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Milkha Singh Birthday: जीरो से ऐसे हीरो बने मिल्खा सिंह, इन दो हादसों ने पलट दी थी फ्लाइंग सिख की जिंदगी

पद्मश्री से सम्मानित धावक मिल्खा सिंह एथलेटिक्स में दुनियाभर में भारत का परचम लहराने के लिए जाने जाते हैं। 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्मे मिल्खा भारत के महान धावकों में से एक हैं। मिल्खा ने भारत के लिए एशियाई खेलों में 4 स्वर्ण पदक और राष्ट्रमण्डल खेल में एक गोल्ड मेडल जीते हैं।

Nov 21, 2022 / 11:12 am

Siddharth Rai

Milkha Singh flying sikh birthday: भारत के इतिहास में जब-जब महान धावकों को याद किया जाएगा लोगों के जहन में सबसे पहला नाम फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का नाम आएगा। पद्मश्री से सम्मानित धावक मिल्खा सिंह एथलेटिक्स में दुनियाभर में भारत का परचम लहराने के लिए जाने जाते हैं। 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्मे मिल्खा आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन खेल के मैदान में उनके द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड हमेशा अमर रहेंगे। आज फ्लाइंग सिख की 93वीं जयंती है। इस मौके हम आपको ऐसे दो हादसों के बारे में बताएंगे। जिनके चलते मिल्खा इतिहास के पन्नों में अमर हो गए।

आज उनके जन्मदिन पर देश और विदेश की कई हस्तियां मिल्खा सिंह को याद कर रही है। सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरों को खूब शेयर किया जा रहा है। चंडीगढ़ के रहने वाले मिल्खा सिंह का निधन बीते साल 2021 हुआ था। उन्हें कोरोना हुआ था, लेकिन वह कोरोना से भी जीत गए, लेकिन बाद में उनका देहांत हो गया था। मिल्खा ने भारत के लिए एशियाई खेलों में 4 स्वर्ण पदक और राष्ट्रमण्डल खेल में एक गोल्ड मेडल जीते हैं।


फ्लाइंग सिख का ख़िताब पाकिस्तान ने दिया –

भारत-पाकिस्तान बंटवारे ने बहुत सारे लोगों को अनाथ और बेघर किया था जिसमें से मिल्खा सिंह भी एक हैं। बंटवारे के दौरान उनके माता-पिता की मौत हो गई थी। जिसके बाद वे अपनी बहन के साथ भारत आ गए थे और एथलीट के रूप भारतीय सेना में शामिल हो गए। मिल्खा ने साल 1956, 1960 और 1964 में ओलंपिक खेलों में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करने के अलावा 1958 और 1960 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता है। मिल्खा की प्रतिभा और रफ्तार को देखते हुआ उन्हें फ्लाइंग सिख का खिलाब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री फील्ड मार्शल अयूब खान ने दिया था।

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रोम ओलिंपिक में पदक से चूके –

मिल्खा रोम ओलिंपिक में पदक जीतने से चूक गए थे। इस बारे में जब मिखा से पुछा गया तो उन्होंने बताया ‘मेरी आदत थी कि मैं हर दौड़ में एक दफा पीछे मुड़कर देखता था। रोम ओलिंपिक में दौड़ बहुत नजदीकी थी और मैंने जबरदस्त ढंग से शुरुआत की। हालांकि, मैंने एक दफा पीछे मुड़कर देखा और शायद यहीं मैं चूक गया। इस दौड़ में कांस्य पदक विजेता का समय 45.5 था और मिल्खा ने 45.6 सेकेंड में दौड़ पूरी की थी।’ इस रेस में 250 मीटर तक मिल्खा पहले स्थान पर भाग रहे थे। लेकिन इसके बाद उनकी गति कुछ धीमी हो गई और बाकी के धावक उनसे आगे निकल गए थे।

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ज़ीरो से हीरो तक का सफर –

बता दें साल 1958 में हुए राष्ट्रमण्डल खेल के दौरान मिल्खा सिंह एक अपरिचित नाम था। उन्हें कोई नहीं जानता था। लेकिन पंजाब के एक साधारण लड़के ने बिना किसी प्रॉपर ट्रेनिंग के साउथ अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को पछाड़ते हुए इतिहास रच दिया। मिल्खा ने राष्ट्रमण्डल खेल में आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल अपने नाम किया। तब से 2014 राष्ट्रमण्डल खेल में विकास गौड़ा के गोल्ड जीतने तक मिल्खा इकलौते भारतीय पुरुष एथलीट गोल्ड मेडलिस्ट थे। साल 2013 में उनके जीवन पर आधारित फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ रिलीज हुई, जिसने युवाओं को उनके जीरो से हीरो बनने की कहानी के बारे में बताया था।

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