीरे-धीरे सोख लेती है। पेशे से आयुर्वेद के चिकित्सक सिंह ने राजस्थान में
1980 के दशक में पानी को लेकर काम करना शुरू किया था।
शुरूआत में इस मुहिम
में वह अकेले थे, लेकिन फिर गांव के लोग जुड़ने लगे और तरूण भारत संघ बना। जल संचय
पर काम बढ़ता गया। इसके बाद गांव-गांव में जोहड़ बनने लगे और बंजर धरती पर हरी
फसलें लहलहाने लगी। अब तक जल संचय के लिए करीब साढ़े छह हजार जोहड़ों का निर्माण हो
चुका है और राजस्थान के करीब 1000 गांवों में फिर से पानी उपलब्ध हो गया। दुनियाभर
के लोगों ने उनके इस काम काम को सराहा।
वर्ष 2001 में सिंह को एशिया का
नोबेल माने जाने वाले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष 2008 में गार्डियन
ने उन्हें 50 ऎसे लोगों की सूची में शामिल किया था जो पृथ्वी को बचा सकते हैं। सिंह
ने 2012 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण से यह कहते हुए किनारा कर लिया था
कि सरकार की गंगा के पुनरूद्धार में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने इस प्राधिकरण
को नखदंतविहीन करार देते हुए कहा था कि तीन साल में इसकी केवल दो बैठकें हुई हैं।
स्टॉकहोम वाटर प्राइज समिति ने उनके प्रशस्ति पत्र में लिखा है कि आज की
पानी की समस्या केवल विज्ञान और तकनीक से नहीं सुलझायी जा सकती हैं। ये प्रशासन,
नीति, नेतृत्व और सामाजिक प्रतिरोध की मानवीय समस्याएं हैं। सिंह ने पानी की समस्या
को सुलझाने के लिए सामाजिक क्षमता का विकास किया और इसके लिए परंपरागत तौर तरीकों
को आधुनिक विज्ञान तथा तकनीक से जोड़ा।