1848 में जन्मे रवि वर्मा जब 18 साल के थे, तभी उनकी शादी 12 साल की पुराताठी से हो गई थी। उनका पूरा नाम पुराताठी थिरूनल भागीरथी थम्बूरत्ती था। वे त्रावणकोर साम्राज्य में मावेलिकिरा के एक राजघराने से ताल्लुक रखती थीं। मातृसत्तात्मक परंपरा के चलते बाद में रवि पत्नी के घर में रहने लगते हैं। उनकी पत्नीे चित्रकार की कल्पनाओं के एकदम विपरीत स्वभाव की थीं। वे कला को अच्छा काम नहीं समझती थीं। उन्हें लगता था कि यह समय की बर्बादी है और इससे कुछ भी हासिल नहीं होता। पत्नी की इस सोच से रवि पहले ही आहत थे। रही-सही कसर उनकी सुहागरात में पूरी हो जाती है। पत्नी के कमरे में प्रवेश करने से पहले उनका कलाकार हृदय तरह-तरह की कल्पनाओं में डूबा रहता है। उन्हें मेघदूत की पंक्तियां याद आने लगती हैं। लेकिन जब पुराताठी उनके पास आती है, तो बड़े साधारण तरीके से दीप बुझा कर सुहागरात के लिए समर्पित होती है। कलात्मकता की यह शून्यता उन्हें हमेशा खलती रही।
जब पत्नी कला को महत्व नहीं देती, तो रवि उनसे इतर अपनी प्रेरणा तलाशते हैं। कभी वह उन्हें राजघराने में काम करने वाली नायर स्त्री कामिनी में मिलती है। कभी मायानगरी मुंबई में सुगंधा के रूप में, जहां वे अपनी कला को आगे बढ़ाने के लिए जाते हैं। कहा जाता है कि सुगंधा से उनका अंतरंग रिश्ता रहा था और उनकी बनाई बहुत-सी तस्वीरों में उसका चेहरा दिखाई देता है। यह बात अलग है कि पुराताठी ही हमेशा उनकी पत्नी रहीं। रणजीत देसाई ने मूलत: मराठी में लिखी अपनी किताब राजा रवि वर्मा में एक जगह लिखा है- रवि वर्मा को पुरुतार्थी (पुराताठी) से अपनी कल्पना का प्रेम कभी भी नहीं मिला, लेकिन उसमें पतिनिष्ठा और श्रद्धा की कमी नहीं थी। कुलाचार, रीति-नीति और परंपरागत संस्कारों के कारण दोनों में काफी दूरी बन गई थी। उसे पाट पाना दोनों के लिए संभव नहीं था।
किताब के अनुसार पुराताठी की मृत्यु के समय रवि ने सुगंधा के सामने स्वीकारा भी था- अलग स्वभाव के लोग अगर एक साथ ला दिए जाएं, तो उनके मन की दूरी को समय भी नहीं पाट सकता। मेरी पत्नी राजघराने में पली-बढ़ी एक राजश्री थी। रूपवती न होने पर भी वह मुझे कभी कम सुंदर नहीं लगी। कलाकार के लिए रूप कभी भी महत्वपूर्ण नहीं होता। तुम्हें अचरज होगा, लेकिन वह मुझे तुमसे भी अधिक रूप-संपन्न लगी। रूप से भी अधिक उसे अपने कुलाचार, अपने संस्कारों का बहुत अभिमान था। वह भी एक अलग रूप था। दुनिया के सबसे महान चित्रकारों में गिने जाने वाले रवि ने 2 अक्टूबर 1906 को दुनिया से विदा ली। उन्होंने अनगिनत चित्र बनाए। विभिन्न ऐतिहासिक पात्रों के अलावा अपनी बेटी और पत्नी की बहन तक को कागज पर उकेरा। बस उनकी पत्नी कभी उनकी प्रेरणा न बन सकीं। शायद यही वजह है कि उनके बनाए चित्रों में कहीं भी उनकी पत्नी की तस्वीर देखने को नहीं मिलती है।