इलाके में पिछले ढाई सालों से शहर की सड़कों को तोड़कर सीवर और पेयजल पाइप लाइन बिछाने का दौर चल रहा था तब जिम्मेदार अफसरों ने जानबूझकर मूकदर्शक की भूमिका निभाई। नगर परिषद और यूआईटी क्षेत्र में संबंधित अफसरों ने एक बार भी मौके पर आकर सड़कों के पुर्नर्निर्माण में बरती जा रही अनदेखी और घटिया क्वालिटी के निर्माण सामग्री के इस्तेमाल पर आपत्ति तक दर्ज नहीं की। यहां तक कि आरयूआईडीपी और ठेका कंपनी एल एंड टी के अफसरों के समक्ष नाराजगी तक प्रकट नहीं की। पत्र व्यवहार करने के लिए फुर्सत तक नहीं मिली। इसका परिणाम यह रहा कि गली मोहल्ले में पहुंची एलएंडटी के अकुशल और कुशल कारीगरों ने जहां मन किया वहां गडढा खोद दिया।
इलाके के लोगों का कहना है कि सीवर लाइन और पेयजल पाइप लाइन डालने के नाम पर करीब साठ साल पहले की सड़कों का लेवल बिगाड़ दिया। आधा अधूरा निर्माण करने से सीवर और पेयजल पाइप की चैकिंग तक जिला प्रशासन, नगर परिषद, यूआईटी और पीडब्ल्यूडी की टीम ने नहीं किया। यहां तक कि जलदाय विभाग के अफसरों ने भी इस काम को आरयूआईडीपी का अधिकृत बताकर पल्ला झाड़ लिया।
इधर, ठेकेदारों ने जिन गलियों में सीवर या पेयजल पाइप लाइन के नाम पर खुदाई की तो वहां दस से बारह ट्रॉली मिट्टी निकाली और लाइन बिछाने के बाद उसे इम्पोक्ट करने के नाम पर सिर्फ पांच ट्रॉली मिट्टी वापस डलवाई गई। इन खामियों का परिणाम यह रहा कि बरसाती पानी जैसे ही खुदाई स्थल पर पहुंचा तो मिट्टी से खिसक गई और बनाई गई सड़कें धंस गई।
इधर, अधिवक्ता कुलदीप गार्गी के अनुसार सड़कों के किनारे पैदल राहगीरों के लिए मार्गाधिकार है लेकिन रेहडि़यों और अस्थायी दुकानदारी अधिक होने से शहर के विभिन्न मुख्य मार्गो पर ट्रैफिक बढ़ रहा है। घटिया क्वालिटी की सड़कों को भले ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने जनता को मौलिक अधिकार बताए हो लेकिन पालना कौन करवाएगा। ऐसे में अफसरों पर जिम्मेदारी तय हो।
अधिवक्ता नीरज गोयल के अनुसार बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुरक्षित सड़क जनता का मौलिक अधिकार बताया है लेकिन इसकी पालना कौन करवाएगा। सड़क बनाने वाले भी अफसर और उनकी चैकिंग का अधिकार भी अफसरों के हाथों में हैं, ऐसे में क्वालिटी पर जांच रिपोर्ट के लिए अलग विभाग बने। मौजूदा हालात के लिए ठेकेदारों के साथ साथ जिम्मेदार अभियंताओं पर एक्शन हो।
– नीरज गोयल, अधिवक्ता
इस बीच, बार संघ के पूर्व सचिव जिन्द्रपाल सिंह भाटिया जौली का कहना है कि हर साल बरसात होने से स्थानीय निकायों के अफसरों और ठेकेदारों की बांछे खिल जाती है। दुबारा सड़क बनेगी तो कमीशन भी आएगा। लेकिन जनता का पैसा बरसाती पानी में बहाया जा रहा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुरक्षित सड़क जनता का मौलिक अधिकार बताकर जनता को यह कवच दिया है। अब सरकार को इस अधिकार की रक्षा करनी होगी।