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लोन की किश्त, बिजली के बिल और गूगल की गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था का हो रहा आंकलन

locationजयपुरPublished: Jul 13, 2020 02:54:34 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

लॉकडाउन और संक्रमण के डर से डाटा कलेक्शन का काम नहीं होने से, सरकारी आंकड़ों का पड़ा अकाल

लोन की किश्त, बिजली के बिल और गूगल की गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था का हो रहा आंकलन

लोन की किश्त, बिजली के बिल और गूगल की गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था का हो रहा आंकलन

कोरोना वायरस कोविड-19 (Covid-19) के चलते चार महीने लॉकडाउन में बिताने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) बुरी तरह लडख़ड़ाने लगी थी। अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पा लाने के लिए अनलॉक-1 (Unlock-01) के जरिए 8 जून से लॉकडाउन (Lockdown) हटा लिया गया। लेकिन इस बीच संक्रमण के डर और तालाबंदी के चलते डेटा कलेक्शन (Lockdown and Data Collection) का काम भी ठप्प पडऩे से सरकार के पास मार्च के बाद के आर्थिक आंकड़े ही उपलब्ध नहीं है। ऐसे में अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था की नब्ज टटोलने के लिए बिजली के बिलों का भुगतान, रोजगार दर और गूगल के मोबिलिटी ट्रेंड्स का सहारा ले रहे हैं। इन संकेतकों से पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था अप्रेल में आई गिरावट से धीरे-धीरे उबर तो रही है लेकिन अब भी इसे पूरी तरह रफ्तार पकडऩे में एक लंबा समय लगेगा।
लोन की किश्त, बिजली के बिल और गूगल की गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था का हो रहा आंकलन
वैकल्पिक आंकड़ों का सहारा
24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद पूरा देश थम गया था। यही वजह है कि इस दौरान अधिकारिक डेटा कलेक्शन की चाल भी ठंडी पड़ गई। इसलिए अनलॉक-01 के बाद आर्थिक परिस्थितियों का आंकलन करने के लिए अर्थशास्त्री वैकल्पिक स्रोतों का सहारा ले रहे हैं। सरकार भी ‘अप्रेल-मई’ माह के शीर्ष उपभोक्ता मूल्यों के आंकड़े जारी नहीं कर सकी। उद्योग उत्पादन पर आखिरी बार मार्च में आंकड़े जारी किए गए थे। हालांकि शुक्रवार को सरकार की ओर से इंडस्ट्रियल आउटपुट डेटा (Industrial Output Data) जारी किए गए। लेकिन अब भी सांख्यिकीय आकंड़ों के लिए अब भी काम पूरी गति नहीं पकड़ सका है।
लोन की किश्त, बिजली के बिल और गूगल की गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था का हो रहा आंकलन
इन संकेतकों का लिया सहारा
01. स्ट्रिन्जेंसी इन्डेक्स- यह ऑक्सफोर्ड का एक ‘गवर्नमेंट रेस्पॉन्स ट्रैकर’ है जो विभिन्न देशों में लॉकडाउन के अलग-अलग क्षेत्रों में पडऩे वाले प्रभाव का आंकलन करता है। इसका उपयोग कर भारत में लॉकडाउन के दौरान 17 सर्वाजनिक क्षेत्रों पर पडऩे वाले प्रभाव का आंकलन किया गया। इन 17 संकेतकों में से 8 ने संक्रमण और उससे निपटने की सरकारी नीतियों के आंकड़े जुटाए जिनमें शिक्षण संस्थानों को बंद करना और बाहर निकलने पर पाबंदी जैसे प्रतिबंध शमिल थे। वहीं 4 अन्य संकेतकों ने आर्थिक नीतियों, नागरिकों की वेतन संबंधी मदद और विदेश से नागरिकों को लाना शामिल था। अन्य 5 संकेतकों ने स्वास्थ्य संबंधी नीतियों जैसे वायरस की जांच और आपातकालीन तैयारी के आंकड़े जुटाए थे। शून्य से 100 अंकों वाले इस इंडेक्स में जून के बाद ७६ अंकों के साथ भारत की स्थिति स्थिर बनी हुई है।
लोन की किश्त, बिजली के बिल और गूगल की गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था का हो रहा आंकलन
02. बिजली उपभोग- भारत के औद्योगिक और विनिर्माण के क्षेत्र में बिजली की मांग भी अर्थव्यवस्था की गति मापने का एक तरीका है। आंकड़े लॉकडाउन के बाद बिजली की मांग में तेज गिरावट दिखाते हैं और अनलॉक-1 के बाद इसमें धीरे-धीरे तेजी आ रही है। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के अनुसार, ऊर्जा मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 28 जून को सप्ताह के आखिर में बिजली की मांग में साल भर पहले की तुलना में 7.4 फीसदी की गिरावट आई है जो कि इससे पहले के सप्ताह की 7.3 फीसदी की तुलना में थोड़ी अधिक है।
03. बेरोजगारी दर- भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केन्द्र (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी,सीएमआई) के अनुसार लॉकडाउन के बाद के महीनों में 12.20 करोड़ लोगों की नौकरियां गईं और देश में अर्थव्यवस्था की धीमी गति के चलते बेरोजगारी दर बढ़कर 27 फीसदी तक जा पहुंची। लेकिन हाल के आंकड़ों से स्थिति में सुधार नजर आ रहा है। लॉकडाउन के बाद लगातार बढ़ रही बेरोजगारी दर पूर्व की 8.9 फीसदी की तुलना में 5 जुलाई तक 8.6 फीसदी पर थी।
लोन की किश्त, बिजली के बिल और गूगल की गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था का हो रहा आंकलन
04. गूगल मोबिलिटी- कोरोना जैसी महामारी और आर्थिक मंदी को मापने का यह अर्थशास्त्रियों का सबसे पसंदीदा तरीका है। महामारी के दौरान लोगों का व्यवहार कैसा रहता है, शहरी और विर्निमाण योजना और महामारी अथवा प्राकृतिक आपदा के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया का इससे सटीक अंदाजा लगाया जा सकता है। गूगल मोबिलिटी के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि जैसे-जैसे लॉकडाउन हटाया गया कार्यस्थल की गतिशीलता में आया सुधार फिर से असमान हो गया है। हलांकि इसमें अप्रेल के बाद कुछ सुधार जरूर हुआ है लेकिन यह अब भी जून की पहली छमाही तक बेसलाइन से औसत 30.4 फीसदी नीचे था।
05. खुदरा खरीदारी- मार्च के बाद सूने पड़े रिटेल स्टोर्स में जून में फिर से भीड़ उमडऩे लगी। लेकिन साल भर पहले की तुलना में यहां फूटफॉल अब भी 90 फीसदी कम है।
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06. ऋण-भुगतान अनुपात- लोन डिपोजिट रेशियो यानी एलडीआर के आंकड़ों से पता चलता है कि बैंक डिपॉजिट ग्रोथ अप्रेल और मई तक ऋणों के भुगतान में तेजी से गिरावट आई थी और निवेश भी ठप्प पड़ गया था। सेंट्रल बैंक के आंकड़ों के अनुसार यह प्रवृत्ति जून में और विस्तारित हुई। यही कारण था कि बैंक में जमा प्रत्येक 100 रुपये के लिए, बैंकों के पास 74 रुपये ऋण ही देने के लिए हैं, जो मार्च में 76.4 रुपए से कम है।
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