कभी मदर्स डे, कभी फादर्स डे, सिस्टर डे, ब्रदर्स डे में भी केक काटकर खुशियों का जश्न मनाया जाने लगा है। कई प्राइवेट कंपनियों और बैकिंग संस्थाओंे ने अपने टारगेट पूरा होने पर केक काटने का रिवाज ही बना लिया है। पूरे जिले में रोजाना चार हजार से अधिक केक की बिक्री होती है।
केक के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है कि दुकानदारों ने इसे नया बाजार का रूप दे दिया है। जूस की दुकान हो या फिर रेस्टारेंट या फिर परचून की दुकानें जहां देखों वहां केक आसानी से मिल जाएगा।
महज पांच सालों में अकेले श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पर एक सौ से अधिक दुकानें खुल चुकी है। पूरे जिले का आंकलन किया जाएं तो एक हजार से अधिक दुकानें केक के नाम से संचालित हो रही है।
केक की खरीददारी बच्चों तक सीमित थी। बच्चों में केक कटवाने का शौक अधिक रहता है। लेकिन इस केक ने बड़े लोगो को रोजगार का रास्ता दिखा दिया है। पांच साल पहले केक लेने के लिए लोगों को गोलबाजार में चुनिंदा दुकानों पर खरीददारी के लिए जाना पड़ता था। लेकिन अब गली मोहल्ले की दुकानों पर केक मिलने लगा है।
अपने घर के पास की दुकानों पर केक की खरीददारी से भी केक के प्रति रुझान बढ़ा है। दुकानदारों का कहना है कि पचास साल से अधिक वाले करीब नब्बे फीसदी लोगों ने अपने जन्मदिन पर कभी केक नहीं कटवाया था लेकिन अब गत पांच सालों में एेसे लोगों के जन्म दिन पर उनके परिवारिक सदस्य केक कटवाने लगे है।
जवाहरनगर में ब्रेकरी के संचालक अमर प्रताप सिंह का कहना है कि ग्राहकों की पसंद पर केक बनाए जाते है। ज्यादातर चॉकलेट, पाइनेप्ल, स्टोबैरी और वनीला वैरायटी के केक बिकते है। बच्चों के लिए कार्टून वाले केक विशेष रूप से तैयार कराए जाते है। जिसका जन्मदिन होता है उसका नाम एेनवक्त पर लिखा जाता हैं। आकर्षक पैकिंग में गिफ्ट के रूप में भी केक का चलन अधिक बढ़ गया है।
इंदिरा कॉलोनी में केक विक्रेता राहुल बजाज का कहना है कि युवाओं में केक खरीदने की अधिक ललक रहती है। ज्यादातर केक पीजी या हॉस्टल संचालित एरिया में अधिक बिकता है। इसके अलावा अब गली मोहल्ले में भी केक की खरीददारी बढऩे लगी है।