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जब हैदराबाद के निजाम ने अपने बेटे के लिए तुर्की के खलीफा की बेटी का हाथ मांगा

– पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान क्यों कह रहे हैं, तुर्क लड़ाके पर बना टीवी सीरियल देखें पाकिस्तानी
-‘रिसरेक्शन : एर्तुगरुल’ (‘Resurrection: Ertugrul)

May 24, 2020 / 01:04 am

pushpesh

टीवी सीरीज ‘रिसरेक्शन : एर्तुगरुल’ (‘Resurrection: Ertugrul)

इन दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तुर्की का टीवी सीरीज ‘रिसरेक्शन : एर्तुगरुल’ (उर्दू में गाजी एर्तुगरुल) देख रहे हैं। वे इससे इतने प्रभावित हुए कि इसे न केवल सोशल मीडिया पर प्रचारित कर रहे हैं, बल्कि पीटीवी को भी इसे दिखाने के लिए कहा है। प्रधानमंत्री की मंशा देखकर मंत्री और समर्थक भी इन दिनों इस चरित्र और टीवी शृंखला की चर्चा में मशगूल हैं। खान ने देश के नागरिकों से एर्तुगरुल से प्रेरणा लेने और पाकिस्तानी पहचान, संस्कृति और परंपरा के बारे में सीखने की बात कह रहे हैं। अब सवाल ये है कि एर्तुगरुल कौन है और इसे फिर से ‘पुनर्जीवित’ क्यों किया जा रहा है। आखिर क्यों एक तुर्क को पहचानने की बात कही जा रही है, जिसे अब से पहले ज्यादातर पाकिस्तानी नहीं जानते थे।
इसका जवाब ढूंढने के लिए सदियों पूर्व चलना होगा। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1919) के दौरान ओटम साम्राज्य (उस्मानी सल्तनत) अपने साम्राज्यवादी हितों की रक्षा के लिए जर्मनी के साथ मित्र राष्ट्रों के खिलाफ लड़ा। इसमें ओटम साम्राज्य हार गया और तब आधुनिक तुर्की का उदय हुआ। युद्ध के बाद तुर्कों ने मुस्तफा कमाल अतातुर्क को अपना सेनापति चुना। अतातुर्क ने पहले खलीफा अब्दुल मजीद द्वितीय को सत्ता से हटाया और फिर उस्मानिया खलीफा को समाप्त कर दिया। खलीफा को निर्वासित कर यूरोप भेज दिया गया। अतातुर्क के इस कदम का सबसे बड़ा विरोध तत्कालीन अविभाजित भारत से हुआ। भारत ने 1919 में उस्मानियाई खलीफा की रक्षा के लिए आंदोलन शुरू किया। हैदराबाद के निजाम ने निर्वासित खलीफा को पैसे भेजना शुरू किया। बढ़ते विरोध को देखते हुए ब्रिटिश और कमाल अतातुर्क ने 3 मार्च 1924 को खलीफा का अध्याय समाप्त कर दिया। इसके साथ ही भारत में खिलाफत आंदोलन भी खत्म हो गया। लेकिन संबंधों को बनाए रखने के लिए हैदराबाद के निजाम ने अपने बेटे प्रिंस आजम जह के लिए खलीफा की बेटी राजकुमारी दुरुह शेहवार को विवाह प्रस्ताव भेजा। ये प्रस्ताव अल्लामा इकबाल लेकर गए, जिन्हें पाकिस्तान अपनी राष्ट्रीय विचारधारा का जनक मानता है। इन दोनों का निकाह वर्ष 1932 में फ्रांस में हुआ और तुर्की की राजकुमारी हैदराबाद के निजाम के घर बहू बनकर आई।
कौन था एर्तुगरुल
एर्तुगरुल 13वीं शताब्दी में काई जनजाति का एक तुर्क था। कहा जाता है कि उसने इसाई बाइजेंटाइन (रोमन साम्राज्य)और दूसरे नास्तिकों के खिलाफ युद्ध कर सभी बाधाओं को पार कर लिया। उसने उस्मानिया के खलीफा और तुर्क साम्राज्य की स्थापना की। यह टीवी शृंखला इसलिए दिलचस्पी पैदा करती है, क्योंकि खलीफा शासन को समाप्त हुए 100 वर्ष होने वाले हैं। अब तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन इस पुनरुत्थानवादी विचारधारा की अगुवाई कर रहे हैं, जो उन्हें सुनहरे अतीत की याद दिलाती है। उन्हें लगता है आज भी तुर्की के सामने वैसी ही बाधाएं हैं, जो एर्तुगरुल के समय 13वी सदी में थी। इस लिहाज से एर्तुगरुल की विचारधारा को फिर से जिंदा करने की जरूरत है। एर्दोगन ने उस्मानिया की विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का समर्थन किया।
हॉलीवुड और बॉलीवुड से नाता तोडऩे की सलाह
इमरान खान पाकिस्तानियों को एर्तुगरुल के जीवन से प्रेरणा लेने की बात कहते हैं। वे कहते हैं, हॉलिवुड और बॉलिवुड का कचरा देखने से बेहतर है वे एर्तुगरुल को देखकर अपने शानदार इस्लामी अतीत को समझें। उन्होंने इन फिल्मों में अश्लीलता के कारण ब्रिटेन में बढ़ते तलाक के मामलों के लिए भी जिम्मेदार ठहरा दिया। हालांकि वे खुद अपने तलाक को इससे जोडऩा नहीं चाहेंगे। वह केवल धार्मिक कट्टरता की बात करते हैं, जिसे डिजिटल दुनिया स्वीकार नहीं करेगी। वे शायद महात्मा गांधी के उस संदेश को भी नहीं मानते, जिसमें उन्होंने कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। अब सवाल ये है कि 21वीं सदी में एर्तुगरुल की खोज कितनी कारगर होगी?
मुशर्रफ ने भी किया था एर्तुगरुल का जिक्र
दूसरी बात ये कि एर्तुगरुल और तुर्की की पहचान बताने को लेकर इमरान और पाकिस्तानियों ने तुर्की की संवेदनाओं का गलत इस्तेमाल किया है। हद तो यह है कि पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर टीवी शृंखला में एर्तुगरुल का किरदार निभाने वाले अभिनेता एंजिन एल्टन को सुझाव दे रहे हैं कि श्वानों को पालतू के रूप में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यह इस्लाम में अशुद्ध माना जाता है।
तुर्की का समाज आज भी पाकिस्तानी समाज की तुलना में काफी हद तक उदार और धर्मनिरपेक्ष है। समस्या यह है कि पाकिस्तानी दुनिया को 13वीं शताब्दी में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। उस्मानियाई खलीफा और एर्तुगरुल पाकिस्तानियों का एकमात्र तुर्की प्रेम नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने कमाल अतातुर्क के पाकिस्तान होने तक का दावा कर दिया। अब दो दशक बाद इमरान उसी राह पर निकल पड़े।
एक सदी पुराना प्रेम कहीं भारी न पड़ जाए
इतना ही नहीं पाकिस्तान के राष्ट्रीय हित भी गलत प्रतीत होते हैं। मसलन, मानचित्र से पता चलता है कि मक्का और मदीना सहित वर्तमान सऊदी अरब का ज्यादातर हिस्सा 1914 में ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा थे। वास्तव में सऊदी अरब का गठन ओटोमन शासन के खिलाफ विद्रोह के परिणामस्वरूप हुआ था। इसलिए राष्ट्रपति एर्दोन जितना एर्तुगरुल की भावना को पुनर्जीवित करने की कोशिश करते हैं, उतना ही सऊदी अरब को असुरक्षित बना रहे हैं। सऊदी अरब पाकिस्तान को सर्वाधिक आर्थिक मदद करने वाला देश है। सऊदी अरब आर्थिक मदद देता है तुर्की कश्मीर पर बयान। ये बात इमरान से ज्यादा वहां की सेना समझती होगी।
आक्रमणकारियों की पहचान का सहारा
एर्तुगरुल की बात करने वाले पाकिस्तान की विचारधारा और उसकी पहचान भी दिलचस्प है। इसकी शुरुआत एक अरब आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम से होती है, जिसने 712 ईस्वी में सिंध पर आक्रमण किया था। अब वह अपनी मिसाइलों के नाम गौरी, गजनवी और अब्दाली जैसे आक्रमणकारियों के नाम पर रख रहा है। उनके पास नाम रखने के लिए कोई भी पाकिस्तानी किरदार नहीं था। 1980 के दशक के अफगान जिहाद के बाद इसने अरब बनने की सक्रिय भूमिका निभाई। अब वह तुर्क बनना चाहता है। खुद की पहचान की बात की जाए तो उसके पास कोई विकल्प नहीं है। इसीलिए वह समय-समय पर अरब, अफगान, फारसी या तुर्की वंश का होने का दावा करता रहता है। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान एक दक्षिण एशियाई देश है।

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