शहर के समीप साधुवाली गांव के आसपास करीब बीस से पच्चीस किलोमीटर के इलाके में नहर के दोनों किनारों व माइनर क्षेत्र में भारी मात्रा में गाजर बोई जाती है। यहां गाजर नवंबर में आना शुरू होती है और पंद्रह मार्च तक आवक बनी रहती है।
गाजर धुलाई के लिए गंगनहर के दोनों किनारों पर करीब सौ से अधिक मशीनें लगी हुई है। किसान यहां ट्रेक्टर-ट्रॉलियो में गाजर भरकर लाते हैं और धुलाई करवाकर कट्टों में पैक कर देते हैं। यहां ट्रकों के जरिए अन्य जिलों व प्रदेशों में भेजी जाती है। इन दिनों नहर पर प्रतिदिन छह हजार बोरी गाजर की आवक हो रही है।
इन प्रदेशों में होती है गाजर की खपत – साधुवाली गांव में नहर किनारे से जाने वाली गाजर को जिले के बाहर के मार्केट में गंगानगरी गाजर के नाम से जाना जाता है। यह गाजर सुर्ख लाल व मीठी होती है। सब्जी उत्पादक किसान संघ के अध्यक्ष अमर सिंह बिश्नोई ने बताया कि यहां से गाजर जिले के अलावा पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, चंडीगढ़, हिमाचल, बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल व उडिसा तक जाती है।
गाजर ठंडे इलाके के व्यापारी ही मंगाते हैं। गुजरात व महाराष्ट्र में यह गाजर वहां का तापमान अधिक होने के कारण नहीं जा सकती है। इसके रास्ते में खराब होने की आशंका रहती है।
गाजर कम, भाव ज्यादा – किसानों व संघ के पदाधिकारियों ने बताया कि इस बार इलाके में गाजर की बिजाई 30 से 40 प्रतिशत कम हुई है। इसके चलते भाव पिछले साल की तुलना में बढ़े हुए हैं। यहां गाजर के थोक के भाव 12 से 20 रुपए प्रति किलोग्राम चल रहे हैं। जबकि पिछले साल भाव तीस से चालीस प्रतिशत कम थे।
वाशिंग यार्ड बनाने की मांग – सब्जी उत्पादक किसान संघ ने प्रशासन से साधुवाली में नहर किनारे खाली पड़ी सिंचाई विभाग की जमीन पर वाशिंग यार्ड बनाए जाने की मांग की है। जिससे गाजरों का यहां से ट्रांसपोर्टशन हो सके। किसानों की ओर से यह मांग लंबे समय से चली जा रही है लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।