कई मनोवैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि यह हमें कहीं न कहीं मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। प्रो. लौरा का कहना है कि नकारात्मक चीजों पर तुरंत ध्यान देने की हमारी आदत इसलिए भी है कि क्योंकि हमारा दिमाग इसके लिए अभ्यस्त है। वे कहती हैं कि मुश्किल या खतरनाक स्थितियों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ऐसे ही किसी अन्य अवसर पर समान स्थितियों या चुनौती के समय हमारा दिमाग इसी जानकारी का इस्तेमाल समाधान के लिए करता है। इसके अलावा उम्र भी एक सीमा तक नतीजों और विचारों को प्रभावित करती है।
एक सर्वे में जब पाठकों से उनके जीवन की सबसे प्रभावी घटना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने दुखद अनुभवों और कठिन हालातों के बारे में बताया। हालांकि कुछ लोगों ने जीवन की मीठी यादों को भी शेयर किया था। लेकिन ज्यादातर वे थे जिन्होंने अपने जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों और घटनाओं को ही याद किया।
एक अध्ययन में लौरा ने पाया कि नकारात्मक अनुभवों का प्रभाव युवाओं पर ज्यादा होता है। युवाओं में ऐसी नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करने से परिपक्वता आती है। वे नतीजों से सबक लेकर जीवन के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं जो उन्हें खुश रहने में मदद करता है। इसलिए युवा खराब चीजों पर अधिक ध्यान देते हैं।
डॉ. लौरा के मुताबिक जब हम अपनी जिंदगी की किसी यादगार घटना का जिक्र करते हैं तो हम अपनी यादों को नए सिरे से सजाते-संवारते हैं। इतना ही नहीं समय के साथ हम इसे लेकर पहले से ज्यादा आत्मविश्वासी हो जाते हैं क्योंकि अब हमें इसका डर नहीं होता। यादें हमारे उद्देश्य को प्रभावित करती हैं। तब भी जब हम इससे छुटकारा पाना चाहते हों। इसलिए इन नकारात्मक यादों और घटनाओं को अपने पर हावी न होने दें।