SriGanganagar तीस साल बाद भी पानी निकासी नहीं
श्री गंगानगरPublished: Jul 04, 2022 12:35:20 pm
Even after 30 years there is no drainage- रेलवे लाइनों से घिरे वार्ड में आवाजाही के लिए एक ही रास्ता


SriGanganagar तीस साल बाद भी पानी निकासी नहीं
SriGanganagar श्रीगंगानगर। पुरानी आबादी के श्रीकरणपुर रोड पर जेसीटी मिल के सामने वार्ड दो में पिछले तीन दशक से पानी निकासी पहेली बनकर रह गई है। यह वार्ड रेल पटरियों से घिरा हुआ है। एक ओर पंजाब रूट पर रेलवे ब्रॉडगैज और दूसरी ओर श्रीकरणपुर रूट का रेलवे ट्रैक है। वार्ड के पीछे जैड माइनर नहर है। एक मात्र जेसीटी मिल के सामने रेलवे फाटक ही इस वार्ड की आवाजाही का रास्ता है।
बारह साल पहले जब रेलवे प्रशासन ने रेल पटरियों को मीटर गेज से ब्रॉडगेज लाइन में तब्दील किया था तब एक मात्र रेलवे फाटक को बंद करने के लिए नोटिस जारी कर दिया। लेकिन जनप्रतिनिधियों और वार्ड के मौजिज लोगों ने रेलवे अधिकारियों से वार्ता की और इस फाटक से आवाजाही के लिए सर्वे कराने का सुझाव दिया।
आखिर रेलवे प्रशासन ने भी स्वीकारा किया यह एक मात्र रास्ता और इससे वार्ड के लिए लोगों की आवाजाही है। श्रीकरणपुर रूट से रेलगाडि़यों की आवाजाही होती है तो यह फाटक बंद कर दिया जाता है। ट्रेन के गुजरने तक लोगों को रेलवे लाइन पार करने के लिए इंतजार करना पड़ता है।
सुरक्षा की दृष्टि से इस रेलवे फाटक पर गार्ड की डयूटी लगती है जो ट्रेन की आवाजाही के दौरान ऑटोमैटिक पोल लगाने का काम करता है। रेल पटरियों और नहर सीमा से घिरे इस वार्ड में सबसे बड़ी समस्या गंदे पानी की निकासी है। इसके लिए तीन दशक का समय बीत चुका है। वहीं नालियां का निर्माण पूरी तरह से नहीं हो पाया है।
रेलवे लाइन पार होने के कारण सस्ते भूखंड पर रातोंरात कॉलोनियां बन गई। इस वार्ड में अर्जुननगर, प्रतापनगर, लालू की ढाणी, आरसी कॉलोनी, देवनगर का आधा एरिया, नर्सरी पर केदारनगर आदि कॉलोनियां है। जैड माइनर के पास कृषि भूमि में भी नई कॉलोनियों के बनने का दौर चल रहा है।
यह वार्ड पहले एक था, लेकिन परिसीमन के बाद इसका आधा एरिया वार्ड एक में कर दिया गया। श्रीकरणपुर मार्ग के रेल पटरी को रेलवे प्रशासन ने अब अपनी भूमि को कब्जे में ले लिया है, इस कारण वहां लाइन से सटी भूमि को पत्थरों से कवर कर दिया है। अब कोई व्यक्ति रेलवे की भूमि में कचरा नहीं डाल सकता। इस वार्ड में 3500 मतदाता है।
इस वार्ड में पहले संगरिया की स्वामी केशवानंद ग्रामोउत्थान शिक्षा समिति की ओर से छात्रावास का संचालन किया जाता था। इसके उपरांत यहां बाल मंदिर स्कूल को यह भूमि को सुपुर्द की गई। वहीं लीला परिवार की भूमि में लालू की ढाणी बसाई गई। इसके साथ साथ पंजाब से आए प्रगतिशील कृषक रतनसिंह ने ढाणी बनाई और वैद्य रामचन्द्र शर्मा ने संस्कृत पाठशाला और गौशााला का संचालन किया। वर्ष 1956 से वर्ष 1982 तक चुनिंदा लोग ही इस एरिया की कृषि भूमि में रहते थे।
जेसीटी मिल सामने होने के कारण वहां पूर्वाचंल प्रवासी मजदूरों ने इन ढाणियों में शरण ली। धीरे धीरे लोगों के बसने का दौर शुरू हो गया। बिहार और यूपी से आए कई परिवार अपना मकान सस्ते दामों में स्थानीय लाेगो को बेच गए। ऐसे में यह इलाका धीरे धीरे पूरी कॉलोनी का रूप ले लिया।