इस घर के कमरे में टूटी छत, पंखें की झूलती और पिघलती हुई ताडिय़ा, रसोई गैस चूल्हे पर चढ़ी हुई कढाही, जलकर राख हुए कपड़े और साइकिल पर लटका हुआ टिफिन…ऐसा लग रहा था कि यहां समय जैसे ठहर गया हो। यह कमरा सोमवार रात करीब ग्यारह बजे लाक्षागृह बन चुका था जब नौ महीने से गर्भवती खुशबू अपने पति के लिए रात को गर्मागम खाना बनाने के लिए कमरे में आई थी।
तब एकाएक आग से जिन्दा जल गई और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। हादसा इतना भीषण था कि इस कमरे की छत सीमेंटेड चादरें भी टूट गई। खुशबू के अगले सप्ताह डिलीवरी होने वाली थी। उसके दो बच्चे चार साल का शिवम और दो साल का शिब्बू बेटे है। तीसरी संतान के लिए यह दंपती कई सपने संजाएहुआ था। पति भवन निर्माण का मजदूर है। सोमवार रात दस बजे के बाद मजदूरी करने के बाद घर लौटा था। पति अंकित भी खुशबू को बचाने के चक्कर में करीब चालीस प्रतिशत झुलस गया था, वह राजकीय जिला चिकित्सालय के बर्न वार्ड में मौत और जीवन के बीच संघर्ष कर रहा है। मंगलवार को सदर पुलिस ने चिकित्सालय से पोस्टमार्टम की कार्रवाई करवाकर खुशबू के शव को उसके पिता जयराम को सौंप दिया।
खुशबू के शव को इसी कॉलोनी में देवर मोहित के घर पर लाया गया। वहां खुशबू की सास, मां, पिता, भाई, देवरानी, बहने आदि फूटफूटकर विलाप कर रही थी। गमगीन माहौल में हनुमानगढ रोड स्थित शमशान भूमि में उसका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान तपोवन ट्रस्ट के महेश पेड़ीवाल ने खुशबू के पिता को आर्थिक सहायता देते हुए ढांढस बंधवाया और पति अंकित के बेहतर उपचार का भरोसा दिलाया।
खुशबू के शव को इसी कॉलोनी में देवर मोहित के घर पर लाया गया। वहां खुशबू की सास, मां, पिता, भाई, देवरानी, बहने आदि फूटफूटकर विलाप कर रही थी। गमगीन माहौल में हनुमानगढ रोड स्थित शमशान भूमि में उसका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान तपोवन ट्रस्ट के महेश पेड़ीवाल ने खुशबू के पिता को आर्थिक सहायता देते हुए ढांढस बंधवाया और पति अंकित के बेहतर उपचार का भरोसा दिलाया।