27.4 इंच की कमर यानी खुश हैं आप
एक सर्वे में भी यह सामने आया कि खुद को ‘बहुत खुश’ मानने वालों की वेस्टलाइन 27.4 इंच थी जो ओवर वेट (Overweight) और मोटापे (Obesity) के बीच का साइज है। ऐसे ही अपनी शादी से खुश लोगों की औसत कमर 28 थी। यानि अगर आपके जीवन में प्यार और खुशियों की कमी है तो फास्ट फूड न खाने या जिम में घंटो पसीना बहाने से कुछ नहीं होने वाला।
संकल्प लेने का उद्देश्य क्या है
जरा सोचिए कि हम कोई संकल्प क्यों लेते हैं? ज्यादातर स्वास्थ्य, कर्ज और वजन घटाने जैसे संकल्प बताएंगे। लेकिन यह खुद को गुमराह करने जैसा है। हमारा मकसद अपने जीवन को बेहतर बनाना है, सरल शब्दों में हम खुश रहना चाहते हैं। इसमें बाधा बनती हैं हमारी वे बुरी आदतें जिन्हें हम चाहकर भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। इसलिए सबसे जरूरी यह है कि हम विफलता के असल कारणों को जानकर उसे दूर करने का प्रयास करें ताकि संकल्प पूरे हों और हमारा जीवन बेहतर हो सके।
14 दिन में ही मान जाते हार
पेंसिल्वेनिया स्थित स्क्रैंटन विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों ने अपने एक शोध में पाया कि ऐसे 29 फीसदी संकल्प एक से दो सप्ताह में ही विफल हो जाते हैं। ऐसे ही एक महीने के बाद 36 फीसदी और तीन महीने के अंतराल में हमारे 50 फीसदी संकल्प हवा हो जाते हैं। इसके बाद हम उन पर ध्यान भी नहीं देते। आइए जानते हैं कि संकल्पों को पूरा करने में कहां कमी रह गई? इस तथ्य को समझने के बाद कोई भी संकल्प लेना और उसे पूरा करने में परेशानी नहीं आएगी।
बाधाओं पर देते ध्यान, स्रोत पर नहीं
हम में से ज्यादातर बाधाओं पर ध्यान देते हैं लेकिन उसके असल कारण पर नहीं। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक मार्टिन सेलिगमैन सकारात्मक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ हैं। जहां अधिकांश मनोवैज्ञानिक बड़ी समस्याओं और असामान्य व्यवहार को ठीक करने की कोशिश करते हैं, सेलिगमैन इस बात पर ध्यान देने को कहते हैं कि बुरी आदतों के साथ भी लोग कैसे खुश रह सकते हैं? वे जीवन में खुश रहने के लिए पांच बातों पर जोर देते हैं- सकारात्मक भावना, काम को पूरा करने की लगन, मजबूत रिश्ते और जिम्मेदारी निभाना। सरल शब्दों में भरोसा, परिवार, दोस्त और दूसरों के जीवन को भी बेहतरी बनाने का प्रयास हमें सच्ची खुशियां देता है।
इसलिए नहीं होते हमारे संकल्प पूरे
दरअसल हम खुद से ऐसे संकल्प करते हैं जो वास्तव में हम दिल से करना ही नहीं चाहते। परिवार और दोस्तों का साथ चाहते हैं लेकिन यह करने की बजाय हम जिम में ट्रेडमिल पर पसीना बहा रहे होते हैं। ऐसे संकल्प कुछ दिनों में ही बोझ लगने लगते हें क्योंकि वास्तव में हम ऐसा कुछ नहीं करना चाहते। खुद को फेल होता देख हम प्रयास छोड़कर फिर से पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं। इसकी बजाय अगर यह सोच कर कि पेट कम करने या वजन घटने से आप पहले से ज्यादा आकर्षक दिखेंगे और आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी, उस स्थिति में हम यह काम खुशी-खुशी करेंगे।
पैसे से खुशियां नहीं खरीद सकते
यह कहना कि पैसा खुशियां नहीं खरीद सकता सच है। कम से कम आर्थिक सुरक्षा और खुशी के बीच का संबंध काफी हद तक एक भ्रम है। प्रिंसटन के अर्थशास्त्रियों डैनियल काह्नमैन और एंगस डीटन ने राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में एक पत्र प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था ‘उच्च आय जीवन के मूल्यांकन में सुधार करती है लेकिन भावनात्मक भलाई नहीं’। दोनों ने पाया कि लोग अपनी खुशी के लिए ज्यादा से ज्यादा धन कमाना चाहते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है।
अपने आप से पूछें यह सवाल
इन तमाम जानकारियों के बाद सबसे पहले तो खुद से यह सवाल पूछें कि आपकी जिंदगी में किस चीज की कमी है? घर-परिवार, दोस्तों और भगवान में आस्था के अलावा किन चीजों को आप जीवन में जरूरी मानते हैं? इसके अलावा अपनी सेहत और आर्थिक संपन्नता का भी खयाल रखिए। लेकिन इसी पर अटके न रहिए। क्योंकि भगवान में आस्था, अपने निकट संबंधियों से प्यार करना और नौकरी बदलना जिम जाना या खाने पर नियंत्रण करने से ज्यादा मुश्किल हो। परिणाम की बजाय क्रियान्विती पर ध्यान दें।
खुश रहने के लिए रोज कुछ नया सीखिए
खुश रहने का राज यह है कि उसकी तलाश ही अपने आप में एक सुखद एहसास है। काम पूरा करने को अपना संकल्प न बनाएं बल्कि उसी काम से रोज क्या नया सीख सकते हैं इसे अपनी आदत बनांए। हां, भगवान का ध्यान करें और कम से कम 15 मिनट मेडिटेशन करें। किसी ऐसे प्रियजन से मिलें जिसे आप बहुत दिनों से नहीं मिले हों। इन तरीकों से आपमें सफलता पाने की लालसा बढ़ेगी। हो सकता है आपको जिम में पसीना ही न बढ़ाना पड़े न ही अपनी पसंदीदा डिश को अलविदा कहने की जरुरत हो।