पश्चिम रेलवे: विशेष गाडिय़ों के फेरे 7039 से घटकर 204 हुए
Published: Feb 24, 2016 11:38:00 am
रेल बजट स्पेशलः पश्चिम क्षेत्र के रेल यात्रियों की सुविधाओं पर जमकर कैंची चली है। इस
क्षेत्र में चलने वाली विशेष गाडिय़ों के फेरे 7039 से घटकर मात्र 204 रह गए
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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने ‘अच्छे दिनों’ के वादे कर केंद्र में सत्ता हासिल की है। लेकिन इस सरकार के सत्ता में आने के बाद पश्चिम क्षेत्र के रेल यात्रियों की सुविधाओं पर जमकर कैंची चली है। इस क्षेत्र में चलने वाली विशेष गाडिय़ों के फेरे 7039 से घटकर मात्र 204 रह गए हैं। यह खुलासा सूचना के अधिकार के तहत सामने आए तथ्यों से हुआ है।
मध्य प्रदेश के नीमच जिले के निवासी चंदशेखर गौड़ ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पश्चिम रेलवे के मुंबई स्थित कार्यालय से जानकारी मांगी थी कि वर्ष 2011 से 2015 के बीच त्योहारों या अन्य मौकों पर चलने वाली विशेष गाडिय़ों की स्थिति में क्या बदलाव हुआ है। साथ ही प्रीमियम और सुविधायुक्त गाडिय़ों की क्या स्थिति है? गौड़ को 15 फरवरी, 2016 को उप मुख्य परिचालन प्रबंधक (योजना) ने जो जानकारी दी है, वह चौंकाने वाली है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2011-12 में कुल 63 विशेष गाडिय़ां चलीं और इन गाडिय़ों ने कुल 3,371 फेरे लगाए। जबकि 2012-13 में 62 गाडिय़ों ने 2,336 फेरे लगाए। इसी तरह वर्ष 2013-14 में 65 विशेष गाडिय़ों ने 7,039 फेरे लगाए। और वर्ष 2014-15 में 47 गाडिय़ों ने 1,781 फेरे लगाए। इस वर्ष यानी 2015-16 में गाडिय़ों की संख्या घटकर 21 रह गई और फेरे मात्र 204 रह गए।
रेलवे की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया है कि एक तरफ जहां विशेष गाडिय़ों की संख्या और फेरों में भारी कटौती की गई है, वहीं वर्ष 2013-14 में प्रीमियम और सुविधा गाडिय़ां शुरू की गईं हैं। वर्ष 2013-14 में पश्चिम क्षेत्र में 17 प्रीमियम विशेष गाडिय़ों ने 476 फेरे लगाए, जबकि वर्ष 2015-16 में 11 प्रीमियम और पांच सुविधा विशेष गाडिय़ां चलीं, और इन गाडिय़ों ने कुल 394 फेरे लगाए।
गौरतलब है कि विभिन्न त्योहारों और छुट्टियों के मौकों पर रेल विभाग विशेष गाडिय़ां चलाता है, क्योंकि इन मौकों पर यात्रा करने वालों की संख्या बढ़ जाती है। इन गाडिय़ों में वातानुकूलित, स्लीपर से लेकर सामान्य डिब्बे भी लगे होते हैं। इनका किराया भी सामान्य अर्थात मेल या एक्सप्रेस का हेाता है। इन गाडिय़ों में कटौती करने से सबसे ज्यादा परेशानी गरीब यात्रियों को उठानी पड़ी है।
गौर ने आईएएनएस से कहा कि उन्हें त्योहार के मौके पर यात्रा करने पर इस बात का आभास हुआ कि रेलवे ने सामान्य यात्रियों की सुविधा पर डाका डाला है, जिसकी पुष्टि के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी, जिससे सच सामने आया है।
गौर ने कहा, ‘एक तरफ जहां रेलवे ने आम यात्री की सुविधाएं छीनी है, वहीं प्रीमियम और सुविधा गाडिय़ों से आय बढ़ाने का खेल खेला है। इन गाडिय़ों में सामान्य श्रेणी के डिब्बे नहीं होते, बर्थ की कीमत लगती है, किसी वर्ग अर्थात बच्चे या बुजुर्गों को छूट का प्रावधान नहीं है, यात्रा निरस्त करने पर राशि वापस नहीं मिलती है।’
गौर ने कहा, ‘सरकार का अर्थ जनकल्याणकारी शासन देना है, न कि कारोबार करना। मगर बीते वर्षों में पश्चिम क्षेत्र के यात्रियों से छीनी गई सुविधाओं से साबित हो गया है कि सरकार अब जनकल्याणकारी नहीं रही और उसका मकसद सिर्फ अर्थ अर्जित करना हो गया है।’
रेल मंत्रालय में लंबे समय तक सलाहकार रह चुके वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह ने इस बारे में बताया कि इस तरह की विशेष रेल गाडिय़ां चलाने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। लेकिन इसके पहले के रेलमंत्री जनता का ध्यान रखते हुए विशेष अवसरों पर विशेष रेलगाडिय़ां चलाते रहे हैं। उनके अनुसार मौजूदा रेलमंत्री सुरेश प्रभु का जोर राजस्व अर्जित करने पर है। उनका सामाजिक सरोकार उतना नहीं है।
सिंह ने आगे बताया कि रेलमंत्री ने बच्चों के रियायती टिकट भी खत्म कर दिए। ऐसे में विशेष गाडिय़ों की उम्मीद इस सरकार से नहीं की जानी चाहिए। रेलमंत्री सुरेश प्रभु रेलवे को लाभकारी बनाने के लिए जोर लगाए हुए हैं, लेकिन आगामी रेल बजट लगभग 30 हजार करोड़ रुपये के घाटे का हो सकता है।