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World Autism Awareness Day : शहर में भी बढ़े मामले, इलाज से हो सकते हैं ठीक

बच्चा कम बोले, अलग-थलग रहे तो रखें खयाल, थैरेपी की जरूरत

जबलपुरApr 02, 2018 / 01:37 am

abhishek dixit

Students will be deprived of the exam here,

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जबलपुर. यदि आपका बच्चा भी ढाई से तीन साल का हो गया है, लेकिन बातचीत नहीं करता, अलग-अलग रहता है तो आपको सचेत होने की जरूरत है। हो सकता है कि आपके बच्चे में भी ऑटिज्म के लक्षण हैं। ऑटिज्म की बीमारी शहर में धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। शहर में एक या दो ही सेंटर है, जहां पर इसका इलाज होता है। बाकी लोगों को अन्य शहरों की ओर रुख करना पड़ता है। डॉक्टर्स की मानें तो यह बीमारी दो साल के बाद ही पकड़ में आती है, लेकिन इसके बाद पैरेंट्स को देर नहीं करनी चाहिए।

जेनेटिक है यह प्रॉब्लम
विशेषज्ञों की मानें तो यह समस्या जेनेटिक है। परिवार में किसी को इस तरह की समस्या या इससे रिलेटेड कोई प्रॉब्लम होने से बीमारी बच्चों को हो सकती है। अटेंशन डेफिसिट हायपर एक्शन डिसऑर्डर भी इसी श्रेणी में आता है। ऑटिज्म मेंटल इलनेस है, जो कि जन्म से होती है। बच्चों का आईक्यू पूरी तरह खराब नहीं होता है। ऐसे बच्चों का दिमाग कुछ धीमा चलता है तो कुछ चीजों में साधारण बच्चों की तुलना में तेज भी चलने लगता है। यह बीमारी जन्मजात होती है, लेकिन हमारे आसपास का वातावरण इसे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। वक्त रहते यदि इस बीमारी को समझ लिया जाए तो इसका इलाज संभव है। आमतौर पर आजकल के पैरेंट्स वर्र्किंग हैं। बच्चों में यदि इस तरह का सिम्टम्स दिखता है तो वह उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं और न ही बच्चों को वक्त देते हैं। इससे ऑटिज्म और बढ़ता है।

ऑटिज्म के लक्षण
– बच्चे सामाजिक तौर पर संवाद नहीं करते।
– आपस में बातचीत नहीं करते।
– आंख से आंख मिलाकर बातें नहीं करते।
– उनके बैठने का तरीका सामान्य बच्चों के जैसा नहीं होता है।
– बार-बार हाथ हिलाना जैसे मूवमेंट करते हैं।
– ऐसे बच्चे हमेशा अपने रुटीन में रहते हैं।
– रुटीन से हटना उनको पसंद नहीं होता है।

थैरेपी
– रिहेबलिटेशन स्पीच, डवलपमेंट एजुकेशन, ऑक्यूपेशन थैरेपी।
– पैरेंट्स को इन बातों का रखना चाहिए ध्यान
– माता-पिता यह ध्यान दें कि बच्चों को किन चीजों से परेशानी हो रही है। उनकी समस्या का समाधान करने की कोशिश करें।
– बच्चों के सामने बैठकर उनके आइ लेवल पर आकर बातें करें।
– ऐसे बच्चों के साथ जब भी कहीं जाएं तो कंधों पर चलने की कोशिश करें।
– बच्चों को कभी मारें नहीं, हमेशा प्यार से बातें करें।
– नए-नए लोगों से मिलवाएं और हमेशा बात करने की कोशिश करें।
– घरेलू कामों में बच्चों का सहयोग लें।

जबलपुर में इसका इलाज संभव है। अभी तक सौ से ज्यादा बच्चों को स्वस्थ किया जा चुका है। ऐसे बच्चों के साथ प्यार से पेश आना जरूरी है।
डॉ. विशाल मेहरा, थैरेपी एक्सपर्ट

यह समस्या शहर के बच्चों में भी तेजी से देखने में मिल रही है। ऐसे में पैरेंट्स का रोल बहुत बढ़ जाता है। इसका इलाज दवाई से नहीं, बल्कि थैरेपी से है।
डॉ. स्वप्निल अग्रवाल, साइकायट्रिस्ट

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