इस बात पर निश्चित तौर पर एक अहम आम सहमति है कि तंबाकू जैसी जो चीजें समाज के लिए हानिकारक के रूप में वर्गीकृत की गई हैं, उन पर जीएसटी के तहत उच्च दर पर कर लगाया जाना चाहिए। प्रमुख आर्थिक सलाहकार रिपोर्ट में ऐसी सिफारिश की गई है। इस रिपोर्ट में सिगरेट, बीडी और चबाने वाले तंबाकू समेत सभी तंबाकू उत्पादों पर 40 प्रतिशत जीएसटी सिन रेट लगाने की बात कही गई है।
20 अक्तूबर को संपन्न हुई जीएसटी परिषद की बैठक में इससे कहीं कम यानी 26 प्रतिशत की सिन रेट का प्रस्ताव दिया गया है, जिसका देश के राजस्व के साथ साथ उसके जन स्वास्थ्य पर भी बड़ा असर पडेगा। इन दोनों पर ही गंभीरता से गौर किया जाना जरूरी है। सिन टैक्स के पीछे के दो तार्किक कारण हैं। पहला तार्किक कारण तंबाकू जैसे उत्पादों के कारण समाज को होने वाले नुकसान के लिए भरपाई है और दूसरा कारण इन उत्पादों की कीमत बढाना और इनका इस्तेमाल घटाना है। 26 प्रतिशत की दर इन दोनों ही उद्देश्यों को विफल कर देगी।
यह तंबाकू से मिलने वाले मौजूदा राजस्व को कम कर देगी और असल में तंबाकू उत्पादों को खास तौर पर बच्चों एवं युवाओं समेत कमजोर वर्ग के लोगों को आदतन बना देगी, जिससे इन उत्पादों के सेवन को बढावा मिलेगा।
आईआईटी जोधपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ.रीजो जॉन के अनुसार, ”यदि सरकार जीएसटी के बाद तंबाकू उत्पादों पर मौजूदा आबकारी शुल्क को बनाए भी रखती है तो भी 40 प्रतिशत की जीएसटी सिन रेट की तुलना में 26 प्रतिशत की सिन रेट लगाना तंबाकू कर के कुल राजस्व को लगभग पांचवें हिस्से (17 प्रतिशत या मोटे तौर पर 10,510 करोड रूपए) तक घटा देगा। स्पष्ट तौर पर, 26 प्रतिशत की सिन रेट तंबाकू के लिए राजस्व निरपेक्ष स्थिति बनाए रखने के लिए जरूरी दर से कहीं कम होगी। क्योंकि अधिकतर तंबाकू उत्पादों पर औसत वैट की दरें खुद ही 26 प्रतिशत से ज्यादा हैं, ऐसे में 26 प्रतिशत की सिन रेट सभी तंबाकू उत्पादों पर कर का बोझ महत्वपूर्ण तरीके से कम कर देंगी।”
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के प्रोफेसर और कैंसर सर्जन डा. पंकज चतुर्वेदी के अनुसार, ”जीएसटी की कहीं कम दर सभी तंबाकू उत्पादों को युवाओं और अन्य कमजोर तबकों के लोगों के लिए कहीं ज्यादा आदतन बना देगी। इसके परिणामस्वरूप तंबाकू का प्रकोप और ज्यादा बढ जाएगा, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च बहुत बढ जाएगा और उत्पादकता में गिरावट आएगी। इससे निश्चित तौर पर प्रति वर्ष कैंसर से मरने वालों की संख्या बढेगी,जो किसी भी देश के लिए अच्छी खबर नहीं है।”
लगभग 48 प्रतिशत पुरूष और 20 प्रतिशत महिलाएं (व्यस्क जनसंख्या का 35 प्रतिशत) तंबाकू का सेवन करते हैं। इनमें से कम से कम 10 लाख लोग हर साल तंबाकू से जुडी बीमारियों से मर रहे हैं। तंबाकू के बाजार में 48 प्रतिशत हिस्सेदारी बीडी की, 38 प्रतिशत चबाने वाले तंबाकू की और 14 प्रतिशत हिस्सेदारी सिगरेट की है। इसलिए यह बात स्पष्ट है कि इन मौतों के लिए बीड़ी बडी जिम्मेदार हैं।
वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिमस के स्टेट पैटर्न व सवाई मान सिंह चिकित्सालय के सहआचार्य डा.पवन सिंघल के अनुसार, ”धूंएं वाले 85 प्रतिशत तंबाकू का सेवन बीड़ी के रूप में किया जाता है, तंबाकू संबंधी 10 लाख मौतों का एक बडा प्रतिशत(5.8 लाख लोग) बीडी के सेवन के कारण है। इसलिए अधिकतम कर लगाने के लिए सिन प्रोडक्ट्स की उच्चतम श्रेणी में बीड़ी को रखकर न सिर्फ लाखों गरीब भारतीयों की जिंदगी ही बचाई जा सकती है बल्कि यह समाज के विभिन्न तबकों के बीच स्वास्थ्य के भारी अंतर को भी कम करने में मदद मिल सकती है। सरकार को इन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर देखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तंबाकू की विभिन्न किस्मों के बीच कोई अंतर न किया जाए और उन पर उच्चतम संभावित दरों का कर लगाया जाए ताकि हमारे सबसे कमजोर तबकों के लोगों को इसकाशिकार बनने से बचाया जा सके।”