मोबाइल की लत से बिगड़ रहा बच्चों का मानसिक संतुलन
श्री गंगानगरPublished: Nov 26, 2021 02:16:48 am
कोरानाकाल में स्कूल-कॉलेज बंद हो गए। बाजार-परिवहन ठप हो गया। तेजी से बढ़े कोरोना रोगियों का सर्वाधिक असर पड़ा छात्र वर्ग पर। पढ़ाई एक तरह से चौपट हो गई। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर बच्चों के हाथ में मोबाइल आ गए। मोबाइल ने बच्चों से लेकर बड़ों की मानसिक स्थिति का बंटाधार कर दिया। स्कूली बच्चे चाहे प्राइमरी कक्षाओं के हैं और चाहे बड़ी कक्षाओं के, मोबाइल ने हर विद्यार्थी के मानसिक स्तर को प्रभावित किया है।
मोबाइल की लत से बिगड़ रहा बच्चों का मानसिक संतुलन
-अजीब बीमारी के शिकार हुए, आंखों पर पड़ा सर्वाधिक असर
योगेश तिवाड़ी. श्रीगंगानगर. कोरानाकाल में स्कूल-कॉलेज बंद हो गए। बाजार-परिवहन ठप हो गया। तेजी से बढ़े कोरोना रोगियों का सर्वाधिक असर पड़ा छात्र वर्ग पर। पढ़ाई एक तरह से चौपट हो गई। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर बच्चों के हाथ में मोबाइल आ गए। मोबाइल ने बच्चों से लेकर बड़ों की मानसिक स्थिति का बंटाधार कर दिया। स्कूली बच्चे चाहे प्राइमरी कक्षाओं के हैं और चाहे बड़ी कक्षाओं के, मोबाइल ने हर विद्यार्थी के मानसिक स्तर को प्रभावित किया है। राज्य में कोरोना रोगी घटने के बाद स्कूल-कॉलेज खुल चुके हैं परन्तु मोबाइल की लत बच्चों से छूट नहीं रही। परिजन अब उन्हें मोबाइल का इस्तेमाल न करने या कम करने की सलाह देते हैं परन्तु लाख प्रयासों के बावजूद वे अपनी बात मनवा नहीं पा रहे।
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मोबाइल न होने पर करने लगते हैं अजीब व्यवहार
बच्चों को मोबाइल की लत लगाने में स्कूलों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। कोरोना के बाद स्कूल खुल चुके हैं परन्तु विभिन्न कक्षाओं के बने ग्रुप विद्यार्थियों के लिए जरूरी हैं। मोबाइल की बैटरी डाउन होते ही बच्चे अजीब व्यवहार करने लगते हैं।
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छोटे बच्चों की आंखों पर लगे चश्मे
मोबाइल से छोटे बच्चों पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ा है। कोरोनाकाल में लगातार मोबाइल के इस्तेमाल से छोटे बच्चों की आंखों पर चश्मे लग चुके हैं। प्राइवेट स्कूलों ने मोबाइल पर छह-छह घंटे कक्षाएं लगाई जिससे उनकी मनोदशा खराब हो गई।
-हितेन्द्र शर्मा, व्याख्याता, राउमावि,4 एमएल(श्रीगंगानगर)
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मोबाइल बिना नहीं खाते खाना
पढ़ाई के बहाने बच्चों के पास लगातार मोबाइल रहने से उन्हें इसकी जबर्दस्त लत लग गई है। अब स्थिति यह है कि छोटे बच्चे तो मोबाइल बिना खाना तक नहीं खाते। गेमिंग की लत के चलते कई बच्चे तो चोरियां तक करने लगे हैं।
-अनिल धींगड़ा, मेल नर्स ग्रेड प्रथम, राजकीय चिकित्सालय, ख्यालीवाला (श्रीगंगानगर)
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अब अभिभावकों की जिम्मेदारी बढ़ी
बच्चे के सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी अभिभावक की होती है। बच्चों में मोबाइल की लत के बाद अभिभावकों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। उनको मोबाइल के दुष्प्रभाव के बारे में समझाकर धीरे-धीरे मोबाइल पर निर्भरता छुड़वानी होगी।
तेजप्रताप यादव, संरक्षक, शिक्षक संघ शेखावत, श्रीगंगानगर
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नोमोफोबिया के शिकार हुए बच्चे
मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से 12 साल से नीचे के बच्चों को गेमिंग और बड़े बच्चे पब्जी जैसे खेलों व पोर्नोग्राफी की लत लग चुकी है। उनका सामाजिक सम्पर्क लगभग समाप्त सा हो गया है। इस तरह की बीमारी को नोमोफोबिया के नाम से जाना जाता है।
-डॉ.रूप सिडाना, मनोरोग चिकित्सक, श्रीगंगानगर
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उदाहरण एक
चार साल के बच्चे पार्थ (बदला हुआ नाम)की नेत्रज्योति कोरोनाकाल से पहले एकदम सही थी। मोबाइल पर लगातार पढ़ाई के कारण यूकेजी के इस बच्चे अब एक नंबर का चश्मा लग चुका है। इससे अभिभावक चिंतित है परन्तु बच्चा मोबाइल नहीं देने पर रोने लगता है।
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उदाहरण दो
ग्याहवीं कक्षा का 17 वर्षीय सौरभ (बदला हुआ नाम) किताबों व नोट्स के नाम पर परिजनों से कई बार रुपए ले चुका है। इन रुपयों से वह मोबाइल में गेम रिचार्ज करवाकर चोरी-छुपे पब्जी जैसे गेम खेलता है। एक-दो बार वह घर से रुपए चुराकर भी मोाबाइल रिचार्ज करवा चुका है।