आज हम आपको दीपक के इस उड़ान की कहानी ही बताने जा रहें है। बचपन से ही दीपक सचिन तेंडुलकर जैसा चैंपियन बनने का सपना देखते थे लेकिन दुख की बात तो ये थी कि दीपक की आंखोंं की रोशनी केवल आठ साल की उम्र में ही चली गई। बात साल 2004 की है जब दिवाली के दिन हुए एक हादसे में दीपक अपनी आंखों की रोशनी गंवा बैठे लेकिन इतना होने के बाद भी इस युवक ने हार नहीं मानी। दीपक ने सबसे पहले अपनी आंखों का इलाज करवाया लेकिन ये ऑपरेशन ज्य़ादा कामयाब नहीं रह पाया क्योंकि डॉक्टरों ने कहा कि दीपक केवल 6 मीटर की दूरी तक ही देख सकते हंै। इसके बाद दीपक ने दिल्ली के इंस्टीट्यूशन ब्लाइंड स्कूल से पढ़ाई पूरी की और पढ़ाई के बीच ही समय मिलने पर दीपक दिल्ली के ब्लाइंड स्कूल में चले जाते थे और क्रिकेट की प्रैक्टिस करते थें। तमाम मुश्किलों के बाद भी दीपक ने इस खेल की प्रैक्टिस को जारी रखा और इस तरह धीरे-धीरे वो स्कूल लेवल के क्रिकेट से स्टेट लेवल के क्रिकेट तक अपनी खुद की अलग पहचान बनाई और अब तो दीपक किसी पहचान के मोहताज नहीं क्योंकि ब्लाइंड क्रिकेट में भारतीय टीम को वल्र्ड कप चैंपियन और एशिया कप जैसे खिताब दिलवाने वाले दीपक ही हैं।
दीपक नेत्रहीन क्रिकेट में बी -3 कैटेगरी के प्लेयर हैं। दीपक से जब इस बारे में पूछा गया तो उसने बताया कि देश के लिए खेलना हमेशा गौरवशाली होता है। मुझे उम्मीद है कि मैं अपनी प्रतिभा के साथ न्याय करने में सफल रहूंगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल 2013 में दीपक नेशनल टीम के लिए चयनित हुए और साल 2014 में वल्र्ड कप में श्रीलंका के खिलाफ केपटाउन में 17 गेंदों में 50 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली थी और तो और साल 2016 में हुए एशिया कप में भी वो टीम इंडिया का हिस्सा भी रह चुके हैं। इस बात से ये स्पष्ट है कि अगर आपके हौसले बुलंद हों और इरादें नेक हो तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको हरा नहीं सकती हैं।