scriptचीन के इस मंदिर में संस्कृत और ध्यान सीख रहे चीनी कर्मचारी | workaholic China, the stressed-out find a refuge with monks, Sanskrit | Patrika News

चीन के इस मंदिर में संस्कृत और ध्यान सीख रहे चीनी कर्मचारी

locationजयपुरPublished: Aug 10, 2019 09:47:24 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

जब पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई तो हजारों आवेदन आए थे लेकिन केवल 380 आवेदकों को ही प्रवेश दिया गया। प्रवेश पाने वालों में 10 वर्ष के बालक से लेकर योग शिक्षक, वास्तुकार और बुजुर्ग तक शामिल थे। केवल 50 विद्यार्थी ही कोर्स पास कर सके।

लिंगयिन मंदिर में सार्वजनिक रूप से आमजन को बौद्ध धर्म की शिक्षा, बौद्ध भिक्षुओं को प्रशिक्षण और संस्कृत की शिक्षा दी जाती है।

चीन के इस मंदिर में संस्कृत और ध्यान सीख रहे चीनी कर्मचारी

विकसित देशों में काम का इस कदर दबाव है कि कर्मचारी दिनरात अतिरिक्त समय देकर भी इसे पूरा नहीं कर पा रहे हैं। पड़ोसी देश चीन में हालात और भी बदतर हैं। यहां कर्मचारी विकास की दौड़ में इस कदर दौड़े जा रहा है कि उसका चैन और स्वास्थ्य दोनों दांव पर लगे हैं। एक अच्छी जिंदगी के लिए यहां कोडिंग और बिजनेस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना आम है और टारगेट पूरा करने के दबाव में लोग मशीन में परिवर्तित हो गए हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में अपने लिए कुछ वक्त निकालने के लिए इन दिनों चीन में बौद्ध मठों में विशेष कक्षाओं में भाग लेने का आइडिया काफी लोकप्रिय हो रहा है।
चीन की आर्थिक राजधानी और उद्यमियों का शहर कहलाने वाले हांगझोऊ शहर में कॉर्पोरेट, इंजीनियरिंग और मार्केटिंग जैसी दिमागी नौकरियों में काम कर रहे पेशेवर यहां के बौद्ध मंदिरों में प्राचीन संस्कृत भाषा सीख रहे हैं। यह ऐसा है जैसे कोई चीनी व्यक्ति घंटों लैपटॉप पर शेयर मार्केट और टारगेट पूरा करने के बाद लैटिन भाषा सीखने का प्रयास करे।

किस तरह का प्रोग्राम है
जर्मन अनुवादक के रूप में काम करने वाले झांग ने बताया कि यहां आने से उनका रक्तचाप और हाइपरटेंशन कम हो जाता है। मंदिर में वर्कहोलिक चीनी नागरिकों के लिए खास कार्यक्रम बनाया गया है। लोगों को शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को विचारमुक्त कर भागदौड़ भरी जिंदगी से विराम लेते हुए शरीर को धीमा करना सिखाया जाता है। झांग के अनुसार इस मुद्रा में हम जीवन के गहरे अर्थ को खोजने का प्रयास करते हैं कि जीवन के लिए कम्प्यूटर स्क्रीन, मोबाइल, एक्सल शीट और बोर्ड मीटिंग्स से भी ज्यादा अन्य बातें भी जरूरी है।

सप्ताह में 98 घंटे करते काम
बीते तीन दशकों में चीन बहुत तेजी से एक कृषि प्रधान देश से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। लेकिन इस बाजारवाद और प्रतिस्पर्धी वातावरण ने लोगों से उनका समय छीन लिया है। शहरों के साथ उच्च मध्यम वर्ग परिवारों की ऊंची महत्त्वकांक्षाओं के बीच साधारण जीवन और सोच विलुप्त हो गई है। इस शहर की आबादी 40 करोड़ से ज्यादा हो गई है। लेकिन अब चीनी अर्थव्यवस्था ढलान पर है। 6 फीसदी से कुछ ज्यादा की वर्तमान तिमाही वृद्धि दर अब तक की सबसे कमजोर दर है। नई तकनीकी अर्थव्यवस्था, अमरीका से व्यापार युद्ध और देश को आने वाले सालों में अमरीका से आगे दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के मकसद से सरकार ने लोगों को जयादा से ज्यादा काम करने का दबाव बनाया हुआ है।

अलीबाबा के संस्थापक जैक मा ने ‘996’ की तर्ज पर लोगों को सुबह 9 से रात 9 बजे तक सप्ताह में 6 दिन काम करने की वकालत की है। वहीं जेडी डॉट कॉम इससे भी चार कदम आगे बढ़कर कर्मचारियों को ‘8116+8’ काम करने को कहती है। यानि कर्मचारी सुबह 8 से रात 11 बजे तक काम करे वह भी सप्ताह के 6 दिन और इसके अलावा रविवार को भी कम से कम 8 घंटे काम करे। बहुत कम कर्मचारी हैं जो खुद को इस मशीनीकरण से बचाते हुए अपने और परिवार के लिए समय निकाल पा रहे हैं। इसलिए लोग अब मठों में राहत ढूंढ रहे हैं।

आम लोगों को सिखाते संस्कृत
लिंगयिन मंदिर में सार्वजनिक रूप से आमजन को बौद्ध धर्म की शिक्षा, बौद्ध भिक्षुओं को प्रशिक्षण और संस्कृत की शिक्षा दी जाती है। इतना ही नहीं यह मंदिर एक पर्यटन स्थल भी है। मंदिर के उप-मठाधीश जून हेंग का कहना है कि यहां आने वाले वे लोग हैं जो उदासी या अवसाद के शिकार हैं। संस्कृत के सुविधा और स्वयं से मुक्ति जैसे वाक्य विचार को मंदारिन ने अपनाया है। चीनी विदेश मंत्रालय के पसंदीदा वाक्यांशों में से एक ‘वांग जियांग’ संस्कृत के शब्द विकल्प से आता है वह बौद्ध सूत्रों में भी पाया जाता है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो