श्री गंगानगर

तुम्बा खारा, मिठ्ठी कमाई

Citrullus colocynthis: खरीफ फसल के साथ उगने वाली खरपतवार तुंबा को कैचियां क्षेत्र में लोगों ने व्‍यापार का माध्‍यम बना लिया है। यह तुंबा बारानी खेतों में अधिक पाया जाता है। क्षेत्र के व्‍यापारी काश्‍तकारों से 120 रूपये से लेकर 150 रूपये तक प्रति क्विंटल के हिसाब से तुंबे की खरीद कर उसे काटकर सुखाने के बाद आगे बेच रहे है।

श्री गंगानगरNov 27, 2019 / 08:48 pm

Rajaender pal nikka

तुम्बा खारा, मिट्ठी कमाई

श्रीगंगानगर/कैंचियां
खरीफ फसल के साथ उगने वाली खरपतवार तुंबा को कैचियां क्षेत्र में लोगों ने व्‍यापार का माध्‍यम बना लिया है। यह तुंबा बारानी खेतों में अधिक पाया जाता है। क्षेत्र के व्‍यापारी काश्‍तकारों से 120 रूपये से लेकर 150 रूपये तक प्रति क्विंटल के हिसाब से तुंबे की खरीद कर उसे काटकर सुखाने के बाद आगे बेच रहे है। सूखने के बाद एक क्विंटल हरे तुंबे का वजन 6 या 7 किलों तक रह जाता है। उसके बाद दिल्‍ली, अमृतसर के व्‍यापारी सूखा हुआ तुंबा खरीद लेते है। इसके अलावा भाखड़ी व सांटे की जड. भी खूब बिक रही है।
इस व्‍यापार से जहां काश्‍तकारों को खरपतवार से निजात मिल रही है। वहीं लोगों को भी रोजगार मिला है। कैंचियां में तुंबे का व्‍यापार करने वाले दयाराम जाट ने बताया की हम तुंबे, भाखड़ी व सांटे की जड. आसपास के खेतो से खरीद कर उसे काटकर सूखाने के बाद दिल्‍ली के व्‍यापारीयों को बेच देते है। हर वर्ष सीजन में दो सौ किवन्‍टल से लेकर तीन सौ किवन्‍टल तक हम यह माल तैयार करके व्‍यापारीयों को बेचते है। तुंबा दो हजार रूपये किलो के हिसाब से बिकता है। इस तरह क्षेत्र में तुंबे का कारोबार करने वाले लोग तीन माह के सीजन में लाखो रूपये कमा रहे है।
-तुंबा पशुओं के चारे व दवाईयों में काम आता है

मिली जानकारी के अनुसार तुंबा का छिलका पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ साथ देशी व आयुर्वेदिक औषधियों में भी काम आता है। इस के अलावा उंट, गाय, भैंस, भेड़ व बकरी इत्‍यादि जानवरों के होने वाले रोगों में तुंबे की औ‍षधी लाभदायक है। तुंबे की मांग दिल्‍ली, अमृतसर, भीलवाडा में है। तुंबा, भाखड़ी व सांटे की जड. से देशी व आयुर्वेद औषधियां भी बनती है। जो कि पिलीया, कमर दर्द इत्‍यादि रोगों में काम आती है।

-इनका कहना है
क्षेत्र में लोग खरीफ फसल के साथ उगने वाली खरपतवार तुंबे का व्‍यापार कर रहे है। यह तुंबा आयुर्वेद औषधियों में इस्‍तमाल होता है। इस के लिए कृषि विभाग की तरफ से कोई योजना नही है।…………………………………………………अमृतपाल सिंह कृषि पर्यवेक्षक ग्राम पंचायत खोथांवाली
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