24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद पूरा देश थम गया था। यही वजह है कि इस दौरान अधिकारिक डेटा कलेक्शन की चाल भी ठंडी पड़ गई। इसलिए अनलॉक-01 के बाद आर्थिक परिस्थितियों का आंकलन करने के लिए अर्थशास्त्री वैकल्पिक स्रोतों का सहारा ले रहे हैं। सरकार भी ‘अप्रेल-मई’ माह के शीर्ष उपभोक्ता मूल्यों के आंकड़े जारी नहीं कर सकी। उद्योग उत्पादन पर आखिरी बार मार्च में आंकड़े जारी किए गए थे। हालांकि शुक्रवार को सरकार की ओर से इंडस्ट्रियल आउटपुट डेटा (Industrial Output Data) जारी किए गए। लेकिन अब भी सांख्यिकीय आकंड़ों के लिए अब भी काम पूरी गति नहीं पकड़ सका है।
01. स्ट्रिन्जेंसी इन्डेक्स- यह ऑक्सफोर्ड का एक ‘गवर्नमेंट रेस्पॉन्स ट्रैकर’ है जो विभिन्न देशों में लॉकडाउन के अलग-अलग क्षेत्रों में पडऩे वाले प्रभाव का आंकलन करता है। इसका उपयोग कर भारत में लॉकडाउन के दौरान 17 सर्वाजनिक क्षेत्रों पर पडऩे वाले प्रभाव का आंकलन किया गया। इन 17 संकेतकों में से 8 ने संक्रमण और उससे निपटने की सरकारी नीतियों के आंकड़े जुटाए जिनमें शिक्षण संस्थानों को बंद करना और बाहर निकलने पर पाबंदी जैसे प्रतिबंध शमिल थे। वहीं 4 अन्य संकेतकों ने आर्थिक नीतियों, नागरिकों की वेतन संबंधी मदद और विदेश से नागरिकों को लाना शामिल था। अन्य 5 संकेतकों ने स्वास्थ्य संबंधी नीतियों जैसे वायरस की जांच और आपातकालीन तैयारी के आंकड़े जुटाए थे। शून्य से 100 अंकों वाले इस इंडेक्स में जून के बाद ७६ अंकों के साथ भारत की स्थिति स्थिर बनी हुई है।
03. बेरोजगारी दर- भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केन्द्र (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी,सीएमआई) के अनुसार लॉकडाउन के बाद के महीनों में 12.20 करोड़ लोगों की नौकरियां गईं और देश में अर्थव्यवस्था की धीमी गति के चलते बेरोजगारी दर बढ़कर 27 फीसदी तक जा पहुंची। लेकिन हाल के आंकड़ों से स्थिति में सुधार नजर आ रहा है। लॉकडाउन के बाद लगातार बढ़ रही बेरोजगारी दर पूर्व की 8.9 फीसदी की तुलना में 5 जुलाई तक 8.6 फीसदी पर थी।
05. खुदरा खरीदारी- मार्च के बाद सूने पड़े रिटेल स्टोर्स में जून में फिर से भीड़ उमडऩे लगी। लेकिन साल भर पहले की तुलना में यहां फूटफॉल अब भी 90 फीसदी कम है।